राजस्थान में होने वाले उपचुनाव को राज्य विधानसभा चुनाव के बड़े मुकाबले से पहले सेमीफाइनल के तौर देखा जा रहा है। राजस्थान में दिसंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। अलवर और अजमेर की लोकसभा सीटों और मंडलगढ़ की विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव के विजेताओं को सत्ता में रहने के लिए सिर्फ एक साल मिलेगा, लेकिन बीजेपी और कांग्रेस के लिए इस जीत के बड़े मायने हैं। इससे यह पता चलेगा कि राजस्थान में हवा किस तरफ बह रही है।
‘घृणा की राजनीति कर रही है बीजेपी’
सचिन पायलट ने बताया, ‘कैंपेन में हमारे सभी सीनियर नेताओं की मौजूदगी का मतलब यह है कि हम यह चुनाव जीतने के लिए लड़ रहे हैं। गहलोत गुजरात कैंपेन से तरोताजा होकर लौटे हैं, जहां कांग्रेस ने कड़ी चुनौती पेश की थी। बीजेपी यहां भी घृणा और हिंसा की राजनीति कर रही है…हालांकि जैसा कि राहुल गांधी ने गुजरात में कहा, हम यहां भी उसी अंदाज में काम करेंगे और तीनों उपचुनाव जीतने के लिए प्यार और सौहार्द की राजनीति करेंगे। लोगों ने कांग्रेस के लिए अपना मन बना लिया है।’
बीजेपी विधायकों की टिप्पणी से विवाद
अजमेर और अलवर लोकसभा की 16 विधानसभा सीटों में से 14 पर बीजेपी काबिज है, जबकि एक सीट कांग्रेस के पास है। बीजेपी के सीनियर नेताओं सांवर लाल जाट और चंद नाथ की मौत के कारण अजमेर और अलवर लोकसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं। यादव बहुल अलवर सीट पर दोनों पार्टियों ने इसी समुदाय के उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। अलवर में कांग्रेस के उम्मीदवार करण सिंह यादव (70 साल) का मुकाबला बीजेपी के जसवंत सिंह यादव से है। इस इलाके में गोरक्षा और मुस्लिम आबादी में बढ़ोतरी को लेकर बीजेपी विधायकों की हालिया टिप्पणी से विवाद पैदा हो गया है।
बीजेपी के एक सीनियर नेता का कहना था कि कांग्रेस पहले अजमेर में अपनी हार देख रही है और इस कारण से पूर्व सांसद सचिन पायलट यहां से चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। हालांकि, कांग्रेस के एक सीनियर नेता का कहना था कि यह सोची-समझी रणनीति है, क्योंकि पायलट को एक सीट पर सिमटने के बजाय तीनों उपचुनाव पर फोकस करने की जरूरत है।