उत्तराखंड के सरकारी मेडिकल कॉलेजों से सस्ती पढ़ाई करने के बाद बांडधारी डॉक्टर पहाड़ पर सेवा देने की शर्त पूरी करने की बजाए कोर्ट पहुंच रहे हैं। कोर्स पूरा होने के बाद अब तक 300 से अधिक सरकार के फैसलों के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटा चुके हैं। लगातार बढ़ते कोर्ट केसों से सरकार और स्वास्थ्य विभाग की परेशानी बढ़ रही है। सरकार ने एक तो इन डॉक्टरों को आधी से भी कम फीस पर पढ़ाया और अब इनके कोर्ट केस के चक्कर में भी सरकार को राजस्व का नुकसान हो रहा है।
ऐसे में अब विभाग को समझ नहीं आ रहा कि इन डॉक्टरों से निपटा कैसे जाए। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने बताया कि बांड वाले डॉक्टरों को पहाड़ भेजने के लिए सरकार की ओर से समय-समय पर आदेश किए गए। इसके बावजूद ये डॉक्टर किसी न किसी बहाने से आदेश के खिलाफ अदालत पहुंच गए। अब स्वास्थ्य विभाग, अदालत में इन डॉक्टरों के खिलाफ जंग लड़ रहा है।
दोबारा की जा रही व्यवस्था
डॉक्टरों के पहाड़ न चढ़ने पर सरकार ने दून और हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज में दो वर्ष पहले बांड की व्यवस्था खत्म कर दी थी। पर बिना बांड की फीस काफी ज्यादा होने से अब सरकार ये व्यवस्था फिर बहाल करने जा रही है। कैबिनेट में निर्णय भी ले लिया गया है।
क्या है मामला
उत्तराखंड के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में वर्ष 2008-09 से बांड की व्यवस्था लागू की गई। इसके तहत श्रीनगर, हल्द्वानी और देहरादून में एमबीबीएस की पढ़ाई महज पचास हजार रुपये सालाना की फीस पर करने की व्यवस्था की गई। राज्यभर में करीब 1400 डॉक्टरों ने इस व्यवस्था का लाभ उठाया लेकिन इनमें से पांच सौ से अधिक डॉक्टरों ने पहाड़ पर सेवा देने की शर्त पूरी नहीं की।
क्या हैं बांड की शर्तें
राज्य में बांड की व्यवस्था लागू होने के बाद पहले एमबीबीएस पास आउट डॉक्टरों के लिए पहाड़ पर पांच साल की सेवा करना अनिवार्य किया गया था। उसके बाद बांड की शर्तों में बदलाव कर इस शर्त को तीन साल किया गया। डॉक्टरों के ज्वाइन न करने पर फिर शर्त बदली गई और एक साल मेडिकल कॉलेज में जूनियर रेजिडेंट के रूप में कार्य और दो साल पर्वतीय अस्पतालों में सेवा को अनिवार्य किया गया लेकिन अधिकांश डॉक्टर शर्तों को मानने के लिए तैयार नहीं दिख रहे।