नई दिल्ली. बिहार के अररिया लोकसभा सीट के लिए 11 मार्च को होने वाला उपचुनाव को अब ज्यादा दिन नहीं बचे हैं. ऐसे में प्रदेश में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन और प्रमुख विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल के नेता वोटों के अंकगणित को देखते हुए अपने-अपने समीकरण बना रहे हैं. यह उपचुनाव इसलिए भी दिलचस्प हो गया है क्योंकि यह महज कुछ ही महीने पहले सीएम नीतीश कुमार के महागठबंधन को छोड़कर राजग में मिलने के बाद हो रहा है.
अंग्रेजी अखबार के मुताबिक यह चुनाव नीतीश कुमार के लिए ‘टेस्ट’ है, क्योंकि राजग में रहते हुए नीतीश कुमार ने 2004 और 2009 में अररिया में इस गठबंधन को जीत दिलाई थी. लेकिन उसके बाद से राजनीतिक परिस्थितियां बदल चुकी हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद राजद के तस्लीमुद्दीन (इनके निधन के बाद ही उपचुनाव हो रहा है) यहां से सांसद बने थे. मुस्लिम बहुल सीमांचल में तस्लीमुद्दीन का प्रभाव व्यापक था. ऐसे में यह उपचुनाव ही तय करेगा कि राजग में शामिल होने के बाद सीएम नीतीश कुमार का जनता के बीच कितना प्रभाव है.
विभिन्न दलों के प्रत्याशी और चुनाव रणनीति
अररिया उपचुनाव में राजग की ओर से भाजपा नेता प्रदीप सिंह को उतारा गया है, जिन्हें 2014 के लोकसभा चुनाव में तस्लीमुद्दीन ने हराया था. उनके सामने राजद के सरफराज आलम हैं, जो दिवंगत सांसद के बेटे हैं. हालांकि सरफराज आलम को अपने पिता तस्लीमुद्दीन के जैसी लोकप्रियता हासिल नहीं है, फिर भी उन्हें यहां के मुस्लिम और यादव वोटों का आस है, जिनकी संख्या अररिया के कुल मतदाताओं में लगभग आधी है. इसके अलावा राजद की निगाहें एससी और ईबीसी वोट पर भी लगी हुई है. सरफराज की राह में बाधा सांसद पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी के उम्मीदवार विक्टर यादव भी होंगे, जो यादव वोट बैंक में हिस्सेदारी कर सकते हैं. अररिया लोकसभा क्षेत्र में 41 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं, जबकि यादव वोटों की संख्या 10 प्रतिशत है. जदयू के एक कार्यकर्ता ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि यहां असली लड़ाई राजद के एम-वाई समीकरण और भाजपा के बूथ लेवल मैनेजमेंट के बीच होनी है.
भाजपा का प्रत्याशी और बीते लोकसभा चुनाव का गणित
भाजपा के लिए इस उपचुनाव में सबसे ज्यादा चिंता प्रत्याशी के चयन को लेकर है, क्योंकि यह सीधे-सीधे 2014 के लोकसभा चुनाव में सभी प्रत्याशियों को मिले वोट के अंकगणित से जुड़ता है. लोकसभा चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी प्रदीप सिंह को 2.61 लाख वोट मिले थे, वहीं जदयू प्रत्याशी विजय मंडल के हिस्से में 2.22 लाख वोट पड़े थे. तस्लीमुद्दीन ने अकेले 4.08 लाख वोट पाकर यहां से जीत हासिल की थी. इस गणित को देखते हुए भाजपा को उम्मीद है कि जदयू के साथ मेल के बाद दोनों को मिलाकर पड़ने वाले वोट इस बार उसके खाते में जाएंगे. यह बात बीते दिनों प्रदेश के डिप्टी सीएम और भाजपा नेता सुशील मोदी ने कही भी थी. उन्होंने कहा था, ‘भाजपा 2014 में इसलिए हारी, क्योंकि वह जदयू के साथ नहीं थी. अब भाजपा-जदयू एक है. हमारे पास 70 हजार वोट ज्यादा है. इसलिए उपचुनाव में हमारी जीत होगी.’ लेकिन गौरतलब यह है कि भाजपा-जदयू की इसी एकता के बीच यह बात भी कही जा रही है कि अररिया में राजग के लिए प्रदीप सिंह से ज्यादा, विजय मंडल सही उम्मीदवार साबित होते. मंडल पहले जदयू में थे, लेकिन बाद में उन्होंने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली थी. भाजपा में रहते हुए ही उन्होंने 2015 के विधानसभा चुनाव में सिकटी की सीट भी जीती थी.
नीतीश गिना रहे उपलब्धि, विपक्षी कस रहे कमर
सीएम नीतीश कुमार के लिए अररिया का उपचुनाव सामान्य नहीं है. क्योंकि इस सीट का परिणाम यह तय करने में मदद करेगा कि 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा के सामने उनकी स्थिति क्या और कैसी रहती है. इसलिए उपचुनाव के दौरान होने वाली सभाओं में नीतीश कुमार अपनी, सरकार की और राजग के साथ साझा शासनकाल की उपलब्धियां गिनाने से नहीं चूकते हैं. खासकर अररिया में मुस्लिम आबादी को देखते हुए वे इस समुदाय को स्पष्ट संदेश देते हैं, ‘राजग के शासनकाल के दौरान किए गए विकास कार्यों की किसी से तुलना नहीं हो सकती.
इसलिए आप लोग तय करें कि आपको ‘परफॉर्मर’ और ‘नॉन परफॉर्मर’ में से किसको चुनना है.’ वहीं, विपक्षी नेता राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद को जेल भेजने के पीछे भाजपा की सोची-समझी चाल का आरोप लगाते हुए नीतीश कुमार पर हमले करते हैं. बीते दिनों जदयू के बागी नेता शरद यादव ने एक जनसभा में राजद प्रत्याशी के लिए वोट मांगते हुए लोगों से अपील की थी, ‘नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार ने लालू के खिलाफ साजिश की. आप चुनाव में डबल इंजन वाली इस सरकार के प्रत्याशी को हराकर इसका जवाब दें.’ शरद के अलावा राजद नेता तेजस्वी यादव भी सीएम नीतीश कुमार और पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनावी सभाओं में लालू प्रसाद यादव को लेकर हमले करते रहते हैं.