नई दिल्ली : प्रस्तावित वन बेल्ट वन रोड (OBOR) पर भारत की आपत्ति के बाद चीन के माथे पर चिंता की लकीरें पड़ गई हैं। चीन को पाकिस्तान से होकर जाने वाला इकॉनॉमिक कॉरिडोर प्रोजेक्ट यानी CPEC खतरे में पड़ता दिखाई दे रहा है। शायद यही कारण है चीन अब भारत को मनाने में लगा है। चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने भारत की चिंताओं को दूर करने की कोशिश करते हुए कहा है कि इसका कश्मीर मामले से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है। भारत अगर OBOR में शामिल होता है तो चीन उसका स्वागत करेगा। वांग यी ने यह बात 14-15 मई से होने वाले OBOR शिखर सम्मेलन के लिए आयोजित प्रेस कॉफ्रेन्स में कही। वांग यी ने कहा मैं भारतीय मित्र को इस बात की पुन: पुष्टि करना चाहता हूं कि यदि भारत OBOR में शामिल होना चाहता है तो ऐसा करने के कई माध्यम एवं तरीके हैं। गौरतलब है कि भारत OBOR का विरोध कर रहा है। OBOR चीन-पाक इकोनॉमिक कॉरिडोर यानी CPEC का एक हिस्सा है जो पाकिस्तान के गिलगिट-बल्तिस्तान में बन रहा है। गिलगिट-बल्तिस्तान कश्मीर का वो हिस्सा है जिस पर पाकिस्तान अवैध कब्जा जमा कर बैठा है। पाक सरकार ने इस क्षेत्र को ऑटोनॉमस रीजन घोषित कर रखा हैे लेकिन इसके बावजूद उसने चीन के सहयोग से इस क्षेत्र में अवैध रूप से दखल दे रखी है।
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भारत CPEC पर जता चुका आपत्ति- भारत ने पिछले साल दिसंबर में चीन-पाक इकोनॉमिक कॉरिडोर को लेकर आपत्ति जताई थी। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने नियमित ब्रीफिंग में कहा था कि यह गलियारा चीन की पहल है और यह भारत के संप्रभुता वाले क्षेत्र से गुजरता है जिसके बारे में हमने अपनी चिंताओं से चीन और पाकिस्तान दोनों को अवगत करा दिया है।
क्या है वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट…
* चीन 14—15 मई को बीजिंग में OBOR शिखर सम्मेलन आयोजित करने जा रहा है।
* इस शिखर सम्मेलन में 28 राष्ट्रपतियों एवं प्रधानमंत्रियों के भाग लेने की संभावना है।
* वन बेल्ट वन रोड यानी OBOR परिजोयना चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर योजना का हिस्सा है।
* OBOR परिजोयना के जरिए चीन सड़क मार्ग से सीधा मध्य एशिया और यूरोप से जुड़ जाएगा।
* अभी चीन साइबेरियन रेल लाइन के जरिए अपना माल 12 हजार किमी दूर लंदन भेजता है।
* लेकिन सर्दियों में साइबेरियन रेल लाइन ठप हो जाती है तो चीन माल समुद्री मार्ग के जरिए भेजता है।
* लेकिन CPEC पर वन बेल्ट वन रोड परिजोयना चालु हो जाने के बाद 12 महीने सफर जारी रहेगा।
* साथ ही अभी 12 हजार किमी का जो सफर तय करना पड़ता है वो घटकर 8 हजार किमी रह जाएगा
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चीन भारत को OBOR में शामिल होने के लिए दे चुका लालच- 20 मार्च को चीन के सरकारी अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने एक लेख छपा। लेख का शीर्षक है “New Delhi could benefit by adopting open attitude to Belt and Road initiative” यानी नई दिल्ली वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट पर खुला दृष्टिकोण अपनाता है तो उसे फायदा हो सकता है। इस लेख के शीर्षक के जरिए चीन भारत को लालच देने के साथ धमकाने की कोशिश भी कर रहा है। नई दिल्ली वन बेल्ट वन रोड परियोजना पर खुला दृष्टिकोण अपनाता है तो उसे फायदा हो सकता है। अगर भारत अपने आपको इससे अलग रखता है तो वह चीन के बढ़ते दबदबे को सिर्फ देखता रह जाएगा।
CPEC पर भारत-चीन आमने-सामने- CPEC पाकिस्तान के कराची, ग्वादर पोर्ट को चीन के शिनजियांग को जोड़ेगा। CPEC पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के गिलगित-बाल्तिस्तान से गुजरता है। इसी कारण भारत को आपत्ति है, इससे पीओके में चीन का प्रभुत्व बड़ रहा है। पीएम मोदी CPEC के मुद्दे पर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से एतराज जता चुके हैं। CPEC पर भारत के ऐतराज पर रूस भी उसके समर्थन में खड़ा रहा है। चीन इस परियोजना के तहत पाकिस्तान में 3 लाख करोड़ रुपए निवेश कर चुका है। इस प्रोजेक्ट की शुरूआत 2015 में हुई थी 3000 किमी का रेल-सड़क नेटवर्क बन चुका है। दिसंबर 2016 को चीन ने पाकिस्तान अपनी पहली रेलगाड़ी भी भेज दी थी। उसने दक्षिण में स्थित कुन्मिंग से कराची तक 3500 किमी की दूरी तय की गई।
CPEC से सिर्फ चीन को होगा फायदा- चीन ने सीपीईसी परियोजनाओं में 46 अरब डॉलर यानी लगभग 3 लाख करोड़ रुपए निवेश किया है। इस प्रोजेक्ट की शुरूआत 2015 में हुई थी, इसके पूरा होने तक 3 हजार किमी का रेल-सड़क नेटवर्क तैयार हो जाएगा। सड़क नेटवर्क तैयार के साथ-साथ रेलवे और पाइपलाइन लिंक भी पश्चिमी चीन से दक्षिणी पाकिस्तान को जोड़ेगा। अभी चीन को ग्वादर पोर्ट जाने के लिए 12 हजार किमी के समुद्री मार्ग से सफर तय करना पड़ता है। सीपीईसी प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद चीन को अपने बॉर्डर से सिर्फ 1800 किमी का सफर तय करना पड़ेगा। बीजिंग से ग्वादर पोर्ट की दूसरी महज आधी से भी कम (5200 किमी) रह जाएगी। चीन द्वारा बनाया जा रहा ये कॉरिडोर बलूचिस्तान प्रांत से होकर गुजरेगा, जहां दशकों से लगातार अलगाववादी आंदोलन चल रहे हैं। इसके साथ-साथ गिलगिट-बल्टिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का इलाका भी शामिल है। चीन को उम्मीद है कि इस कॉरिडोर के जरिए वह अपनी ऊर्जा को तेजी से फारस की खाड़ी तक पहुंचा सकता है। चीन की योजना इन दोनों विकास योजनाओं को एशिया और यूरोप के देशों के साथ मिलकर आगे बढ़ाने की है।