संयुक्त राष्ट्र: कश्मीर को लेकर संयुक्त राष्ट्र की एक कथित रिपोर्ट पर भारत ने मानवाधिकार परिषद को आईना दिखाने की कोशिश की है। भारत ने अफसोस जताते हुए कहा कि मानवाधिकार परिषद का कामकाज और ज्यादा विवादास्पद और मुश्किल भरा होता जा रहा है। पाकिस्तान का नाम लिए बगैर भारत ने विदेश नीति के एक टूल के तौर पर मानवाधिकार का राजनीतिकरण किए जाने की घटनाओं पर गहरी चिंता जताई।
UN में भारत के उप स्थायी प्रतिनिधि तन्मय लाल ने कहा कि वैसे तो रेजॉल्यूशंस और फैसलों की संख्या के साथ मानवाधिकार परिषद का विस्तार हो रहा है, ताबड़तोड़ बैठकें और विशेष सत्र आयोजित हो रहे हैं। हालांकि इसके कामकाज की प्रभावशीलता हमेशा स्पष्ट नहीं है। मानवाधिकार परिषद की रिपोर्ट पर आयोजित संयुक्त राष्ट्र महासभा के विशेष सत्र में शुक्रवार को लाल ने कहा, ‘मानवाधिकार संधियों और समझौतों को लेकर व्यापक ढांचा तैयार किया गया है…. लेकिन परिषद का काम, उससे जुड़ी प्रक्रियाएं और शासनादेश ज्यादा विवादास्पद होने के साथ ही मुश्किल होता जा रहा है।’
आपको बता दें कि इसी साल जून में मानवाधिकार उच्चायुक्त जैद राद अल हुसैन की रिपोर्ट में कश्मीर में कथित मानवाधिकार के हालात की जांच के लिए स्वतंत्र अंतरराष्ट्रीय जांच की मांग की गई थी। भारत ने इस रिपोर्ट को गलत बताते हुए सिरे से खारिज कर दिया था। लाल ने कहा कि इस कथित रिपोर्ट से स्पष्ट तौर पर एक अधिकारी का पक्षपात झलकता है जो बिना किसी शासनादेश के काम कर रहे थे और उनकी रिपोर्ट सूचना के अपुष्ट सूत्रों पर आधारित थी। लाल ने कहा कि इस रिपोर्ट को जिस फोरम में पेश किया गया था, उसके सदस्यों ने इस पर विचार करना भी उचित नहीं समझा।
लाल ने विस्तार से कहा कि आज वैश्विक हालात ठीक नहीं हैं क्योंकि वैश्विक शासन तंत्र के अप्रभावी होने के चलते बहुपक्षवाद की भावना को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जो चिंता का विषय है। भारतीय प्रतिनिधि ने साफ कहा कि मानवाधिकार अजेंडे से जुड़ी कई परेशानियों की वजह तलाशना कोई मुश्किल काम नहीं है। उन्होंने कहा कि मानवाधिकारों पर दुनियाभर में बातचीत बढ़ी है जबकि मौलिक मतभेद बने हुए हैं। व्यक्ति बनाम राज्य, राष्ट्रीय संप्रभुता बनाम अंतरराष्ट्रीय कानून और सार्वभौमिक बनाम संस्कृति विशिष्ट अप्रोच में अलग-अलग प्राथमिकता के कारण एक राय नहीं है।
मानवाधिकार के राजनीतिकरण का जिक्र करते हुए लाल ने कहा, ‘ऐसे तंत्र और दफ्तर जो बिना किसी मैंडेट के काम कर रहे हैं और बिल्कुल पक्षपातपूर्ण दस्तावेज तैयार कर रहे हैं, इससे केवल संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता को नुकसान हो रहा है।’ दरअसल, भारत का संदर्भ कश्मीर पर तैयार की गई उसी रिपोर्ट पर था, जिसे खारिज कर दिया गया था।
भारत ने आतंकवाद को मानवाधिकार हनन का सबसे खराब रूप बताया। साथ ही इस खतरे से निपटने की संगठित अतंरराष्ट्रीय कोशिश को रोकने का प्रयास करने वाले कुछ देशों की निंदा की। तन्मय लाल ने कहा, ‘आतंकवाद मानवाधिकार हनन के सबसे खराब शैलियों में से एक के रूप में उभरा है। मेरे देश में बेगुनाह लोगों को लगातार आतंकी हमलों का सामना करना पड़ा है, जो हमारी सीमाओं के पार से उत्पन्न होते हैं।’
उन्होंने कहा, ‘आतंकवाद को सबसे बड़ी वैश्विक चुनौतियों में से एक के रूप में स्वीकृत किए जाने के बावजूद इस खतरे को हल करने के लिए अर्थपूर्ण सामूहिक कोशिश को कुछ देशों द्वारा लगातार रोका जा रहा है।’ मानवाधिकार परिषद की रिपोर्ट पर महासभा के एक सत्र के दौरान लाल ने यह टिप्पणी की। इस रिपोर्ट का लक्ष्य 1996 में भारत द्वारा प्रस्तावित कंप्रिहेंसिव कन्वेशन ऑन इंटरनेशल टेररिज्म (सीसीआईटी) को अपनाने में इस वैश्विक संगठन की विफलता को दर्शाना था।