सनातन धर्म में जीवन जीने के कई नियमों के साथ –साथ मृत्यु और मृत्यु के बाद आत्मा की शांति के लिए भी नियम बताये गए हैं. मृत्यु के बाद किये जानें वाले कर्म में तर्पण और श्राद्ध है. हिंदू धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि तर्पण और श्राद्ध से पितरों की तृप्ति होती है. पितरों को जल दान देने को तर्पण कहा जाता है.
हिंदू शास्त्रों की मान्यताओं के अनुसार जो परिजन अपने शरीर छोड़कर जा चुके हैं, वे चाहे किसी भी लोक में क्यों न हों, तर्पण से उन्हें तृप्ति मिलती है. इसके अलावा पितरों का ऋण उतारने के लिए पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म किया जाता है.
हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले के बीच पितृ पक्ष में श्राद्ध और तर्पण का विशेष महत्व है. ऐसी मान्यता है कि पितृ पक्ष में हमारे पितर धरती पर आते हैं. पितृ पक्ष में जो श्राद्ध और तर्पण किया जाता है, उसे वे ग्रहण करते हैं और परिजनों को अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं.
पितरों तक ऐसे पहुंचता है भोजन
गरुड़ पुराण में बताया गया है कि विश्वदेव और अग्निश्रवा नामक दो दिव्य पितृ हैं. नाम गोत्र के सहारे जो चीजें अर्पित की जाती है. उन्हें यही दोनों दिव्य पितृ हमारे पितरों तक पहुंचाते हैं. यदि हमारे पितर देव योनि में हों तो श्राद्ध का भोजन अमृत रूप में उन तक पहुंचता है. यदि वे मनुष्य योनि में हैं तो उन्हें अन्न के रूप में और यदि पशु योनि में घास के रूप में, नाग योनि में वायु रूप में और यक्ष योनि में पान रूप में भोजन उन तक पहुंचता हैं.
जानें तर्पण के नियम
पितरों को तर्पण करते समय दक्षिण की ओर मुंह करके, गायत्री मंत्र पढ़ते हुए जल में दूध और तिल मिलाकर तर्पण करना चाहिए. तर्पण करने के पहले बाएं घुटने को ज़मीन पर लगालें, जनेऊ, गमछा को दाएं कंधे पर रखें. तर्पण के लिए चांदी, तांबे या फिर पीतल के बर्तन का ही उपयोग करना चाहिए.