गोस्वामी तुलसीदास जी नाम महिमा के क्रम को आगे बढ़ाते हैं. सगुण और निर्गुण ब्रह्म के विषय को बताते हुए अंत में राम नाम की महिमा का वर्णन किया. उन्होंने स्पष्ट किया कि उनको जो ईश्वर की प्राप्ति हुई है वह न निर्गुण से और न सगुण से वह तो केवल नाम द्वारा हुई है. वह नाम को ही सबसे बड़ा मानते हैं.
अगुन सगुन दुइ ब्रह्म सरूपा।
अकथ अगाध अनादि अनूपा।।
मोरें मत बड़ नामु दुहू तें।
किए जेहिं जुग निज बस निज बूतें।।
निर्गुण और सगुण ब्रह्म के दो स्वरूप हैं. ये दोनों ही अकथनीय, अथाह, अनादि और अनुपम हैं. मेरी सम्मति में नाम इन दोनों से बड़ा है, जिसने अपने बल से दोनों को अपने वश में कर रखा है.
प्रौढ़ि सुजन जनि जानहिं जन की।
कहउँ प्रतीति प्रीति रुचि मन की।।
एकु दारुगत देखिअ एकू।
पावक सम जुग ब्रह्म बिबेकू।।
उभय अगम जुग सुगम नाम तें।
कहेउँ नामु बड़ ब्रह्म राम तें।।
ब्यापकु एकु ब्रह्म अबिनासी ।
सत चेतन घन आनँद रासी ।।
सज्जन गण इस बात को मुझ दास की ढिठाई अथार्त दुस्साहस या केवल काव्योक्ति न समझें। मैं अपने मन के विश्वास, प्रेम और रुचि की बात कहता हूँ। निर्गुण और सगुण दोनों प्रकार के ब्रह्म का ज्ञान अग्नि के समान है। निर्गुण उस अप्रकट अग्नि के समान है जो काठ यानी लकड़ी के अंदर है, परन्तु दिखती नहीं, और सगुण उस प्रकट अग्नि के समान है जो प्रत्यक्ष दिखती है। दोनों एक ही हैं, केवल प्रकट-अप्रकट के भेद से भिन्न मालूम होती हैं। इसी प्रकार निर्गुण और सगुण एक ही हैं। इतना होने पर भी] दोनों ही जानने में बड़े कठिन हैं, परन्तु नाम से दोनों सुगम हो जाते हैं। इसी से मैंने नाम को निर्गुण ब्रह्म से और सगुण राम से बड़ा कहा है, ब्रह्म व्यापक है, एक है, अविनाशी है, सत्ता, चैतन्य और आनन्द की घन राशि है ।।
अस प्रभु हृदयँ अछत अबिकारी।
सकल जीव जग दीन दुखारी।।
नाम निरूपन नाम जतन तें।
सोउ प्रगटत जिमि मोल रतन तें।।
ऐसे विकार रहित प्रभु के हृदय में रहते भी जगत के सब जीव दीन और दुखी हैं। नाम का निरूपण करके नाम के यथार्थ स्वरूप, महिमा, रहस्य और प्रभाव को जानकर नाम का जतन करने से श्रद्धापूर्वक नाम जप रूपी साधन करने से वही ब्रह्म ऐसे प्रकट हो जाता है जैसे रत्न के जानने से उसका मूल्य.
निरगुन तें एहि भाँति बड़ नाम प्रभाउ अपार ।
कहउँ नामु बड़ राम तें निज बिचार अनुसार ।।
इस प्रकार निर्गुण से नाम का प्रभाव अत्यन्त बड़ा है। अब अपने विचार के अनुसार कहता हूँ कि नाम राम से भी बड़ा है ।।