वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला आम बजट पेश किया। सीतारमण देश की पहली महिला पूर्णकालिक वित्त मंत्री जिन्होंने आम बजट पेश किया है। बजट के प्रस्तावों में खास क्या है? क्या इन प्रस्तावों से महंगाई बढ़ेगी? रोजगार मिलेगा?
बजट में पेट्रोल-डीजल पर उत्पाद शुल्क बढ़ाया गया है, क्या इससे महंगाई नहीं बढ़ेगी?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने पिछले पांच साल में महंगाई नियंत्रित रखी है। एक साल भी महंगाई दर चार फीसदी से अधिक नहीं हुई। 2014 में जब हमारी सरकार बनी थी उस समय दालों और सब्जियों के भाव आसमान पर थे। किसान को उसकी उपज का भाव नहीं मिल रहा था जबकि उपभोक्ता को ज्यादा दाम देना पड़ रहा था। उस समय मोदी सरकार ने तुरंत कार्रवाई कर स्थिति पर नियंत्रण किया।
महंगाई पर आपकी चिंता सही है लेकिन आप यह भी देखें कि पांच साल में महंगाई को बढ़ने नहीं दिया गया है। आजकल अर्थशास्ति्रयों का कहना है कि मुद्रास्फीति कई साल नीचे रहती तो विकास दर बढ़ने का अवसर कम रहता है। निम्न मुद्रास्फीति भी अच्छी नहीं है जैसे कि उच्च मुद्रास्फीति भी अच्छी नहीं है। इसलिए जब भी हम महंगाई की बात करते हैं तो उसके आदर्श स्तर की बात करते हैं- न बहुत कम, न बहुत ज्यादा। पेट्रोल-डीजल पर टैक्स बढ़ने से महंगाई नहीं बढ़ेगी।
आम बजट में रोजगार बढ़ाने के क्या उपाय किये गये हैं?
हम वर्चुअल साइकल के अनुरूप चल रहे हैं। जब मजदूरी बढ़ती है तो लोगों के हाथ में पैसा होता है और उससे अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ती है जिससे उत्पादन बढ़ता और फिर रोजगार में वृद्धि होती है। हमने श्रम कानूनों को सरल करके चार लेबर कोड तैयार करने का कदम उठाया । इसके अलावा लेबर मोबिलिटी के लिए प्रयास किये जा रहे हैं। इसका मतलब यह है कि जो लोग मिड लेवल पर किसी कंपनी पर काम कर रहे हैं उन्हें आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, इंटरनेट ऑफ थिंग्स और बिग डेटा जैसे कौशल प्रदान कर के उनकी क्षमता बढ़ायी जा रही है।
आपने सार्वजनिक उपक्रमों में सरकारी हिस्सेदारी घटाकर 51 प्रतिशत पर लाने का ऐलान किया है, क्या सरकारी नियंत्रण खत्म होगा?
सार्वजनिक उपक्रमों पर स्वामित्व नियंत्रण सरकार का ही बना रहेगा। हम सिर्फ हिस्सेदारी का स्तर घटाकर 51 प्रतिशत पर लाना चाहते हैं। मान लीजिए अगर किसी सार्वजनिक उपक्रम में सरकार की हिस्सेदारी 51 प्रतिशत है जबकि एलआइसी जैसी सरकारी संस्थाओं की हिस्सेदारी20 प्रतिशत है। इस तरह उस उपक्रम में कुल सरकारी सरकारी हिस्सेदारी लगभग 71 प्रतिशत हो जाएगी। हमारा कहना है कि इस पूरी हिस्सेदारी को 51 प्रतिशत के स्तर पर लाया जाए। ऐसा होने पर कम से कम 20 प्रतिशत हिस्सेदारी आम निवेशकों और उन उपक्रमों के कर्मचारियों के लिए उपलब्ध हो सकेगी।
आर्थिक सर्वेक्षण में निवेश और बचत बढ़ाने तथा उपभोग घटाने की बात कही गयी है, इस बारे में आपके क्या विचार हैं?
बचत बढ़ाने के लिए उपभोग कम करना आवश्यक नहीं है बल्कि आय बढ़ाना जरूरी है। बचत की बात होती है तो हम सिर्फ लघु बचत के बारे में सोचते हैं लेकिन कई अन्य तरीके से भी बचत हो सकती है। आजकल बहुत सी बचत पेंशन फंड, म्यूचुअल फंड, स्टॉक मार्केट के माध्यम से हो रही है। बचत सिर्फ डाकघर के बचत खाते तक सीमित नहीं है। लघु बचत भी होने दीजिए जिससे सरकार के पास भी निवेश के लिए पैसा उपलब्ध हो लेकिन यह इतना ज्यादा न हो कि निजी क्षेत्र के निवेश के लिए राशि उपलब्ध न हो।
आपने विदेशों से उधार लेने की घोषणा की है?
हम पहली बार बाहर से उधार लेने की शुरुआत कर रहे हैं। हम विदेशी मुद्रा में उधार लेंगे। विदेशी मुद्रा में उधार लेने के मामले में भारत अन्य देशों की अपेक्षा काफी पीछे है। इसलिए क्यों न हम ऐसी नीति बनायें जिससे कि हम विदेशों से उधार लें। वहां ब्याज दरें कम होने से हमारे ऊपर ब्याज का बोझ भी कम पड़ेगा। निवेश का एक रास्ता वह भी होगा जिससे हमारे उत्पादन का स्तर बढ़ेगा।
पेट्रोल व डीजल पर टैक्स बढ़ाने से क्या मांग पर असर नहीं पड़ेगा?
