विधानसभा चुनाव में टिकट न मिलने से असंतुष्टों का चुनाव में उतरना नई बात नहीं है, लेकिन अगर वर्ष 2012 से तुलना की जाए तो इस बार भाजपा और कांग्रेस की दिक्कतें बढ़ने वाली हैं।जहां 2012 में लगभग एक दर्जन सीटों पर असंतुष्टों ने अपनी पार्टी को मात दी थी, वहीं इस बार अकेली भाजपा में दर्जन भर बागी हैं। उधर, कांग्रेस के लिए भाजपा के बागियों के साथ पीडीएफ भी परेशानी बढ़ाती दिख रही है। गौरतलब है कि पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने असंतुष्टों के चलते अधिक नुकसान झेला था।
वर्ष 2012 विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं मिलने से नाराज बागियों ने किसी भी दल को बहुमत का आंकड़ा नहीं छूने दिया था। मजबूत दावेदारों के चुनावी समीकरण बिगाड़ कर विरोधियों के मंसूबों पर खरा उतरने वाले बागियों ने कांग्रेस को अधिक नुकसान पहुंचाया था।
हालांकि अभी तक दोनों राष्ट्रीय दलों में टिकट आवंटन की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई, लेकिन असंतुष्टों बगावत के तेवर अभी से दिखने शुरू हो गए हैं। भाजपा को उन सभी सीटों पर अपने पुराने प्रत्याशियों का विरोध झेलना होगा, जहां के विधायक दल बदल कर भाजपा में शामिल हुए हैं।
इसी तरह से कांग्रेस के पास दो बागी भीम लाल और दान सिंह भाजपा से मिले हैं जबकि पीडीएफ से मंत्री प्रसाद नैथानी, प्रीतम सिंह, दिनेश धने और दुर्गापाल हैं, जिनको टिकट देने के नाम पर अभी से घमासान मचा हुआ है।
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