नई दिल्ली: अक्सर आपने देखा होगा कि महिलाओं के साथ होने वाले अन्याय के लिए हमारे यहाँ कई कानून हैं, लेकिन पुरुषों के साथ होने वाले अन्याय के लिए यहाँ पर कोई कानून नहीं है। दिल्ली की एक अदालत ने बलात्कार के आरोप से मुक्त करते हुए ना केवल यह कहा कि उसे रेप केस सर्वाइवर क्यों नहीं कह सकते बल्कि यह भी कहा कि पुरुषों के मान-सम्मान की बात कौन करेगा। महिलाओं के मन-मर्यादा की रक्षा के लिए तो अनेक कानून बने हुए हैं, लेकिन पुरुषों की मन-मर्यादा के बारे में बात करने वाले कानून कहाँ हैं?
अब समय आ गया है जब पुरुषों के अधिकारों की भी बात की जानी चाहिए। सबसे ख़ास बात यह है कि यह किसी और नहीं नहीं बल्कि एक महिला जज ने कही। आपको बता दें यह महिला जज कोई और नहीं बल्कि तीस हजारी कोर्ट की एडिशनल सेशंस जज निवेदिता अनिल शर्मा हैं। उन्होंने इस केस का निपटारा करते हुए कहा कि जब कोई महिला बलात्कार की शिकार होती है तो उसे रपे सर्वाइवर कहा जाता है। इसका दूसरा पक्ष भी है। जब कोई अभियुक्त दुष्कर्म के केस में बाइज्जत बारी होता है तो हम उसे रेप केस सर्वाइवर क्यों नहीं कहते हैं।
महिला ने यह सभी बातें उस केस में कहीं, जिसमें आज से लगभग चार साल पहले दिल्ली के रन्हौला इलाके की एक लड़की के साथ एक व्यक्ति पर दुष्कर्म का आरोप लगा था। व्यक्ति को पास्को एक्ट के तहत जेल भेज दिया गया था। पुलिस जांच के दौरान पता चला कि लड़की से शादी करने से इनकार करने पर लड़की ने दोस्त के ऊपर झूठा बलात्कार का आरोप लगा दिया। इस केस की सुनवाई करते हुए जज निवेदिता अनिल शर्मा ने कहा कि लड़की की तरफ से जो भी साक्ष्य पेश किये गए हैं, वह भरोसे के लायक नहीं हैं।
लड़की के बयान और पुलिस की जाँच में इतना अंतर है कि यकीन नहीं किया जा सकता है। जब इस मामले में लड़की ने शिकायत की थी, उस समय उसकी उम्र 17 साल 11 महीने थी। इसी वजह से आरोपी के ऊपर पास्को एक्ट लगा दिया गया। लेकिन जाँच के दौरान लड़की ने बताया कि शादी से इनकार करने की वजह से ही उसनें गुस्से में बलात्कार का आरोप लगाया था। जज के अनुसार दोषमुक्त होने के बाद व्यक्ति लड़की के ऊपर छतिपूर्ति के लिए केस दर्ज करवा सकता है।