अगर हम बात करें पीरियड्स की तो, ये प्रॉब्लम लड़कियों को 12-13 साल से शुरु होकर 50-55 उम्र तक होती है । ये दिन लड़कियों के मुश्किल और दर्दनाक दिनों में से होते हैं । कुछ लड़कियों को तो इसमें इतना अधिक दर्द होता है कि उनके लिए सीधा खड़ा होना भी पॉसिबल नहीं होता इतना ही नहीं बल्कि इस मुश्किल वक्त में लड़कियों के पैरों में ना जाने अंधविश्वासों की कितनी बेड़ियां भी डाल दी जाती हैं । शहरों में तो हालात काफी सुधरे हुए हैं पर अगर गांव की ओर चलें तो वहां हालात काफी दयनीय हैं । जी हां शहरों में सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन गांव-देहात में आज भी लाखों लड़कियां पीरियड्स के दौरान न्यूजपेपर औऱ कपड़े का इस्तेमाल करती हैं जिसकी वजह से उनके उन अंगों में कई बार चोट भी आ जाती है । अक्षय कुमार की फिल्म ‘पैडमैन’ ने पूरे सोसायटी में महिलाओं को हर महीने होने वाली प्रॉब्लम पीरियड्स को लेकर एक मुहीम शुरू की है । यह फिल्म एक सत्य घटना और ऐसे इंसान पर आधारित है, जिसने अपनी असल जिंदगी में ग्रामीण महिलाओं के लिए सस्ते पैड बनाने वाली मशीन बनाई और फिर महिलाओं को घर जा जाकर घरेलू पैड मुफ्त में मुहईया कराए ताकि उनकी मासिक धर्म से संबंधित परेशानी कुछ कम हो सके फिर धीरे-धीरे वह पैडमैन के नाम से फेमस हो गए । ‘पैडमैन’ समझाएगा वुमन का दर्द

पीरियड्स का दर्द के बारे में पता होना चाहिए हर लड़के को

अगर हम बात करें पीरियड्स की तो, ये प्रॉब्लम लड़कियों को 12-13 साल से शुरु होकर 50-55 उम्र तक होती है । ये दिन लड़कियों के मुश्किल और दर्दनाक दिनों में से होते हैं । कुछ लड़कियों को तो इसमें इतना अधिक दर्द होता है कि उनके लिए सीधा खड़ा होना भी पॉसिबल नहीं होता इतना ही नहीं बल्कि इस मुश्किल वक्त में लड़कियों के पैरों में ना जाने अंधविश्वासों की कितनी बेड़ियां भी डाल दी जाती हैं ।अगर हम बात करें पीरियड्स की तो, ये प्रॉब्लम लड़कियों को 12-13 साल से शुरु होकर 50-55 उम्र तक होती है । ये दिन लड़कियों के मुश्किल और दर्दनाक दिनों में से होते हैं । कुछ लड़कियों को तो इसमें इतना अधिक दर्द होता है कि उनके लिए सीधा खड़ा होना भी पॉसिबल नहीं होता इतना ही नहीं बल्कि इस मुश्किल वक्त में लड़कियों के पैरों में ना जाने अंधविश्वासों की कितनी बेड़ियां भी डाल दी जाती हैं ।  शहरों में तो हालात काफी सुधरे हुए हैं पर अगर गांव की ओर चलें तो वहां हालात काफी दयनीय हैं । जी हां शहरों में सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन गांव-देहात में आज भी लाखों लड़कियां पीरियड्स के दौरान न्यूजपेपर औऱ कपड़े का इस्तेमाल करती हैं जिसकी वजह से उनके उन अंगों में कई बार चोट भी आ जाती है ।  अक्षय कुमार की फिल्म ‘पैडमैन’ ने पूरे सोसायटी में महिलाओं को हर महीने होने वाली प्रॉब्लम पीरियड्स को लेकर एक मुहीम शुरू की है । यह फिल्म एक सत्य घटना और ऐसे इंसान पर आधारित है, जिसने अपनी असल जिंदगी में ग्रामीण महिलाओं के लिए सस्ते पैड बनाने वाली मशीन बनाई और फिर महिलाओं को घर जा जाकर घरेलू पैड मुफ्त में मुहईया कराए ताकि उनकी मासिक धर्म से संबंधित परेशानी कुछ कम हो सके फिर धीरे-धीरे वह पैडमैन के नाम से फेमस हो गए ।  ‘पैडमैन’ समझाएगा वुमन का दर्द

शहरों में तो हालात काफी सुधरे हुए हैं पर अगर गांव की ओर चलें तो वहां हालात काफी दयनीय हैं । जी हां शहरों में सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन गांव-देहात में आज भी लाखों लड़कियां पीरियड्स के दौरान न्यूजपेपर औऱ कपड़े का इस्तेमाल करती हैं जिसकी वजह से उनके उन अंगों में कई बार चोट भी आ जाती है ।

अक्षय कुमार की फिल्म ‘पैडमैन’ ने पूरे सोसायटी में महिलाओं को हर महीने होने वाली प्रॉब्लम पीरियड्स को लेकर एक मुहीम शुरू की है । यह फिल्म एक सत्य घटना और ऐसे इंसान पर आधारित है, जिसने अपनी असल जिंदगी में ग्रामीण महिलाओं के लिए सस्ते पैड बनाने वाली मशीन बनाई और फिर महिलाओं को घर जा जाकर घरेलू पैड मुफ्त में मुहईया कराए ताकि उनकी मासिक धर्म से संबंधित परेशानी कुछ कम हो सके फिर धीरे-धीरे वह पैडमैन के नाम से फेमस हो गए ।

‘पैडमैन’ समझाएगा वुमन का दर्द

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