वाराणसी : लोक गीत, धुन व वाद्य यंत्रों की अनुगूंज से मंगलवार को असि घाट का किनारा गुंजायमान हो गया। आदिवासी पहाड़ी व मैदानी क्षेत्रों के सुविख्यात लोक नृत्यों के माध्यम से लोक कलाकारों ने भारत के विविध प्रान्तों की माटी की सुगंध विखेर दी। मौका था संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार व उत्तर मध्य क्षेत्र सास्कृतिक केंद्र इलाहाबाद के तत्वावधान में आयोजित लोक कला की विरासत उत्सव का। कार्यक्त्रम का आरम्भ बुन्देल खण्ड के लोक कलाकारों द्वारा प्रस्तुत बधाई नृत्य से हुआ।
इसमें जन्म के समय वधावा गाने की परंपरा का बखूबी दिग्दर्शन हुआ। इसी तरह त्रिपुरा का लोक नृत्य वा ने स्थानीय लोक संस्कृति व परम्परा को उजागर किया । गृहनिर्माण के बाद उत्सव के अवसर पर मा लक्ष्मी को प्रसन्न करने के साथ ही शाति के लिए गौतम बुद्ध को समर्पित इस नृत्य ने दर्शकों को मोहित कर दिया। इसी प्रकार कुमाऊँ का विवाह के अवसर पर किया जाने वाले छोलिया नृत्य ने वीर रस का संचार कराने के साथ ही पहाड़ी लोक कला की अद्भुत झाकी प्रस्तुत की।
मिजोरम के चिराव बम्बू नृत्य से लगायत अवध का फरवही व झारखंड के छउ लोक नृत्य के साथ ही करतब दिखाने के लिए काफी पसंद किया गया। छऊ नृत्य ( मुखौटा नृत्य)में कलाकारों ने शुम्भ- निशुम्भ राक्षस का वध कलात्मक ढंग से प्रदर्शित किया। नृत्य में कलाकारों ने करतब काफी आह्लाद दायक रहे। गुजरात के डाडिया ने तो पूरी गुजराती लोक कला को मंच पर जीवंत किया तो मणिपुर के लाई हरोबा ने खूब वाहवाही लूटी। कार्यक्त्रम का संचालन अंकिता खत्री ने तथा स्वागत कार्यक्त्रम अधिशाषी कल्पना सहाय ने किया।