नई दिल्ली. बिहार के अररिया लोकसभा क्षेत्र के उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी की हार के बाद अब राजग गठबंधन इसकी समीक्षा कर रहा होगा कि आखिर सीएम नीतीश कुमार की छवि का लाभ राजग को क्यों नहीं मिला. अररिया उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार को पिछली बार से अधिक वोट मिले. भाजपा प्रत्याशी प्रदीप सिंह को पिछले चुनाव के मुकाबले लगभग पौने दो लाख ज्यादा वोट मिले. पार्टी को सीएम नीतीश कुमार की साफ-सुथरी छवि का लाभ भी मिला. बावजूद इसके भाजपा इस सीट पर राजद को पटखनी नहीं दे पाई. यह पार्टी के लिए चिंतनीय बात है. आइए जानते हैं अररिया में भाजपा की हार की वजहें क्या रहीं.
1. गुटबाजी
अररिया उपचुनाव में उम्मीदवारी को लेकर पहले से ही भाजपा में गुटबाजी हो रही थी. पार्टी के कुछ नेता वर्तमान प्रत्याशी प्रदीप सिंह के मुकाबले सिकटी विधानसभा के विधायक विजय मंडल को यहां से बेहतर उम्मीदवार बता रहे थे. यह अलग बात है कि विजय मंडल ने प्रदीप सिंह के साथ मिलकर चुनाव प्रचार किया. खुद सीएम नीतीश कुमार और भाजपा के वरिष्ठ नेता डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी भी प्रचार में जुटे, लेकिन भाजपा की हार नहीं टल सकी. परिणाम के बाद भाजपा प्रत्याशी प्रदीप सिंह ने कहा भी कि उनके साथ भितरघात हुआ है.
2. मांझी वोट खिसके
अररिया लोकसभा के उपचुनाव से पहले पूर्व सीएम जीतन राम मांझी ने राजग गठबंधन से खुद को अलग कर लिया था. यहां से जीते राजद उम्मीदवार सरफराज आलम को मिले 5 लाख से अधिक वोटों के पीछे, क्षेत्र के मांझी वोटों को ही माना जा रहा है. पूर्व सीएम मांझी के राजग में रहते यह वोट निश्चित रूप से भाजपा को मिलता. लेकिन चुनाव के कुछ ही दिन पहले मांझी के राजद गठबंधन में जाने की घटना ने भाजपा से उसकी जीत छीन ली.
3. गढ़ में सेंधमारी
उपचुनाव में राजद की जीत ने यह साबित किया कि भाजपा राजद के परंपरागत वोट बैंक को नहीं तोड़ पाई. अलबत्ता राजद ने जरूर उसके ही वोटों में सेंधमारी कर ली. दरअसल, अररिया के सिकटी विधानसभा क्षेत्र से विधायक विजय मंडल भाजपा के हैं. लिहाजा यहां के वोट भाजपा को मिलना, तय माना जा रहा था. लेकिन आश्चर्यजनक रूप से इस विधानसभा में बढ़त बनाने के बावजूद राजद उम्मीदवार के खाते में 70 हजार से अधिक वोट गए. पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा और जदयू को मिलाकर सिकटी में 145847 वोट मिले थे. इस बार सिर्फ 87070 वोट ही मिले. इससे साफ है कि ये वोट राजद के खाते में गए.
4. सहानुभूति का असर
अररिया में राजद उम्मीदवार की जीत के पीछे सबसे बड़ा कारण विजेता सरफराज आलम को सहानुभूति वोटों का मिलना भी बताया जा रहा है. सरफराज यहां के दिवंगत सांसद तस्लीमुद्दीन के बेटे हैं. पूर्व सांसद तस्लीमुद्दीन की इस क्षेत्र में गहरी पैठ रही है. उनके परंपरागत वोटों में भाजपा सेंध नहीं लगा सकी. ऊपर से पूर्व सीएम जीतनराम मांझी के राजद से जुड़ने के बाद सरफराज के खाते में मांझी तबके का वोट भी गया. इसलिए भी भाजपा के उम्मीदवार यहां पर सरफराज आलम से पिछड़ गए.