काबुल की सत्ता में तालिबान जब से काबिज हुआ है, हर दिन महिलाओं के खिलाफ कोई ना कोई फरमान जारी कर देता है. महिलाओं ने इसका विरोध किया तो उस विरोध को रोकने के लिए गोलियां चलाई गईं. महिलाओं पर कोड़े बरसाए गए और अब तालिबान ने महिलाओं को गुलामी की जंजीरों में जकड़ने के लिए नया पैंतरा अपनाया है. काबुल की सड़कों पर बुर्का ब्रिगेड को उतार दिया गया है.
तालिबान जब अपनी फ्लॉप फिलोसोफी को, गोलियों की गूंज से दबा नहीं सका, कोड़ों की मार से चुप करा नहीं सका तो आखिर में उसने काबुल की सड़कों पर अपनी बुर्का ब्रिगेड उतार दी. अगर आप सोच रहे हैं कि इस तालिबानी बुर्का ब्रिगेड की परेड का मकसद है क्या तो नजर इस बैनर पर डालिए. इसका मतलब है कि…हम मुजाहिदीनों के रवैये और व्यवहार से संतुष्ट हैं.
बुर्का पहनी महिलाओं के हाथ में क्यों थमाया गया बैनर
पश्तो बोलने वाले देश में ये बैनर अंग्रेजी में इसलिए छपवाया गया और बुर्का पहनी महिलाओं के हाथ में इसलिए थमाया गया ताकि बाकी देशों को संदेश भेजा जा सके कि अफगानिस्तान में महिलाओं पर अत्याचार नहीं हो रहा. लेकिन इस फर्जी एजेंडे की पोल इसी परेड में खुल गई जब कैमरे में हथियारबंद तालिबानियों की तस्वीरें भी कैद हुईं. महिलाएं, तालिबानी हुकुमत से वाकई संतुष्ट और खुश होतीं तो उनसे ऐसे बंदूक की नोख पर परेड नहीं कराई जाती.
अफगानी महिलाएं, खुद पर थोपे जा रहे तालिबानी फरमान के खिलाफ आवाज बुंलद कर रही हैं. शिक्षा, खेल, और खुले माहौल में सांस लेने का अपना हक मांग रही हैं जो तालिबानी मानसिकता के लिए सीधे-सीधे चुनौती है और विरोध की आग पूरे अफगानिस्तान की आधी आबादी में और ना फैले, इसलिए तालिबान ने परेड का ये पैंतरा अपनाया है.
अफगानी महिलाओं पर अत्याचार का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र में भी उठ चुका है जिसके बाद तालिबान का रुख थोड़ा नरम पड़ा है. सत्ता संभालने से पहले तालिबान की तरफ से कहा गया था कि वो महिलाओं का हक नहीं मारेगा. लेकिन सच्चाई ये है कि सत्ता संभालते ही उसने सबसे पहले महिलाओं से उनकी आजादी छीनने का काम किया और अब भी वैसा ही हो रहा है.