सच पूछो तो किसी देश का विभाजन होना अपने शरीर के किसी अंग के अलग होने के समान है.जिसके दर्द को एक देश प्रेमी उसी तरह अनुभूत कर सकता है जैसे उसे अपने शरीर का कोई अंग खोने पर होता.
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महात्मा गाँधी की हत्या भी देश विभाजन के दर्द से उपजे प्रतिशोध की प्रतिक्रिया थी जिसे नाथूराम गोडसे ने अपने तरीके से व्यक्त किया था. यहां आलेख का उद्देश्य गोड़से का महिमा मण्डन करना नहीं, बल्कि उन वास्तविक तथ्यों पर रोशनी डालना है जिसकी वजह से देश का विभाजन हुआ और राष्ट्रपिता को भी खोना पड़ा.
इनफ़ोसिस इंजीनियर युवती की गला घोंटकर हत्या
पूरा देश 30 जनवरी 1948 का वह दिन कभी नहीं भूल सकता जब राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की नाथूराम गोड़से ने गोली मारकर हत्या कर दी थी.
बापू की स्मृति में पूरा देश 30 जनवरी को शहीद दिवस के रूप में मनाकर राष्ट्रपिता को श्रद्धांजलि अर्पित करता है.प्रातः 11 बजे पूरे देश में परिवहन के पहिये थमकर दो मिनट का मौन रख उनकी आत्मा की शांति की प्रार्थना की जाती है.
देश भक्त की छवि नहीं समझ पाए
प्रायः लोग नाथूराम गोड़से को एक हत्यारे के रूप में जानते हैं, क्योंकि उसने गांधीजी की हत्या की लेकिन इस अपराध के पीछे की उसकी देश भक्त की छवि को लोग नहीं समझ पाए. नाथूराम गोड़से का जन्म 19 मई 1910 को पुणे जिले में हुआ.पिता का नाम विनायक राव और माता का नाम लक्ष्मी था.इनके चार भाई बहनों की मृत्यु के बाद जन्म हुआ इसलिए इन्हें लड़की की तरह पाला और नाक में नथ भी पहनाई इसलिए इनका नाम नाथूराम पड़ा. प्राइमरी शिक्षा स्थानीय स्कूल में पाने के बाद अंग्रेजी शिक्षा के लिए बुआ के पास पुणे भेज दिया.गोड़से स्कूली जीवन में गाँधी जी का बहुत सम्मान करते थे.उन दिनों आजादी का आंदोलन जोरो पर था. डाक कर्मचारी पिता का तबादला होने पर 1930 में रत्नागिरी आ गए और मिडिल की पढाई अधूरी छोड़कर आरएसएस और हिन्दू महासभा से जुड़ गए.उन्होंने मराठी पत्रिका ‘अग्रणी ‘का प्रकाशन किया जिसका बाद में हिन्दू राष्ट्र नाम कर दिया गया.वे देश प्रेमी थे लेकिन गांधीजी के सिद्धांतों के विरोधी थे.
गाँधी जी की हत्या के बाद नाथूराम गोड़से को 8नवम्बर 1949 को फांसी की सजा सुनाई तो गाँधी जी के दो पुत्रों ने इस फांसी का यह कहकर विरोध किया कि गोड़से को फांसी पर चढ़ाकर उनके पिता के अहिंसा के सिद्धांतों का अनादर किया जा रहा है.अंततः 15नवम्बर 1949 को गोड़से को अम्बाला जेल में फांसी दे दी गई.हत्या की में साजिश में साथ देने वाले नारायण आप्टे को भी फांसी पर लटका दिया गया लेकिन सावरकर सबूतों के अभाव में बरी हो गए.आरएसएस पर अस्थाई रोक लगाई गई जो बाद में जाँच में कुछ नहीं मिलने पर 1949 में प्रतिबन्ध हटा लिया गया.
इतना सब कुछ होते हुए भी यह सवाल अनुत्तरित था कि गोड़से ने गांधीजी को क्यों मारा. यह ऐसा विवादित विषय था जिस पर कोई बहस नहीं करना चाहता था, क्योंकि गांधीजी राष्ट्रपिता थे.गोड़से के व्यक्तित्व को जान पाना इसलिए मुश्किल था, क्योंकि उससे जुडी सभी जानकारी , दस्तावेज , बयान सार्वजनिक नहीं किए थे.जो कुछ सालों पहले ही सामने आये जिनसे पता चला कि वे शांत स्वभाव के थे . उनका विरोध गांधीजी के सिद्धांतों से था.गोड़से का मानना था था कि गांधीजी हिंदुओं के बजाय मुस्लिमों के पक्ष में ज्यादा रूचि दिखा रहे थे जो अनुचित और राष्ट्र विरोधी था.
