पूरे शहर की खाक छानने के बाद भी अफसरों को झुमका लगाने की जगह नहीं मिल सकी। लाखों रुपये का प्रोजेक्ट आखिरकार धड़ाम होने के कगार पर आ गया है। विकास प्राधिकरण ने ऐलान किया था कि झुमके को बरेली की पहचान बनाई जाएगी और ऐसे संवारा जाएगा कि लोग इसे देखने आएंगे लेकिन जगह ही नहीं मिलने की वजह से प्रोजेक्ट को फिलहाल ब्रेक लगता दिख रहा है।
दुनिया में अपने सूफियाना अंदाज के लिए प्रसिद्ध बरेली सुरमे के लिए भी जाना जाता है। अभिनेत्री साधना पर फिल्माए गाने झुमका गिरा रे, बरेली के बाजार में … से शहर का रिश्ता झुमके के साथ भी जुड़ गया। बरेली विकास प्राधिकरण ने इसी सोच के तहत झुमके को शहर की पहचान बनाने का प्रोजेक्ट तैयार किया था। प्राधिकरण ने शहर में एक चौराहे पर झुमका लगाकर उसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजना बनाई थी। फिर शुरू हुई जगह की तलाश जहां झुमका लगाया जा सके। पहली पसंद बना डेलापीर चौराहा। वहां रोटरी बनाने का फैसला हुआ। बीच चौराहे की जगह घेरकर एक रिहर्सल शुरू की गई। लेकिन, प्रोजेक्ट फ्लाप हो गया। उसके बाद दिल्ली रोड परसाखेड़ा बाईपास को चुना गया लेकिन बात यहां भी नहीं बनी। विकास प्राधिकरण ने अगली जगह चौकी चौराहा चुनी। सर्वे हुआ लेकिन यहां भी झुमका नहीं लग सका। आखिर में गांधी उद्यान के सामने झुमका लगाने की योजना बनाई गई लेकिन यहां भी काम शुरू नहीं हो सका। करीब 3 साल तक झुमका लेकर अफसर शहर में घूमते रहे मगर उनको जगह ही नहीं मिल सकी और अब यह प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में चला गया है।
झुमका गिरा रे…, गाने से जुड़ा था रिश्ता
मेरा साया फिल्म में साधना पर फिल्माए गाने झुमका गिरा रे, बरेली के बाजार में…, ने रातोंरात शहर को पूरे देश में चर्चा में ला दिया। वैसे तो बरेली में बांस और सुरमे का कारोबार है लेकिन इस गाने की वजह से झुमके का रिश्ता जुड़ गया। गाने में बरेली के जिक्र को लेकर कई तरह की चर्चाएं भी होती रहती हैं। यहां किसका झुमका और किस बाजार में गिरा, इसका कोई ठोस वाकया नहीं मिलता लेकिन बरेली आने वाले हर शख्स के जेहन में यह गाना जरूर आता है।
मुंबई के रजनीश ने बनाया था झुमके का डिजाइन
बरेली विकास प्राधिकरण ने झुमके के लिए पूरे देश से डिजाइन मांगे थे। देश भर से लोगों ने झुमके के डिजाइन भेजे थे। उसमें से 28 डिजाइन फाइनल में पहुंचे थे। आखिर में मुंबई के डिजायनर रजनीश अग्रवाल का झुमका चुना गया था। बीडीए ने रजनीश को 25 हजार रुपये का पुरस्कार भी दिया था। डिजाइन में फोकस झुमके पर था और लैंडस्केप में जरदोजी कार्य और सुरमादानी को रखा गया। झुमका फाइवर ग्लास से तैयार किया जाना था।
बीडीए वीसी ने की थी झुमका चौराहे की पहल
पर्यटन विकास विभाग के विशेष सचिव व एमडी पर्यटन विकास निगम की जिम्मेदारी संभालने के बाद 2016 में डा. शशांक विक्रम ने बीडीए उपाध्यक्ष की कमान संभाली थी। उन्होंने ही झुमके का प्रोजेक्ट तैयार किया और इसके लिए जनता से राय ली थी। स्कीम बनाकर डेलापीर चौराहे पर रोटरी बनाने का फैसला लिया था। 10 लाख रुपये का एस्टीमेट को भी मंजूरी दी थी। लगातार जगह बदलती रही मगर झुमका नहीं लग सका। इसी दौरान डा. शशांक विक्रम दक्षिण अफ्रीका के डरबन के दूतावास में काउंसलिंग जर्नल बन गए थे।
3.30 करोड़ा रुपये का बना था प्रोजेक्ट
शुरू में यह प्रोजेक्ट 10 लाख रुपये से शुरू हुआ था और बाद में इसका बजट लगातार बढ़ता गया। आखिरी बार विकास प्राधिकरण ने जब कंपनी बाग का चुनाव किया तो यह प्रोजेक्ट 3.30 करोड़ रुपये का बन गया था। इसमें झुमके के साथ ही बड़ी रोटरी बनाने का प्रस्ताव था। शशांक विक्रम का तबादला होने के बाद अफसरों ने इस प्रोजेक्ट में रुचि नहीं ली और मामला जहां का तहां रुक गया। देश दुनिया में बरेली की पहचान बना चुके झुमके के लिए अफसर एक अदद चौराहा नहीं खोज पा रहे हैं।
वीसी बीडीए डॉ. सुरेन्द्र पांडेय ने बताया कि बीडीए जल्द झुमका चौराहे के लिए जमीन चिन्हित कर लेगा। इसके लिए सर्वे का काम चल रहा है। पहले से बना प्रोजेक्ट बीच में नहीं छोड़ा जाएगा।