उत्तरकाशी: सीमांत उत्तरकाशी जिले में पारंपरिक फसलों का उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है। तीन वर्ष पहले की तुलना में मंडुवे का उत्पादन तो दोगुना हो गया। इसे और बढ़ाने के लिए कृषि विभाग ने नया लक्ष्य निर्धारित किया है। ताकि आने वाले वर्ष में मडुंवा सहित अन्य फसलों के उत्पादन में भी बढ़ोत्तरी हो।
उत्तराखंड में धीरे-धीरे मडुंवा, झंगोरा, चौलाई आदि पारंपरिक फसलों को अच्छा बाजार मिलने लगा है। मांग बढ़ने के कारण इन फसलों के प्रति ग्रामीणों का रुझान भी बढ़ा है। वर्ष 2014-15 में जहां छह से सात क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मंडुवे का उत्पादन मिला, वहीं वर्ष 2017-18 में यह 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो गया। कमोबेश यही स्थिति झंगोरा, उगल (ओगल), फाफर व चौलाई के उत्पादन की भी रही। बाजार में इन फसलों का मनमाफिक मूल्य मिलने के कारण काश्तकारों की संख्या में भी लगातार इजाफा हो रहा है। वर्ष 2014-15 में जहां जिले में पारंपरिक फसलों का उत्पादन करने वाले काश्तकारों संख्या जहां आठ हजार थी, वहीं वर्ष 2017-18 में यह संख्या 15 हजार से अधिक हो गई। उम्मीद की जा रही है कि इसमें और इजाफा होगा।
बोनस के लिए पंजीकरण शुरू
मंडुवा, रामदाना व झंगोरा की फसल पर सरकार की ओर से बोनस दिए जाने की योजना की शुरुआत कृषि विभाग ने कर दी है। इसके लिए किसानों का पंजीकरण भी शुरू हो चुका है। अब तक छह हजार किसान इन फसलों को उगाने के लिए पंजीकरण भी करा चुके हैं। इस योजना के तहत इन फसलों पर प्रति क्विंटल 300 रुपये बोनस दिया जाना है।
मुख्य कृषि अधिकारी महिधर सिंह तोमर का कहना है कि उत्तरकाशी में वर्ष 2017-18 में मंडुवा व अन्य पारंपरिक फसलों का अच्छा उत्पादन हुआ। इसके पीछे दो कारण निकलकर सामने आए हैं। एक तो किसानों का पारंपरिक खेती के प्रति रुझान बढ़ना और दूसरा बरसात में सामान्य बारिश का होना।