आज जापान दुनिया की सबसे ताकतवर देशों में शुमार है जिसकी एक खास वजह है वहां की शिक्षा प्रणाली। जापान सबसे ज्यादा साक्षरता दर वाला देश है, यहाँ 15 साल के बच्चो की साक्षरता दर 99% है जो दुनिया में किसी भी देश से सबसे ज्यादा है। आज हम बात करने जा रहे है जापान के स्कूलों के कुछ अजीबो गरीब नियमों की जो भले ही आपको अटपटे लगे लेकिन वहां हर स्टूडेंट्स को इन नियमों का पालन करना पड़ता है।
जापान में बच्चो को सुबह 8:30 से पहले स्कुल पहुंचना पड़ता है। हमारे यहां स्कूलों में सफाई के लिए सफाई कर्मचारी होते हैं, लेकिन जापान के स्कूलों में बच्चे खुद अपने क्लास की सफाई करते है और उनके इस काम में उनके शिक्षक बच्चों की सहायता भी करते हैं। वहाँ बच्चों को बचपन से ही स्वयं सफाई करना सिखाया जाता है ताकि वे सफाई रखना भी सीखें। पढ़ाई खत्म करने के बाद ये बच्चों का काम होता है कि वो क्लासरूम की सफाई करें।
जापान में प्राचीन काल से ही झुककर प्रणाम करने की परंपरा है यहां अपने से बड़ो का काफी आदर किया जाता है खासकर अध्यापक का। इसलिए स्कूल में बच्चों को शुरूआत से ही बड़ों का सम्मान करना सिखाया जाता है।क्लास में आने से पहले और जाने से पहले अपना सर अपने गुरु के आगे झुका के विद्यार्थियों को आदर देना होता है।
जापान में जूनियर हाई स्कूल तक के बच्चो को अपनी क्लास में बैठ कर लंच करना होता है और उनके शिक्षक भी साथ में बैठ कर खाना खाते हैं। जापानी भाषा में लंच को क्यूशोकू बोलते हैं। वहा का हर बच्चा अपने साथ बैठने की लिए मेट और अपनी खुद की प्लेट भी लाता है और खाने के बाद अपने के बर्तन को भी खुद धोना पड़ता है।
जापान में स्कुल की लड़कियों को ज्यादा लम्बे बाल नहीं रखने दिया जाता और लड़को को भी रोज दाढ़ी बनानी पड़ती है और साफ सुथरा रहना पड़ता है। उनका मानना है कि ज्यादा लंबे बाल पढ़ाई में बाधा बनते है। इसके अलावा जापान की कुछ स्कूलों में विद्यार्थियों को बिल्कुल साधारण बनकर रहना पड़ता है। वहां कोई बच्चा अपने बाल डाई नहीं करा सकता, कोई मेकअप नहीं कर सकता और न ही लड़कियां अपने नाखूनों पर नेल पॉलिश लगा सकती है।
जापान के स्कूलों में एक नियम यह भी है कि वहां ठण्ड में कोई भी स्टूडेंट अपनी स्कुल यूनिफार्म के साथ रंग बिरंगी स्वेटर या फिर जैकेट नहीं पहन सकता। सिर्फ नीली, काली और भूरी रंग की स्वेटर पहन सकते है। वहां जूनियर हाई स्कूल तक स्टूडेंट्स को स्कूल यूनिफार्म पहननी होती है जिसे जापानी भाषा में सिफुकू बोलते हैं।
जापान के लगभग सभी स्कुलों में बच्चो को तैरना सिखाया जाता है और जब कोई बच्चा इससे अच्छे से नहीं सीखता है तो उससे पूरी गर्मी की छुट्टी तक तैरना सीखना पड़ता है। गर्मियों की छुट्टियों में स्कूल वैसे तो बंद होता है लेकिन फिर भी शिक्षक रोज स्कूल जाते हैं और स्कूल में आर्ट, साइंस, स्पोर्ट्स, जुडो, आदि गतिविधियाँ कराई जाती हैं जिसमे बच्चे अपनी मर्जी से और अपनी रूचि के अनुसार भाग लेते हैं।
जापान में बहुत कम टीचर छुट्टी लेते है। लेकिन अगर किसी कारणवश टीचर अगर स्कूल नहीं आ पाता है तो उसकी जगह क्लास में कोई दूसरा टीचर आया है तो बच्चे उस टीचर से सभ्य तरीके से पेश आएंगे और उस विषय की बारे खुद अपनी जगह पर बैठ के पढेंगे। वहाँ पर बच्चों पर मिडिल स्कूल के बाद विषय चुनने का दबाव नहीं होता है। अगर बच्चे कौन सा विषय लेना है यह निर्णय नहीं ले पाते तो शिक्षक उनकी सहयता करते हैं।
जापान के स्कुल में स्टूडेंट्स को लव रिलेशन में पड़ना सख्त मना है इसलिए स्टूडेंट को वहां सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान रखना पड़ता है। इसके अलावा जापान में छोटे बच्चों को घर पर काम करने के लिए होमवर्क नहीं मिलता। लेकिन हाई-स्कूल में आने के बाद उन्हें घर पर काम करने के लिए बहुत काम मिलता है और वहां स्कूलों में बच्चों को गलती या शरारत करने पर क्लास से बाहर नहीं निकाला जाता, कक्षा से बहार निकलना वहाँ की शिक्षा व्यवस्था के खिलाफ है।