नई दिल्ली| डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका में राष्ट्रपति का पदभार संभालते के बाद भारतीय उद्योग और सरकार को लगता है कि संरक्षणवाद और एच1बी वीजा में कटौती की आशंका बनी रहेगी, लेकिन अमेरिका भारत के साथ वित्तीय और तकनीकी सहयोग जारी रखेगा। केंद्रीय वित्त सचिव अशोक लासा ने कहा, “हमें भरोसा है कि अमेरिका वित्तीय और तकनीकी भागीदारी तथा निवेश के माध्यम से वैश्विक विकास का समर्थन जारी रखेगा। हमें दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच पारस्परिक लाभ के लिए दो गतिशील लोकंतत्र के बीच अपने लोगों की भलाई और समृद्धि के लिए मजबूत संबंध स्थापित होने की उम्मीद है।”
उद्योग संगठन एसोचैम के अध्यक्ष और श्री इंफ्रास्ट्रकचर फाइनेंस लिमिटेड के उपाध्यक्ष सुनील कनौरिया ने कहा, “अमेरिका की नई सरकार का फोकस स्पष्ट है और वे खुद की तरफ देख रहे हैं। इसलिए वैश्वीकरण की ज्यादा उम्मीद नहीं है। उन्हें अपने लोगों का समर्थन प्राप्त है, जो स्वाभाविक है। भारतीय उद्योग को बदलना होगा और अमेरिका में वस्तु और सेवाओं के क्षेत्र में निवेश करना होगा।”
एसोचैम के महासचिव डी. एस. रावत ने से कहा, “भारत के आईटी उद्योग पर प्रभाव पड़ेगा, यह केवल अतिशयोक्ति है। भारतीय आईटी पेशेवर दुनिया भर में सस्ती दरों पर आईटी उत्पाद और विशेषज्ञता मुहैया कराने के लिए जाने जाते हैं और इसे विश्व स्तर पर स्वीकार किया गया है।”
हालांकि उद्योग मंडल, फेडरेशन ऑफ इंडिया चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के प्रशासन के तहत भारत-अमेरिका संबंधों को लेकर काफी आशावान है।
चैंबर ने कहा, “ट्रंप ने कर दरों में कटौती और सुधार से अमेरिकी अर्थव्यवस्था की रफ्तार को 3-4 फीसदी की दर पर वापस लाने की बात कही है। इससे न सिर्फ अमेरिकी अर्थव्यवस्था को फायदा होगा, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिलेगा।”
भारतीय स्टेट बैंक की मुख्य अर्थशाी सौम्य कांति घोष का मानना है कि अमेरिका का वित्तीय घाटा बढ़ेगा, क्योंकि वह कर में कटौती करेगा तथा अवसंरचना पर खर्च बढ़ाएगा। उन्होंने कहा, “इससे भारत जैसे देशों को नुकसान होगा, क्योंकि यहां से पूंजी निकलकर अमेरिका चली जाएगी।”
उनका कहना है कि सबसे बुरा प्रभाव आईटी उद्योग पर पड़ेगा, क्योंकि ट्रंप एच1बी वीजा में कटौती करने वाले हैं।
उन्होंने कहा कि भारतीय कंपनियों ने समूचे अमेरिका में महत्वपूर्ण निवेश किया है। एक सर्वेक्षण के मुताबिक अलगे पांच वर्षो में 100 में से 84 भारतीय कंपनियां अमेरिका में निवेश करनेवाली हैं और वहां के सभी 50 राज्यों में हमारी मौजूदगी पहले से ही है।
नैसकॉम के पूर्व अध्यक्ष बीवीआर मोहन रेड्डी ने से कहा, “कुछ गलत धारणाओं और राजनीतिक बयानबाजी के विपरीत भारतीय आईटी उद्योग ने नए उत्पाद और समाधान विकसित कर अमेरिकी कंपनियों को अधिक प्रभावी और प्रतिस्पर्धी बनाया है। इससे वहां रोजगार के मौके बढ़े और उनके ग्राहकों को लाभ हुआ है।”
प्रोटिवीटी की महाप्रबंधक (कर और नियामक मामले) निधि गोयल ने कहा, “अमेरिका अब भारतीय पेशेवरों के लिए वीजा नियमों को कठोर बनाएगा और अपने लोगों को प्राथमिकता देगा।”
जियोजित बीएनपी पारिबास के मुख्य निवेश रणनीतिकार वी. के. विजयकुमार का कहना है, “ट्रंप का यह कहना कि ‘अमेरिकी सामान खरीदो और अमेरिकियों को ही नौकरी दो’ बेहद परेशान करनेवाला है। संरक्षणवादी राष्ट्रवाद वैश्विक अर्थव्यवस्था, व्यापार और शेयर बाजारों के लिए बुरा है। इसका शेयर बाजार पर नकारात्मक असर पड़ेगा।”