New Delhi : गोरखपुर अस्पताल में गंभीर रूप से बीमार करीब 60 बच्चों की दर्दनाक मौत के लिए आॅक्सीजन की कमी को कारण माना जा रहा है। साथ ही मामले में एक और बड़ा खुलासा हुआ है। अस्पताल के लोगों का कहना है कि डॉ कफील अहमद ने ऑक्सीजन चुराकर छिपा दी थी जब हालत बिगड़ी तो दो-चार सिलेंडर लाकर दे दिए और हीरो बन गए।देखे फोटो: नवाजुद्दीन सिद्दकी ने अपने ही बेटे को बनाया श्री कृष्ण, बोले…
साथ ही कानून के जानकार कहते हैं कि इस मामले में अस्पताल प्रशासन और आक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी दोनों पर घोर लापरवाही और गैर इरादतन हत्या का मामला बनता है। कंपनी भी नोटिस देने की आड़ लेकर नहीं बच सकती क्योंकि उसे मालूम था कि आक्सीजन की सप्लाई रुकने का क्या परिणाम होगा।
ये कोई दुर्घटना नहीं थी बल्कि मैनमेड त्रासदी है क्योंकि आक्सीजन की कमी की जानकारी पहले से थी। अस्पताल प्रशासन को ये भी काफी पहले से पता था कि आक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी को भुगतान नहीं हुआ है और वह आपूर्ति रोक सकती है। कानून साफ है कि अगर जानबूझकर हुई लापरवाही में किसी की जान जाती है तो दोषी व्यक्ति क्रिमिनल निग्लीजेंस का जिम्मेदार होता है।
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वरिष्ठ वकील केटीएस तुलसी कहते हैं कि इस मामले में जिस जिस की जानकारी में था कि अस्पताल में आक्सीजन की कमी है और उससे मरीजों की मौत हो सकती है, फिर भी उन्होंने जरूरी उपाय नहीं किये, उन सभी पर आपराधिक मामला बनता है। कंपनी भी जिम्मेदार है। अगर पैसा भुगतान न होने पर आपूर्ति रोकने का उसने नोटिस दिया था, तो भी उसको निश्चित तौर पर आपूर्ति रोकने से पहले समय और वक्त के साथ ठोस रूप से सूचित करना चाहिए था कि इस वक्त से आक्सीजन आपूर्ति नहीं होगी और इसके लिए जरूरी उपाय कर लें।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश एसआर सिंह भी कहते हैं कि कंपनी नोटिस देने भर से नहीं बच सकती। कानून ये मान कर चलेगा कि कंपनी को आक्सीजन की कमी होने के गंभीर परिणामों की जानकारी थी। जानकारी होने के कारण कंपनी पर भी गैर इरादतन हत्या (आइपीसी धारा 304 भाग दो) में मामला बनेगा, जिसमें दस साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है। ये क्रिमिनल निग्लीजेंस का केस है। अस्पताल प्रबंधन भी जिम्मेदार है। अस्पताल का यह भी फर्ज था कि वह मरीजों को बताता कि आक्सीजन की कमी होने वाली है और वे कहीं और जा सकते हैं।
सिंह की इस बात से सुप्रीम कोर्ट के वकील डीके गर्ग भी इत्तफाक रखते हैं। वे तो इस बारे में कंपनी को भी जिम्मेदार मानते हैं। उनका कहना है आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति अचानक बंद नही होती। जीवन रक्षक चीज की आपूर्ति करने वाली कंपनी अचानक उसे नहीं रोक सकती। अगर उसे पैसे नही मिले और उसकी मजबूरी थी, तो भी उसे इसकी जानकारी मरीजों और जनता को देनी चाहिए थी। इसके लिए वह अस्पताल में नोटिस छपवा सकती थी। घोषणा कराती या फिर अखबार में नोटिस देती, जो कि उसने नहीं किया।
हालांकि कंपनी की जिम्मेदारी को लेकर कानूनविदों में मतभेद भी है। पूर्व अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी कहते हैं कि कंपनी ने लीगल नोटिस दिया था वह जिम्मेदार नहीं है। उसकी कुछ व्यापारिक मजबूरियां होती हैं। उसे भी किसी से लेकर आपूर्ति करनी होती है। लेकिन अस्पताल प्रशासन साफ तौर पर क्रिमनल निग्लीजेंस का जिम्मेदार है और उसके खिलाफ मामला दर्ज होना चाहिए। वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा भी रोहतगी से सहमति जताते हुए कहते है कि कंपनी पर जिम्मेदारी नहीं बनती लेकिन अस्पताल प्रशासन पर आइपीसी की धारा 287 और 304ए में मामला बनता है।
गर्ग तो आपराधिक साजिश (आइपीसी धारा 120बी ) को भी 304 भाग दो के साथ जोड़ने की बात करते हैं। उनके मुताबिक अस्पताल प्रशासन और कंपनी दोनों को मालूम था कि आक्सीजन बंद हो जाएगी। हालांकि तुलसी इससे सहमत नहीं हैं उनका कहना है कि आपराधिक साजिश की धारा तब जुड़ती है जब किसी अपराध को अंजाम देने की साजिश हो। इस मामले में ऐसा नहीं है यहां जानबूझकर साजिश नहीं रची गई।