नई दिल्ली (महेश पाटिल)।भारत का 9/11 उस दिन हुआ जब सुबह जागने पर 500/1000 रुपये के पुराने नोट बंद हो चुके थे। यह निश्चित रूप से 1991 के बाद का सबसे साहसिक, सबसे नया, सबसे बड़ा, सबसे जोखिमभरा तथा सबसे असरदार सुधार है। इससे कुछ समय के लिए हर एक को परेशानी हुई है। लेकिन जैसे-जैसे वक्त बीतेगा, इसके फायदे नजर आएंगे। हालांकि, अपनी अप्रत्याशित प्रकृति तथा पैमाने के कारण इस निर्णय के प्रभाव का एकदम सही-सही अनुमान लगाना कठिन है।
अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ेगा
अगली तीन-चार तिमाहियों में जीडीपी की वृद्धि दर पर 40-45 बेसिस प्वाइंट (0.4-0.5 फीसद) तक का असर पड़ सकता है। अगले वित्त वर्ष में जीएसटी के कार्यान्वयन से भी विकास दर प्रभावित होगी, क्योंकि व्यवस्था के समायोजन में वक्त लगता है। एक बार समायोजन हो गया तो अर्थव्यवस्था का अनौपचारिक से औपचारिक में अंतरण होने से उत्पादकता में वृद्धि होगी जिससे जीडीपी की विकास दर फिर से बढ़ेगी। जैसे-जैसे घटनाक्रम आगे बढ़ेगा, देश में बैंकिंग सेवाओं के उपयोग में बढ़ोतरी होगी तथा लोग ज्यादा तेजी के साथ डिजिटल भुगतान को अपनाएंगे। बैंकों में जमा होने वाली तकरीबन 15 लाख करोड़ रुपये की नकदी में से तकरीबन पांचवां हिस्सा उनके पास बना रहेगा। यह राशि लोन पर ब्याज दरों में महत्वपूर्ण कटौती के लिए पर्याप्त होगी। इसके अलावा दुकानदार तथा ग्राहक दोनों लेनदेन के लिए ई-वॉलेट और यूपीआइ को अपनाएंगे। इसके अलावा टैक्स टू जीडीपी रेशियो जो अभी 16.6 फीसद है, में सुधार होगा और यह उभरते बाजारों के औसत 21 फीसद के आसपास पहुंच सकता है। बेहतर राजकोषीय हालात से सरकार बुनियादी ढांचा सुधार, ग्रामीण विकास के लिए ज्यादा संसाधन झोंकने के साथ आवास निर्माण के लिए ज्यादा प्रोत्साहन/रियायतें दे सकेगी। नोटबंदी का महंगाई पर भी असर पड़ेगा। इससे महंगाई कम होगी, जिससे आरबीआइ को ब्याज दरें घटाने में आसानी होगी। बचतों के भौतिक संपत्तियों के बजाय वित्तीय असेट्स का हिस्सा बनने से उनका इस्तेमाल उत्पादक कार्यों में हो सकेगा।
अर्थव्यवस्था के क्षेत्रों पर प्रभाव
अभी भले ही दिक्कत हो, लेकिन जल्द ही (कुछ हफ्तों) उपभोक्ता सामान, कृषि उत्पाद, दूरसंचार इत्यादि क्षेत्रों की कार्यशील पूंजी में इजाफा होगा। वजह यह है कि ये क्षेत्र करेंसी नोटों की कमी को शीघ्र ही पूरा करने में सक्षम हैं। नोटों की कमी से खुदरा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) तथा लघु वित्तीय संस्थाओं (माइक्रो फाइनेंस इंस्टीट्यूशंस- एमएफआइ) को अल्पकालिक (कुछ सप्ताह) के लिए कार्यशील पूंजी की दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है। लेकिन उनके ग्राहकों की भुगतान करने और बाद में कर्ज लेने की मंशा और क्षमता पर कोई असर नहीं पड़ेगा। जमीन और रियल एस्टेट की कीमतें वास्तविक स्तर पर आएंगी। इस निगेटिव वेल्थ इफेक्ट के कारण इनमें पैसा लगाना फायदे का सौदा नहीं रहेगा। परिणामस्वरूप टिकाऊ उपभोक्ता सामान, घरेलू साज- सज्जा का सामान तथा दोपहिया वाहनों की खरीदारी बढ़ने की संभावना है। चौपहिया वाहनों के सेगमेंट में शुरुआती छह महीने तक गिरावट का रुख दिखाई देगा। इनकी 20 प्रतिशत बिक्री कैश से होती है। निगेटिव वेल्थ इफेक्ट के कारण इनकी बिक्री गिरेगी। यही हाल वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री का भी होगा। व्यावसायिक माल ढोने वाले ट्रांसपोर्टरों का कारोबार मंद रहेगा। हालांकि 95 फीसद ट्रक कर्ज लेकर किस्तों में खरीदे जाते हैं। सबसे ज्यादा फायदा बैंकों को होगा। जिन्हें अल्पकाल और दीर्घकाल दोनों में फायदा होगा।
उनके सीएएसए तथा जमा दोनों में भारी बढ़ोतरी होगी। इसके अलावा नए ग्राहक अपनी राजस्ववद्र्धक आवश्यकताओं, जैसे कि सब्सिडी व कर्ज लेने, पैसा ट्रांसफर तथा भुगतान के लिए बैंकिंग सेवाओं का इस्तेमाल करेंगे। अल्पकाल में बांड यील्ड में गिरावट से बैंकों का खजाना भरेगा। लेकिन पेंशन देनदारी बढ़ने से कुछ बैंकों पर दबाव बढ़ सकता है। एलएपी में एनपीए बढ़ने से थोक कर्ज तथा एमएसएमई कर्जों की बैंकों तथा आवासीय वित्त उपलब्ध कराने वाली वित्तीय कंपनियों की असेट क्वालिटी प्रभावित हो सकती है। इसी तरह रियल एस्टेट, ज्वैलरी तथा लक्जरी सामान के क्षेत्र, जहां बड़े पैमाने पर नकदी का इस्तेमाल होता आया है, भी मध्यम अवधि में नकारात्मक प्रभाव का शिकार हो सकते हैं। सीमेंट सेक्टर जो अपनी 60 फीसद मांग रियल एस्टेट सेक्टर से प्राप्त करता है, उसकी हालत लंबे समय तक पतली रहेगी। इसमें तभी सुधार होगा, जब ब्याज दरें घटने के साथ रियल एस्टेट की हालत बेहतर होगी।
इस तरह हमारा मानना है कि आमदनी में हुई बढ़ोतरी वित्त वर्ष 2018 में जस की तस हो जाएगी। इसमें फिर से तभी सुधार होगा जब नोटबंदी का असर समाप्त होने के साथ जीएसटी लागू हो जाएगा। राजकोषीय स्थिति में सुधार होने से सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर व ग्रामीण भारत पर ज्यादा खर्च करने की हालत में होगी। मकान बनाने के लिए वह ब्याज दर प्रतिपूर्ति के अलावा करों में कमी तथा सब्सिडी प्रदान कर सकती है। देश भर में जमीनों के दाम गिरने से आवास क्षेत्र में सफलता की नई गाथा लिखी जा सकती है। इन सेगमेंट के विकास से कम खपत और प्राइवेट पूंजी खर्च में कमी के कुप्रभाव को कुछ हद तक निष्क्रिय किया जा सकेगा तथा रोजगार के नए अवसर सृजित हो सकेंगे।