देहरादून: ‘कश्मीरियों के लहू से दिल्ली में बैठे नेताओं की राजनीति चल रही हैं। कश्मीर की आवाम भी देश के नजरिये से खुश नहीं है। जब तक लोग कश्मीरियों को नफरत और शक की निगाहों से देखना बंद नहीं करेंगे, कश्मीर सुलगता रहेगा।’ कुछ इसी तरह अल्फाजों में जम्मू कश्मीर के साहित्यकार निदा नवाज ने कश्मीर और कश्मीरियों की बात रखी। 
मौका था ‘दून लिटरेचर फेस्टिवल’ का। फेस्टिवल के दूसरे दिन शनिवार को ‘कश्मीर और कश्मीरियत’ पर निदा नवाज ने खुलकर केंद्र सरकार और पाकिस्तान परस्त आतंकवादियों की खिलाफत की। कहा, हम आतंकवादियों के सख्त खिलाफ हैं, लेकिन दिल्ली में बैठी सरकार जब तक कश्मीरियों को जिंदा बम समझना बंद नहीं करेगी, कश्मीर समस्या का समाधान नहीं होगा।
कहा, कश्मीर समस्या के लिए भारत-पाकिस्तान के राजनेता बराबर दोषी हैं। पिछले 27 वर्षों में कश्मीर में 60 हजार लोग मारे जा चुके हैं, जिसमें हमारे सैनिक, पुलिस, आम नागरिक के साथ-साथ आतंक फैलाने आए आतंकवादी भी शामिल हैं। इसके लिए कश्मीर में मजहब की दुकानें बंद करने की जरूरत है। क्योंकि कश्मीर की आवाम किसी एक मजहब से नहीं बंधी है। कश्मीर की 90 फीसद महिलाएं और 70 फीसद पुरुष आज तनाव में जी रहे हैं। कहा कि मजहब सबसे बड़ा राजनैतिक खतरा है।
सबको अपने तरह का सिनेमा बनाने की आजादी
कार्यक्रम के तीसरे सत्र में ‘सिनेमा और समाज’ विषय पर फिल्मकार अविनाश दास ने फिल्म बनाने में विषय के चुनाव पर भी बात रखी। कहा कि हर किसी को अपने तरह का सिनेमा बनाने की आजादी है, चाहे वह संजय लीला भंसाली की पद्मावती हो या फिर मधुर भंडारकर की इमरजेंसी को लेकर बनाई गई इंदु सरकार। ‘अनारकली ऑफ आरा’ फिल्म के निर्देशक अविनाश दास ने कहा कि आज सिनेमा बाजारवादी और तकनीकी उत्पाद बन गया है। फिल्म बनाने में ‘पहले पैसे लगाओ और फिर कमाओ’ यह आम धारणा बनती जा रही है।
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