इन लोगों को जिंदा रहने के लिए खाना पड़ता था दोस्तों का मांस, 72 दिन ऐसे जिंदा रहे खिलाड़ी

“योग्यतम की उत्तरजीविता” (सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट) एक वैज्ञानिक सिद्धान्त है जिसका मतलब है कि जो सबसे योग्य होगा और बदलते वातावरण में अपने में बदलाव ला कर उस में एडाप्ट कर लेगा वही आगे तक जीवित रहेगा, संस्कृत में इसी को दूसरे प्रकार से यों कहा गया है- ‘दैवो दुर्बलघातकः’ यानि भगवान भी दुर्बल को ही मारते हैं। वैसे तो ये सिद्धान्त हमेशा से धरती के जीवों पर लागू होता रहो है लेकिन इसका सबसे व्यवहारिक उदारहण हैं 1972 में हुई एक प्लेन क्रैश की घटना जिसमें बचें लोगों ने सिर्फ बद् से बद्त्तर हालातों का सामना किया बल्कि जीने के लिए उन्हें अपने ही दोस्तों और परिचितों का मांस खाना पड़ा। ये घटना मानव जीवन के इतिहास में जिवट्ता की मिसाल बन गया जिस पर किताब लिखी गयी और फिल्म भी बनी।

दरअसल 13 अक्टूबर 1972 को उरुग्वे के ओल्ड क्रिश्चियन क्लब की रग्बी टीम चिली के सैंटियागो में मैच खेलने जा रही थी पर इसी दौरान मौसम खराब होने की वजह से प्लेन क्रैश हो गया। उस प्लेन में 45 लोग सवार थे, जिनमें से 12 की मौत प्लेन क्रैश के दौरान ही हो गई थी। अन्य 17 लोग घायल हो गए थे, जिन्होंने बाद में दम तोड़ दिया था। हालांकि, इस हादसे में जो लोग बचे, उन्हे मौत से ज्यादा बुरा वक्त देखना पड़ा। हादसे के पीड़ितों को -30 डिग्री सेल्सियस में 72 दिन गुजारने पड़े।

दो महिने तक -30 डिग्री सेल्सियस में ऐसे रहें जिन्दा

बचे हुए 16 लोगो ने कुछ दिनों तक अपने पास मौजूद खाने पीने की चीजों से काम चालाया ..जान बचाने के लिए खाने की चीजों को छोटे-छोटे हिस्सों में बाट लिया ताकि वो ज्यादा दिन तक चल सके और पानी की कमी को दूर करने के लिए उन्होंने प्लेन में से एक ऐसे मेटल के टुकड़े को निकाला जो कि धूप में बहुत जल्दी गर्म हो सके। फिर उस पर बर्फ पिघलाकर पानी इकठ्ठा करने लगे। हालांकि, इनकी असली मुसीबत तो तब शुरु हुई जब खाना खत्म हो गया और फिर कोई चारा न होने की वजह से इन लोगों ने अपने साथियों की लाश के टुकड़े करके उन्हें खाना शुरू कर दिया। हादसे में बचे डॉ. रोबटरे कानेसा ने एक इंटरव्यू में कहा था, ‘मुझे जिंदा रहने के लिए अपने ही दोस्त का मांस खाना पड़ा।’

जीवन की तलाश में निकले दो खिलाड़ी

इस तरह से देखते ही देखते 60 दिन बीत गए थे और दुनिया की नजर में मर चुके इन लोगों को मदद की कोई उम्मीद दिखाई नहीं दे रही थी। ऐसे में दो खिलाड़ियों नैन्डो पैरेडो और रॉबटरे केनेसा ने सोचा पड़े-पड़े मरने से अच्छा है कि मदद की तलाश पर निकलना सही समझा। शारीरिक रुप से कमजोर हो चुके दोनो खिलाड़ियों ने बर्फ पर ट्रैकिंग करनी शुरु की और तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए एंडीज पर्वत को पार कर चिली के आबादी वाले क्षेत्र तक पहुंच गए। यहां दोनों ने रेस्क्यू टीम को अपने साथियों की लोकेशन बताई। इसके चलते हादसे में बाकी बचे 16 लोगों को 23 दिसंबर 1972 में बचाया जा सका।

घटना पर बन चुकी है फिल्म

इस भयावह घटना पर पियर्स पॉल रीड ने 1974 में एक किताब ‘अलाइव’ लिखी थी, जिस पर 1993 में फ्रेंक मार्शल ने फिल्म भी बनाई थी।

 

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com