जेटली पेट्रोल और डीजल के बढ़े दामों को कम करने के लिए एक्साइज ड्यूटी में कटौती करने के विकल्प को नकार चुके हैं। उनका तर्क था कि सरकार को सार्वजनिक खर्च बढ़ाने के लिए रेवन्यू की जरूरत है जिसके बिना ग्रोथ पर असर पडे़गा। उन्होंने कहा, ‘आपको समझना चाहिए कि सरकार को चलाने के लिए रेवन्यू की जरूरत है। आप हाइवे कैसे बनाएंगे?’
इकॉनमी का हाल
यह साफ है कि अर्थव्यवस्था पटरी पर नहीं है। जीडीपी विकास दर अप्रैल-जून तिमाही में तीन साल के निचले स्तर पर गिर 5.7 प्रतिशत पर पहुंच गई। यही नहीं वित्त मंत्रालय ने बुधवार को ट्वीट कर बताया कि निजी निवेश भी गिरा हुआ है, जिस पर सरकार काम कर रही है। कुछ दिन पहले पूर्व पीएम और अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह ने निजी निवेश के बारे में कहा था कि प्राइवेट सेक्टर इन्वेस्टमेंट पूरी तरह से धड़ाम है और अर्थव्यवस्था केवल सार्वजनिक खर्च के भरोसे चल रही है।
पेट्रोल-डीजल सरकार का सहारा
अर्थव्यवस्था की बुरी हालत में सरकार के खजाने को चलाने का काम पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स ही कर रहे हैं। कुछ ही दिन पहले पेट्रोल और डीजल के रेट तीन साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गए। ऐसा तब है जब कच्चे तेल के दाम आधे हो चुके हैं। रेवन्यू की कमी को पूरा करने का काम पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स से मिलने वाली एक्साइज ड्यूटी से ही हो रहा है। वित्त वर्ष 2013 में एक्साइज ड्यूटी कलेक्शन में पेट्रोल और डीजल का हिस्सा 26 प्रतिशत था जो वित्त वर्ष 2016 में 54 प्रतिशत तक पहुंच चुका है।
सत्ताधारी बीजेपी के आईटी सेल हेड अमित मालवीय ने पेट्रोलियम मंत्रालय के डेटा को ट्वीट करते हुए बताया कि पेट्रो प्रॉडक्ट्स से केंद्र सरकार से ज्यादा फायदा राज्य सरकारों के रेवन्यू को होता है। एक्साइज ड्यूटी से मिलने वाले रेवन्यू में भी बढ़ोतरी हुई है। साफ है कि सरकार पेट्रो प्रॉडक्ट्स से होने वाले फायदे को आपकी जेब तक नहीं पहुंचाने वाली।
कोई और रास्ता?
इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि पेट्रोल और डीजल की बढ़ी कीमतों से सरकार की बड़ी कमाई हो रही है, लेकिन ऐसा नहीं है कि सरकार दूसरे तरीकों के बारे में नहीं सोच रही। गुरुवार को वित्त मंत्रालय के हैंडल से किए गए ट्वीट्स में बताया गया कि सरकार विनिवेश के जरिए भी रेवन्यू बढ़ाने पर जोर दे रही है। इसके अलावा सरकार आर्थिक दशा को सुधारने के लिए 50 हजार करोड़ रुपये खर्च कर इकॉनमी को पटरी पर लाएगी।