गोरखपुर.मस्जिद में नमाज अदा करना हर मुसलमान के लिए फक्र की बात है। लेकिन, सीएम योगी आदित्यनाथ के शहर गोरखपुर में एक ऐसी मस्जिद है जहां उसके निर्माण (करीब 400 साल) से आज तक किसी ने नमाज़ अदा नहीं की है। बताया जाता है कि इस मस्जिद का निर्माण एक तवायफ ने करवाया था। हालांकि अब ये मस्जिद खंडहर में तब्दील हो चुकी है।
-गोरखपुर के नसीराबाद इलाके में खंडहर में तब्दील हो चुकी इस मस्जिद में आज तक किसी ने नमाज नहीं अदा की। मोहल्ला नसीराबाद आबादी की कदीम मस्जिद आज भी वीरान और नमाज से महरूम है। इलाके के बुजुर्ग भी बताते हैं- “उन्हें नहीं मालूम की इस मस्जिद में कभी नमाज पढ़ी गई है या नहीं। देखभाल नहीं होने के कारण भले ही यहां वीरानी छायी हुई है, लेकिन मस्जिद की रूहानियत से भी यहां पर एक अलग तरह का अहसास होता है।”
-उस जमाने में मस्जिद बनाने के लिए अच्छी खासी रकम अदा करनी पड़ी होगी। इसके अलावा मस्जिद के लिए काबे का रूख वगैरह भी तय करना पड़ा होगा। इसलिए इस बात को मजबूती मिलती है की खातून के नाम पर जायदाद वगैरह रही होगी जिससे इस मस्जिद का निर्माण संभव हो पाया होगा।
तवायफ ने बनवाया था मस्जिद
-बुजुर्गों की माने तो मस्जिद को एक तवायफ ने तामीर करवाया था, जिसकी वजह से इसमें कभी नमाज नहीं पढ़ी गई। ये बात भी काबिले जिक्र है कि मुल्क की बहुत सी तारीखी मस्जिदें भारतीय पुरातत्व विभाग के कब्जे में है। उनमें नमाज की इजाजत नहीं है।
-हाजी तहव्वर हुसैन ने बताया- “इस मस्जिद को अल्लाह के सिवा कोई और देखने वाला नहीं है। इसका कोई वारिस भी नहीं बचा है अगर शरीयत इस मस्जिद में नमाज अदा करने की इजाजत नहीं देती हो इस जगह को लाइब्रेरी या इस्लामिक इंफार्मेशन सेंटर बना देना चाहिए।”
-मस्जिद के सामने एक हीरा लाल का घर है। हाजी तहव्वर हुसैन के अनुसार, वो हमेशा ही इसे साफ़ करवाते रहते हैं।
क्यों बनवाया था मस्जिद
-मोहल्ले के एक बुजुर्ग का कहना है- “तवायफ की मंशा रही होगी वह दुनिया से रुखसत होने के पहले मस्जिद का निर्माण करवाया दें और लोग उसमें नमाज़ पढ़ने आएं, तो उसका पाप धुल जाएंगें। लेकिन, उसकी ये मंशा भी पूरी नही हुई क्योंकि गलत काम से कमाए गए पैसौं से ऐसे काम नहीं कराए जाते हैं।”
क्या कहना है जानकारों का
-जानकारों की माने तो मस्जिद की वीरानी में जरूर कोई न कोई अहम राज छुपा हुआ है। जो वक्त के आगोश में गुम हो चुका है। एक लंबे अरसे से जिस तरह यह उजाड़ है, उसकी एक अहम वजह मोहल्ले में मुस्लिम आबादी का ना होना भी है। वहीं, इसके वारिसों का कोई पता नहीं है।
-सरकारी बंदोबस्त (मोहल्ले के नक्शे) सन 1914 में हुआ उसमें आज भी मस्जिद दर्ज है। इससे अंदाजा होता है की ये मस्जिद कई सौ साल पुरानी है। इसकी बनावट और इसमें इस्तेमाल में लायी गयी ईंट और चूना भी इसके बरसों पुराने होने की गवाही देता है।
-इसके तामीर में वहीं चीजें लगी हैं जो उर्दू बाजार की जामा मस्जिद, बसंतपुरसराय में इस्तेमाल किया गया है। इससे एक अंदाजा लगाया जा सकता है कि मस्जिद लगभग 400 साल से ज्यादा पुरानी है।
-तकरीबन 1200 स्कवायर फिट में मौजूद इस मस्जिद की जगह पर साल 2000 में कुछ शरारती तत्वों के जरिए कब्जा करने की कोशिश की गयी थी, लेकिन मुसलमानों के विरोध के कारण यह मुमकिन नहीं हो सका। कुछ माह बाद मस्जिद के आगे खाली जमीन पर दुकानें बनवा दी गईं और इसकी देखरेख की जिम्मेदारी रिटायर्ड हाईडिल अफसर मोबिनुल हक को सौंप दी गयी ताकि इस जगह की हिफाजत हो सके। फिलहाल यहां दुकान हैं और उसमें कारोबार भी किया जा रहा है।
खस्ताहाल है मस्जिद
-मस्जिद खस्ताहाल है। मोहल्ला नसीराबाद की आबादी तकरीबन 5 हजार है। इनमें तकरीबन एक हजार घर मुसलमानों के बताये जाते हैं, लेकिन जहां यह मस्जिद है इसके आसपास में मुसलमानों के सिर्फ एक-दो घर ही हैं। जबकि सामने एक मस्जिद और है जिसे ‘फारूकी साहब की मस्जिद’ के नाम से जाना जाता है। इसमें मुसलमान नमाज अदा करते हैं।