अगर सरकार को ढांचागत सुविधाएं जैसे सड़क, हवाई अड्डे बनाने हैं, रेल स्टेशन सुधारने हैं और बिजली उत्पादन करना है तो उसके लिए पैसा कहां से आएगा? मैं आपको शहरी परिवहन का उदाहरण देती हूं। अगर हम सार्वजनिक परिवहन का किराया नहीं बढ़ाते हैं तो फिर टैक्स बढ़ाना होगा। यह संभव नहीं है कि हम किराया भी न बढ़ायें और टैक्स भी न बढ़ायें।
दो करोड़ रुपये से अधिक आय वालों पर टैक्स का बोझ बढ़ाया गया है। क्या यह इसलिए हुआ है क्योंकि सरकार जीएसटी चोरी रोकने में नाकाम रही है, जिससे जीएसटी संग्रह नहीं बढ़ रहा?
सुपर रिच भी इसी देश से पैसा कमा रहे हैं। अगर वे राष्ट्रनिर्माण के लिए थोड़ा टैक्स देंगे तो इससे क्या फर्क पड़ेगा? जहां तक जीएसटी संग्रह की बात है तो जीएसटी में क्या हुआ? पांच छह तरह के रेट को हमने चार रेट कर दिया। इसके बाद 18 प्रतिशत से 12 प्रतिशत और 12 प्रतिशत से 5 प्रतिशत करने की मांग उठने लगी। इस तरह लगातार टैक्स दरें घटाने से एक साल में 94,000 करोड़ रुपये के फायदे सबको मिले हैं। यह सरकार का नुकसान ही है। सरकार के लिए यह आमदनी नहीं है।
आपने सोने पर टैक्स बढ़ाया है जबकि रतन वतल समिति ने टैक्स घटाने की सिफारिश की थी। क्या इससे ज्वैलरी उद्योग में रोजगार पर असर नहीं पड़ेगा?
ज्वैलरी उद्योग में काम करने वाले कारीगरों की आजीविका की बात सही है लेकिन जो लोग सोने का आयात कर ज्वैलरी बनाकर उसे निर्यात करते हैं, उन पर कोई कस्टम ड्यूटी नहीं लगती। भारत के निर्यात में जेम्स एंड ज्वैलरी प्रमुख क्षेत्र है। इसे हम रोक नहीं रहे हैं लेकिन भारत में जो सोने की घरेलू खपत होती है चाहे वह ज्वैलरी के नाते या सोने में निवेश के नाते होती है। ऐसे में अगर आप सोने में निवेश कर सकते हैं तो थोड़ा टैक्स भी दे सकते हैं। सोना के उत्पादन भारत में नहीं होता। अगर ऐसा होता तो मैं उस पर टैक्स नहीं लगाती। मगर जब हम विदेश से सोना आयात कर रहे हैं तो टैक्स लगाना जरूरी हो जाता है क्योंकि पेट्रोल-डीजल के बाद सबसे ज्यादा विदेशी मुद्रा सोने पर खर्च की जा रही है। विदेशी मुद्रा देश से बाहर जा रही है तो क्या जान बूझकर मैं चुप रहूं? इसीलिए मैने सोने पर ड्यूटी बढ़ाने का फैसला किया है।
आपने यह घोषणा की है कि किसी भी बैंक का ग्राहक दूसरे किसी भी बैंक की सेवाओं का इस्तेमाल कर सकेगा, यह कब तक संभव होगा?
आज हर बैंक के पास तकनीक है। हम व्यवस्था सुधारने के लिए काम कर रहे हैं। बैंकों का नियामक रिजर्व बैंक भी हमारे साथ है। जब सभी बैंक डिजिटल सेवाएं दे रहे हैं और वाइट लेबल एटीएम सभी बैंकों के ग्राहकों को सेवा देते हैं तो एक बैंक द्वारा दूसरे बैंकों के ग्राहकों को अपने ग्राहक की तरह सेवा क्यों नहीं दे सकता। मान लीजिए आपका खाता स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में है, आपकी पोस्टिंग कहीं ओर हो जाए जहां एसबीआइ नहीं है तो आप कैसे काम करेंगे? इसीलिए हमने यह विचार किया है कि ग्राहक जिस बैंक से चाहे, उससे जाकर सेवा ले सके। हम बैंकों के ऊपर निर्णय थोपने में भरोसा नहीं रखते, इससे बैंकों के कर्मचारियों को भी कठिनाई होगी। इसलिए पर्याप्त समय लेकर यह काम किया जाएगा। सरकार की प्राथमिकता में यह सबसे ऊपर है।
आपने गैर सरकारी सामाजिक संगठनों के शेयर बाजार में लिस्टिंग की बात कही है, इसकी जरूरत क्यों पड़ी?
हम चाहते हैं कि घरेलू गैर सरकारी सामाजिक संगठन देश के भीतर ही पैसा जुटाएं। वैसे भी जब विदेश पैसा आता है तो उसके पीछे का एजेंडा समझ नहीं आता। उन्हें पूछना भी अच्छा नहीं लगता क्योंकि वे कहते हैं कि हम भी भारत के नागरिक हैं। अगर वे पैसा भारत में ही पैसा जुटा पायेंगे तो अच्छा होगा। इस कदम से उन्हें भारत में जनता से ही पैसा जुटाने की सुविधा मिल जाएगी।
क्या एनजीओ के टैक्स बेनिफिट खत्म हो जाएंगे?
यह प्रस्ताव इस बारे में नहीं है। दान देना अलग है लेकिन स्टॉक खरीदना अलग बात है। आयकर कानून की धारा 80 जी के प्रावधान बने रहेंगे। जब आप बाजार से पैसा उठा रहे हैं तो वह दान नहीं है।