शादी के कार्ड पर चिरंजीवी और आयुष्मती क्यों लिखवाया जाता है जानिए वजह…

wedding-cardअक्सर आपने देखा होगा कि हिन्दू समुदाय में शादी विवाह के अवसर पर कार्ड छपवाते समय लड़के के नाम के सामने चिरंजीवी और लड़की के नाम के आगे आयुष्मती लिखा होता है।

लेकिन क्या कभी आपने इस बात पर गौर किया है कि यह क्यों लिखा होता है या फिर इसके पीछे क्या मान्यता होती है। दरअसल यह परंपरा एक पौराणिक कथा के ऊपर है। आज हम आपको इस पौराणिक कथा के बारे में बताते हैं।
बहुत समय पहले एक ब्राह्मण दंपति रहते थे जिनकी कोई संतान नही थी, उस ब्राह्मण ने महामाया की तपस्या की, माता जी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्राह्मण से वरदान मांगने को कहा:  ब्राह्मण ने वरदान में पुत्र मांगा। माता ने कहा: मेरे पास दो तरह के पुत्र हैं। पहला दस हजार वर्ष जिएगा, लेकिन महा मूर्ख होगा। दूसरा:  पन्द्रह वर्ष (अल्पायु) जिएगा, लेकिन महा विद्वान होगा । तुम्हें किस तरह का पुत्र चहिए। ब्राह्मण बोला माता मुझे दूसरा वाला पुत्र दे दो। माता ने कहा: तथास्तु!
इस घटना के कुछ दिन बाद ब्राह्मणी ने पुत्र को जन्म दिया लालन- पालन किया धीरे-धीरे पांच वर्ष बीत गये। ब्राह्मण ने अपने पुत्र को विद्या ग्रहण करने के लिए काशी भेज दिया। लेकिन महामाया के कथन को याद कर दिन-रात दोनों पुत्र के वियोग में दुखी रहने लगे। धीरे-धीरे समय बीता पुत्र के मृत्यु का समय निकट आया। काशी के एक सेठ ने अपनी पुत्री के साथ उस ब्राह्मण पुत्र का विवाह कर दिया। पति-पत्नी के मिलन की रात उसकी मृत्यु की रात थी। यमराज नाग रूप धारण कर उसके प्राण हरने के लिए आये। उसके पती को डस लिया। पत्नी ने नाग को पकड़ कर कमंडल में बंद कर दिया। तब तक उसके पती की मृत्यु हो गयी। पत्नी महामाया की बहुत बडी भक्त थी वह अपने पति को जीवित करने के लिए माँ की आराधना करने लगी। आराधना करते-करते एक माह बीत गया।
 
देवों ने माता से अनुरोध किया और कहा -हे माता हम लोंगो ने यमराज को छुडाने की बहुत कोशिश की, लेकिन छुडा नही पाये -हे! जगदम्बा अब तूही यमराज को छुडा सकती है। माता जगदम्बा प्रगटी और बोली: -हे! बेटी जिस नाग को तूने कमंडल में बंद किया है वह स्वयं यमराज हैं उनके बिना यम लोक के सारे कार्य रुक गये हैं।  हे! पुत्री यमराज को आजाद करदे । माता के आदेश का पालन करते हुए दुल्हन ने कमंडल से यमराज को आजाद कर दिया। यमराज कमंडल से बाहर आये और माता को तथा दुल्हन के सतीत्व को प्रणाम किया। माता की आज्ञा से यमराज ने उसके पती के प्राण वापस कर दिये। तथा चिरंजीवी रहने का वरदान दिया।
आयुष्मती के पीछे यह है मान्यता
पौराणिक काथ के अनुसार राजा आकाश धर की कोई सन्तान नही थी। नारद जी ने कहा: सोने के हल से धरती का दोहन करके उस भूमि पर यज्ञ करो सन्तान जरूर प्राप्त होगी। राजा ने सोने के हल से पृथ्वी जोती, जोतते समय उन्हें भूमि से कन्या प्राप्त हुई । कन्या को महल लेकर आये, लेकिन महल में एक शेर खडा था, जो कन्या को खाना चाहता था, डर के कारण राजा के हाथ से कन्या छूट गई शेर ने कन्या को मुख में धर लिया, कन्या को मुख में धरते ही शेर कमल पुष्प में परिवर्तित हो गया, उसी समय विष्णु जी प्रगटे और कमल को अपने हाथ से स्पर्श किया। स्पर्श करते ही कमल पुष्प उसी समय यमराज बनकर प्रगट हुआ ,और वो कन्या पच्चीस वर्ष की युवती हो गई।
राजा ने उस कन्या का विवाह विष्णु जी से कर दिया। यमराज ने उसे आयुषमती कह कर पुकारा और आयुषमती का वरदान दिया तब से विवाह में पत्र पर कन्या के नाम के आगे आयुषमती लिखा जाने लगा।

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com