चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एके सीकरी, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड और जस्टिस अशोक भूषण की बेंच ने एक गाइडलाइन बनाते हुए कहा कि मृतक के भविष्य की संभावनाओं को देखना भी अनिवार्य होगा। मुआवजा तय करते समय यह देखना होगा कि मृतक स्थायी नौकरी करता है या फिर उसका अपना कारोबार है। भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए अगर मृतक स्थायी नौकरी में है तो मृतक के वेतन का 50 फीसदी मुआवजा भविष्य की कमाई की संभावनाओं के हिसाब से मिलना चाहिए। अगर मृतक का अपना कारोबार है तो उसे 40 फीसदी मुआवजा मिलना जरूरी है। अलग-अलग उम्र के मृतकों के लिए अलग-अलग सीमा तय की गई है। अगर मृतक 40-50 उम्र के बीच का है तो उसके लिए यह मुआवजा 30 प्रतिशत, 50-60 वर्ष वाले मृतक के लिए यह 15 पर्सेंट तक हो सकता है।
संविधान पीठ ने यह फैसला यह देखते हुए दिया है कि पुराने कई आदेशों में सड़क दुर्घटना में मारे गए लोगों के आश्रितों को मुआवजों में अलग-अलग राशि दी गई है। बेंच के इस फैसले के बाद खुद का कारोबार और फिक्सड सैलरी पर काम करने वाले मृतकों के मुआवजे को लेकर चल रहा विवाद भी खत्म हो गया है। बेंच ने संपदा के नुकसान पर 15 हजार रुपये, कंपनी के नुकसान में 40 हजार रुपये और अंतिम संस्कार के लिए 15 हजार रुपये देने के लिए कहा है। बेंच ने साथ ही कहा कि हर तीन साल बाद इन राशियों में 10 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी होगी। बेंच ने कहा कि मुआवजे के लिए कोई भी राशि तय करते समय मृतक के भविष्य की संभावनाओं का जरूर ख्याल रखा जाना चाहिए।
संविधान पीठ ने पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के निर्णय के खिलाफ नैशनल इंश्योरंस कंपनी लि. की याचिका सहित 27 याचिकाओं पर सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया। कोर्ट साथ ही कहा माना कि सभी मृतक के आश्रितों को एक समान मुआवजा नहीं मिल सकता है। कोर्ट ने कहा कि भविष्य की संभावनाओं के तहत स्थायी नौकरी करने वाले मृतक के आश्रित को खुद का रोजगार करने वाले और फिक्सड सैलरी पर काम कराने वाले मृतक के आश्रित की तुलना में ज्यादा मुआवजा मिलना चाहिए।