नई दिल्ली : दिवाली पर वनों से आच्छादित जशपुर जिले के हर एक क्षेत्र में विशिष्ट सांस्कृतिक परंपराएं आज भी जीवंत है। पुरानी दुश्मनी भूल बंजारा समाज के लोग दिवाली पर एक दूसरे के गले मिलते हैं और अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगते हैं।
वहीं जनजातीय समाज के द्वारा लक्ष्मी को खुश करने के लिए मुर्गे की बलि चढ़ाने की परंपरा है। दिवाली पर्व पूरे सप्ताह विभिन्न् रूपों में मनाया जाता है। जिसमें जनजातीय समाज के द्वारा मवेशियों की भी पूजा की जाती है और मवेशियों को हड़िया शराब विशेष पकवानों के साथ पिलाई जाती है।
दुश्मनों का मिलन दिवाली के अवसर पर होना संस्कृति की विशिष्ट पहचान है। यह परंपरा बंजारा समाज में ही देखने को मिलती है। भौगोलिक दृष्टिकोण से सीमावर्ती क्षेत्र होने के कारण जिले में विभिन्न् पद्धतियों का पालन किया जाता है, जो जिले की अलग पहचान सांस्कृतिक विशेषता के रूप में स्थापित करती है।
दिवाली के दिन सभी रिश्तेदारों और परिचितों से सारे मनमुटाव दूर करने की पंरपरा है। बंजारा समाज के द्वारा दीप जलाने के बाद घर-घ्ार भ्रमण किया जाता है और वर्ष भर में किसी भी प्रकार की हुई गलती के लिए लोग एक दूसरे से माफी मांगते हैं। वहीं दिवाली पर पितरों की होती है। समाज में जिन पितरों के नाम याद हैं, उनके नाम से अलग-अलग दीप जलाने की प्रथा भी है।
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