अमृत का नाम लेते ही पौराणिक धारावाहिक में समुद्र मंथन की तस्वीर उभरकर सामने आ जाती है। मंथन करते देवतागण और अमृत को लेकर भागे राक्षस हम सभी ने टीवी के धारावाहिक में देखे हैं।
लेकिन क्या अमृत का सत्य कभी तलाशने की कोशिश की है। आइए जानते हैं क्या है अमृत और क्या आज भी इसे हासिल करना संभव है? कहते हैं समुद्र मंथन क्षीरसागर में हुआ था। 27 अक्टूबर 2014 की खबर के अनुसार आर्कियोलॉजी और ओशनोलॉजी डिपार्टमेंट ने सूरत जिले के पिंजरात गांव के पास समुद्र में मंदराचल पर्वत होने का दावा किया था। आर्कियोलॉजिस्ट मितुल त्रिवेदी के अनुसार बिहार के भागलपुर के पास स्थित भी एक मंदराचल पर्वत है, जो गुजरात के समुद्र से निकले पर्वत का हिस्सा है।
एक हिंदी वेबसाइट की खबर के मुताबिक त्रिवेदी ने बताया कि बिहार और गुजरात में मिले इन दोनों पर्वतों का निर्माण एक ही तरह के ग्रेनाइट पत्थर से हुआ है। इस तरह ये दोनों पर्वत एक ही हैं। जबकि आमतौर पर ग्रेनाइट पत्थर के पर्वत समुद्र में नहीं मिला करते। खोजे गए पर्वत के बीचोबीच नाग आकृति है जिससे यह सिद्ध होता है कि यही पर्वत मंथन के दौरान इस्तेमाल किया गया होगा इसलिए गुजरात के समुद्र में मिला यह पर्वत शोध का विषय जरूर है।
गौरतलब है कि पिंजरात गांव के समुद्र में 1988 में किसी प्राचीन नगर के अवशेष भी मिले थे। लोगों की यह मान्यता है कि वे अवशेष भगवान कृष्ण की नगरी द्वारका के हैं, वहीं शोधकर्ता डॉ. एसआर राव का कहना है कि वे और उनके सहयोगी 800 मीटर की गहराई तक अंदर गए थे। इस पर्वत पर घिसाव के निशान भी हैं। बड़ा सवाल है कि क्या आज भी अमृत प्राप्त किया जा सकता है? क्या इस काल में समुद्र मंथन करने की कोई तकनीक है? और क्या आज भी मंथन करके अमृत निकाला जा सकता है? जल में ऐसे क्या तत्व हैं जिससे कि अमृत निकल सकता है? शोधानुसार पता चला कि गंगा के जल में ऐसे गुण हैं जिससे कि उसका जल कभी सड़ता नहीं। ऐसा जल पीना अमृत के समान है।
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