गाँधी जी की हत्या का कारण
अब आएं उस मुख्य मुद्दे पर जो गांधीजी की हत्या का कारण बना.यह तो सभी जानते हैं कि गाँधी जी जिद्दी थे. जो सोच ले उसे पूरा करके ही दम लेते थे. विभाजन के समय केंद्र सरकार का फैसला था कि पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपए नहीं दिए जाएं .लेकिन 13 जनवरी को गांधीजी ने पाकिस्तान को रुपए देने के समर्थन में आमरण अनशन शुरू कर दिया. तब केंद्र को फैसला बदलना पड़ा और पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपए देने की घोषणा करनी पड़ी. तभी से गोड़से ने गांधीजी को मारने का विचार कर लिया था.
देश के दो टुकड़े
‘अग्रणी’ के अपने अंतिम लेख में गोड़से ने लिखा था कि गांधीजी को किसी भी कीमत पर रोकना चाहिए . गोड़से के ही शब्दों में -“मैं गांधीजी के अहिंसा के सिद्धांत का खंडन नहीं करता हूँ , वे एक संत हो सकते हैं लेकिन राजनीतिज्ञ नहीं.उनका अहिंसा का सिद्धांत आत्मरक्षा और स्वार्थ के लिए था.देश का विभाजन एक अनावश्यक फैसला था.गांधीजी ने कहा था पाकिस्तान उनकी लाश पर ही बनेगा लेकिन बाद में उन्होंने अपना फैसला वापस ले लिया .तब देश में मुस्लिम जनता का इतना प्रतिशत भी नहीं था कि देश विभाजन किया जाए.जिन्ना के कहने पर गांधीजी ने उनका पक्ष लिया और देश का विभाजन हो गया.व्यक्तिगत निर्णय देश से बड़ा नहीं हो सकता.चाकू की नोंक पर अपनी मांगें पूरी नहीं कर सकते .जिन्ना ने ऐसा ही किया और गांधीजी ने उसी चाकू से देश के दो टुकड़े कर दिए .एक भाग पाकिस्तान को दे दिया.गांधीजी ने पाकिस्तान के प्रति पैतृक जिम्मेदारी निभाई और कैबिनेट को आमरण अनशन पर मजबूर कर दिया. गोड़से का मानना था कि आज मुस्लिम ने एक टुकड़ा माँगा, कल सिख अलग राष्ट्र पंजाब की मांग करेंगे. अब गांधीजी का एक राष्ट्र का सिद्धांत कहाँ गया. “
गाँधी जी की जिद
गाँधी जी की जिद का एक किस्सा हाल ही में सामने आया है.जिसमें1947में भारत के बंटवारे के बाद पाकिस्तान को अन्य सहायता देने के साथ हथियार देने का भी मामला सामने आया तो सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इसका विरोध करते हुए कहा कि कबीलाई हमलावरों के रूप में छद्म युद्ध लड़ने वाले पाकिस्तान को हथियार नहीं देने चाहिए . एक तरफ कश्मीर पर हमला और दूसरी तरफ भारत से ही हथियार की मांग यह दोहरा रवैया नहीं चलेगा.लेकिन गाँधी जी इस पक्ष में थे कि पाकिस्तान को हथियार दिए जाने चाहिए.लेकिन पटेल अड़ गए और हथियार देने से गांधीजी को भी मना कर दिया, तो गांधीजी अनशन पर बैठ गए कह कि जब तक पाकिस्तान को हथियार नहीं भेजेंगे तब तक अन्न जल ग्रहण नहीं करूँगा. आखिर जिद का नतीजा यह हुआ कि पाकिस्तान को हथियार भेजना पड़े.बाद में पाक ने उन्हीं हथियारों का इस्तेमाल भारत के खिलाफ कश्मीर की लड़ाई में किया . आखिर गांधीजी की जिद , जिन्ना और जवाहर की क्रमशः पाकिस्तान और भारत का प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा से देश का विभाजन हुआ जिसका अंत राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की हत्या से हुआ .