मेरठ। सर संघचालक जिधर से गुजरते हैं, उधर संदेश का एक झोंका उनके इर्द गिर्द घूमने लगता है। संघ प्रमुख मोहन भागवत का अंदाज दार्शनिक होते हुए तमाम मायनों से लैस था। उन्होंने हिन्दू एकता को समाज की तमाम मर्जो की दवा बताया। 1925 का संघ अब नए तेवर में नजर आया है। इधर, उनके विचारों की डोर पकड़कर भाजपा दलितों को साधने के लिए पूरी ताकत झोंकेगी। इस बहाने संकेतों में भाजपा को 2024 तक का होमवर्क दे दिया गया।
संघ की चिंता पर भाजपा समझे तो सही
गत वर्ष सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव एवं हाल में महाराष्ट्र के औरंगाबाद और इलाहाबाद में दलितों को लेकर भड़की सियासत ने भाजपा को झकझोरा है। गत लोकसभा एवं हाल में विधानसभा चुनावों में दलित वर्ग कुछ हद तक भाजपा से जुड़ा था, किंतु अब पार्टी उन्हें संभाल नहीं पा रही है। माना जा रहा है कि संघ ने पार्टी के संकट का हल करने का रोडमैप पेश कर दिया है। भागवत ने संबोधन में संकेत दिया कि दलितों के घर जाने, उन्हें अपने साथ जोड़ने एवं शाखा के लिए प्रेरित करने से न सिर्फ राष्ट्र मजबूत होगा, बल्कि फूट डालकर राज करने वालों की दाल भी नही गलेगी।
संघ प्रमुख की बातों का सियासी निहितार्थ लगाएं तो उन्होंने 2019 से 2024 तक के लोकसभा चुनावों का होमवर्क दे दिया है। संघ ने साफ संकेत दिए हैं कि अगर दलित वर्ग को नहीं साधा गया तो हिन्दू एकता की कल्पना जमीन पर नहीं उतरेगी। अगर यह वर्ग किसी नई पगडंडी पर चला तो देश के सियासी समीकरणों में उथल-पुथल मच सकती है। संघ का एजेंडा भी कमजोर पड़ेगा। संघ प्रमुख ने कहा कि स्वयंसेवक बनने से काम नहीं चलेगा, बल्कि इस पर अमल करते हुए औरों को भी प्रेरित करना होगा, जिसका इशारा इसी तरफ है। अगर भाजपा ने सियासत की इस नई धड़कन को नहीं भांपा तो 2019 लोकसभा चुनावों में संघ से आंख मिलाना मुश्किल होगी।
शक्ति का जमाया अखाड़ा
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने मेरठ में ढाई लाख की भीड़ जुटाकर एकता का शक्ति प्रदर्शन किया। हालांकि संघ शुरू से ही दलितों को अपना अभिन्न अंग बताता रहा है, किंतु अब गियर बदला गया है। मोहन भागवत ने स्पष्ट संदेश दिया कि अब संघ को सभी वर्ग तक पहुंचना होगा। विशेषकर हाल के दिनों में देशभर में दलित आंदोलनों से उपजी चिंगारी के बाद संघ की चिंता बढ़ी है। इसकी एक झलक सर संघ चालक के संबोधन में स्पष्ट नजर आई। उन्होंने सभी ¨हदुओं को सहोदर भाई बताते हुए विविधता से ज्यादा एकता पर जोर दिया। उधर, आयोजकों ने तमाम ऐसी संस्थाओं को अपने कार्यक्रम से जोड़ा, जिसमें बड़ी संख्या में दलित थे। रंगोली बनाने से लेकर भोजन व्यवस्था एवं अन्य प्रबंध तंत्र में हर वर्ग के लोगों को शामिल किया गया।
कसौटी पर वैचारिक ताकत
भारत में वैचारिक मारकाट से समाज ही नहीं, बल्कि सियासत भी प्रभावित होती रही है। संघ ने भले ही 1925 से अब तक छुआछूत, अस्पृश्यता, जाति-पात को दूर करने का लंबा प्रयास किया, किंतु ज्यादा सफलता नहीं मिली है। संघप्रमुख ने बाधा डालने वाली शक्तियों से सावधान करते हुए स्पष्ट किया कि इससे तत्काल निपटना जरूरी है। हालांकि उन्होंने इसे हिन्दू सामाजिक एकता के धागे में पिरोकर पेश किया, किंतु इस वर्ग में उपजता आक्रोश संघ की दशकों की मेहनत पर पानी फेर सकता है।
यह चिंता संघ को भी सता रही है। इन्हीं वजहों से भागवत ने एकता की ताकत बताते के कई उदाहरण पेश किए। साथ ही संघ ने अपनी रणनीति में बदलाव भी किया है। मोहन भागवत के संबोधन का निहितार्थ खंगाले तो साफ है कि संघ आने वाले दिनों में दलितों, छात्रों, गरीबों, एवं किसानों के बीच पकड़ बढ़ाएगा। माना जा रहा है कि संघ की कोख से पैदा हुई भाजपा की सियासी दखल 19 राज्यों में होने से इसका संघ को मनचाहा लाभ मिलेगा। राष्ट्रोदय के लिए दलितों के घर से बड़ी संख्या में भोजन के पैकेट मंगाना व दलित संतों को मंच पर स्थान देना इस बाबत बड़े संकेत हैं।