लंबे समय से चली आ रही खींचतान के बाद आज आखिर अखिलेश और शिवपाल की राहें अलग-अलग दिखाई दी। चाचा और भतीजे ने एक ही दिन दो अलग-अलग शहरों से अपनी चुनावी यात्रा शुरू की है। एक ओर अखिलेश ने जहां कानपुर से विजय यात्रा निकाली तो शिवपाल ने मथुरा से सामाजिक परिवर्तन यात्रा के साथ चुनावी शंखनाद किया। प्रसपा प्रमुख शिवपाल सिंह यादव की ओर से सपा के सामने गठबंधन के लिए समझौते को दी गई आखिरी तारीख कल सोमवार को खत्म हो गई।

सपा में वर्चस्व को लेकर छिड़ी पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह यादव के बीच की सियासी जंग का पटाक्षेप होता दिखाई नहीं दे रहा है। दोनों के बीच समझौते के अब तक हुए प्रयास विफल ही रहे हैं। प्रसपा प्रमुख शिवपाल सिंह यादव ने 28 सितंबर को अपने बेटे आदित्य यादव के सहकारी बैंक के सभापति के निर्वाचन के दौरान कहा था कि वह सपा से समझौते का 11 अक्टूबर तक इंतजार करेंगे। अगर जवाब आ जाता है तो कोई बात नहीं और अगर जवाब नहीं आता है, तो वह अपनी चुनावी तैयारी में जुट जायेंगे। सोमवार को शिवपाल की सपा को दी गई अंतिम तारीख निकल गई लेकिन सपा की ओर से समझौते को लेकर कोई जवाब नहीं आया। इसके बाद आज शिवपाल सिंह डॉ. राम मनोहर लोहिया की पुण्यतिथि पर चुनावी शंखनाद सामाजिक परिवर्तन रथयात्रा के साथ किया। रथयात्रा श्रीकृष्ण की जन्मस्थली मथुरा से शुरू होकर आगरा, फिरोजाबाद, इटावा, औरैया, जालौन होकर रायबरेली जायेगी और इसका समापन 27 नवंबर को होगा।
वहीं दूसरी ओर कानपुर से विजय यात्रा शुरू करते समय अखिलेश ने कहा कि किसानों, युवाओं और व्यापारियों सबसे आशीर्वाद लेने के लिए समाजवादी रथ चला है। भाजपा की सरकार को हटाने के लिए समाजवादी रथ की विजय यात्रा शुरू की है। किसानों और कानून को रौंदने वाली सरकार हटानी है। यह दोबारा सत्ता में आई तो संविधान को भी कुचल देगी।
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