लखनऊ। उप्र के डीजीपी ओपी सिंह मंगलवार को कार्यभार ग्रहण करेंगे। 23 दिन पहले उनकी नियुक्ति के बावजूद डीजीपी का पद खाली चल रहा था। सरकार ने 1983 बैच के आइपीएस ओपी सिंह का नाम डीजीपी के लिए 31 दिसंबर को तय किया था। वह सीआइएसएफ में डीजी पद पर तैनात थे। केंद्र से अवमुक्त न होने के कारण वह आ नहीं पा रहे थे और उनकी नियुक्ति अधर में थी। रविवार को डीओपीटी ने उन्हें अवमुक्त कर दिया। डीजीपी मुख्यालय से मिली जानकारी के मुताबिक ओपी सिंह मंगलवार को आएंगे और कार्यभार ग्रहण करने के बाद दोपहर डेढ़ बजे पत्रकारों से बातचीत करेंगे।
इस तरह बनाया करियर
इसके बाद उनका 1983 बैच से आईपीएस अफसर के लिए चुनाव हो गया और इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। इनके करियर पर अगर नजर डालें तो उनकी सबसे पहली पोस्टिंग बतौर ट्रेनी एएसपी वाराणसी में हुई थी। ओपी सिंह अल्मोड़ा (अब उत्तराखंड में), खीरी, बुलंदशहर, लखनऊ, इलाहाबाद और मुरादाबाद के एसएसपी रह चुके हैं। खीरी में उनका सबसे लंबा कार्यकाल डेढ़ साल रहा। ये आजमगढ़ और मुरादाबाद के डीआईजी और मेरठ जोन के आईजी भी रह चुके हैं। वहीं इसके अलावा वे तीन बार यूपी की राजधानी लखनऊ के एसएसपी भी रह चुके हैं।
मिलती रही हैं महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां
सीआईएसएफ के डीजी पद पर तैनात रहे ओपी सिंह को वक्त-वक्त पर महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां मिलती रहीं हैं। महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों के साथ सीआईएसएफ में दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन, अति महत्वपूर्ण व्यक्ति (VIP) सुरक्षा, आपदा प्रबंधन तथा हैती में यूएन की सशस्त्र व पुलिस यूनिट (FPU) स्थापना की सुरक्षा करने जैसे कार्य भी हाल ही इन्हें सौंपे गए थे।
यूपी का डीजीपी बनाने का एक कारण ये भी
ओमप्रकाश सिंह को उत्तर प्रदेश का डीजीपी बनाने का एक मुख्य कारण जो सामने आ रहा है वो ये है कि उनकी छवि एक तेज तर्रार अधिकारी की रही है वो न सिर्फ आक्रामक हैं बल्कि तकनीकि रूप से काफी दक्ष हैं। एक बात ये भी है कि उनका कार्यकाल थोड़ा लंबा है। उनका रिटायरमेंट साल 2020 में होना है। वो 2 साल से ज्यादा वक्त तक इस पद पर रह सकते हैं और इस बीच साल 2019 में लोकसभा के चुनाव भी होने हैं। इसके लिए उन्हें तैयारी करने का वक्त भी मिल जाएगा। यही कारण रहा कि 6 वरिष्ठ अधिकारियों के बीच उनको यूपी का डीजीपी बनाया गया है। फिलहाल वो ये जिम्मेदारी कैसे निभाते हैं ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन उनके नाम कई रिकॉर्ड रहे हैं।
गेस्ट हाउस कांड
दरअसल, राजनीतिक घटनाक्रम के चलते उस समय मायावती मुलायम सिंह यादव की सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। इससे नाराज सपा के कार्यकर्ताओं व विधायकों ने मायावती के ऊपर हमला बोल दिया था। मायावती उस दिन मीराबाई मार्ग स्थित स्टेट गेस्ट हाऊस में रुकी थीं। मायावती के साथ अभद्रता, हाथापाई व मारपीट की कोशिश की गई। इस कांड के दौरान ओपी सिंह लखनऊ के एसएसपी पद पर तैनात थे। जब इस कांड ने तूल पकड़ा तो काफी विरोध और हंगामा हुआ जिसकी वजह से उनको निलंबित भी कर दिया गया था।
आतंकवादी गतिविधियों पर कसी लगाम
1992-93 में लखीमपुर खीरी में तैनाती के दौरान उन्होंने नेपाल बॉर्ड से होने वाली तस्करी और आतंकवादी गतिविधियों पर लगाम लगा दी थी। यही नहीं लखनऊ में तैनाती के दौरान उन्होंने 20 साल से चले आ रहे शिया-सुन्नी विवाद को सुलझा दिया था। इसके लिए यूपी सरकार ने इनको सम्मानित भी किया था। ओपी सिंह ने नेपाल भूकंप पर अपने अनुभवों के आधार पर एक किताब भी लिखी है। लिखने के अलावा इन्हें साइक्लिंग करने का भी शौक है।