यूपी और उत्तराखंड में भाजपा का टिकट लेना टेढ़ी खीर बनता जा रहा है। दावेदारों का दम परखने के लिए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कई स्तर पर उनकी छंटनी करवाई है। इससे हवा-हवाई नेताओं के लिए गुंजाइश खत्म सी हो गई है। शाह तक दावेदारों के नाम पहुंचने से पहले उन्हें 7 दहलीजें पार करनी पड़ी हैं। शाह की इस गहन कवायद का मकसद यूपी और उत्तराखंड में पार्टी का अपने आप को सत्ता के करीब मानना है।
यूपी और उत्तराखंड में भाजपा का टिकट
दावेदारों की छंटनी में शाह ने भाजपा संगठन से लेकर संघ और सर्वे तक का सहारा लिया है। भाजपा संगठन के एक प्रमुख नेता के अनुसार दावेदारों को परखने के लिए पार्टी ने 7 तरीके अपनाए हैं। अधिकतर तरीकों में जो दावेदार अव्वल रहेंगे उन्हें ही उम्मीदवार बनाया जाएगा। उक्त नेता के अनुसार पार्टी की कार्यपद्धति बदली है। खासतौर से यूपी में इस बात पर जोर दिया गया है कि हवा-हवाई राजनीति करने वाले नेताओं को तरजीह न मिले। बल्कि संगठन में कार्य करने वालों को ही पद से लेकर उम्मीदवारी तक में स्थान मिले। शाह इस मामले में अडिग हैं और उन पर किसी नेता का दबाव काम नहीं आएगा।
सूत्र बताते हैं कि दावेदारों की छंटनी के काम में टीम शाह बीते 3 माह से सक्रिय है। संघ और भाजपा संगठन से नाम मंगवाने के अलावा अलग-अलग स्तर पर 5 सर्वे कराए गए हैं। सबसे पहले शाह ने प्रदेश प्रभारी और राज्य संगठन महामंत्री के जरिए प्रदेश भाजपा के मंडल, जिला और प्रदेश से उपयुक्त दावेदारों की विधानसभावार सूची मंगाई। इसके बाद संघ से भी जिला, प्रांत और क्षेत्रवार लिस्ट मंगाई गई।
दोनों स्तरों से नाम आने के बाद शाह ने भाजपा के सभी जिलाध्यक्षों से सीट के हिसाब से उम्मीदवारों के नाम अलग से मंगाए। उसके बाद क्षेत्रीय अध्यक्षों और संगठन महामंत्रियों से भी उन्होंने अलग से योग्य उम्मीदवारों की लिस्ट मांगी। इसके बाद शाह के निर्देश पर प्रदेश संगठन महामंत्री सुनील बंसल की देखरेख में यूपी में त्रिस्तरीय सर्वे कराया गया। ऐसा ही उत्तराखंड के मामले में देखने को मिला है।
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