उत्तराखंड में नहीं चला पीएम मोदी का फॉर्मूला, समधी तक को टिकट

demonetisation-pac-can-summon-pm-modi-if-rbi-governor-urjit-patels-reply-not-satisfactory_1483956762 (1)सात जनवरी को भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘मेरा भाई-मेरा बेटा’ का फार्मूला टिकट वितरण में इस्तेमाल नहीं करने की सलाह उत्तराखंड में नहीं चली। यहां बेटा-बेटी को तो टिकट मिला ही, साथ ही समधी तक का भी ख्याल रखा गया।
 
धनोल्टी के सीटिंग विधायक महावीर रांगड़ का टिकट काटकर गृहमंत्री राजनाथ सिंह के समधी नारायण सिंह राणा को टिकट दिया गया। कभी विधानसभा चुनाव नहीं जीतने वाले बुजुर्ग राणा को पैराशूट से उतार पार्टी ने युवा रांगड़ को अपने सर्वे के आधार पर दरकिनार किया है। पांच वर्षों से राजनीति में निष्क्रिय रहे राजनाथ के समधी को उतार कर पार्टी को कितना नफा या नुकसान होगा, यह तो नतीजे आने के बाद ही साफ हो पाएगा।

भाजपा पर परिवारवाद के लग रहे आरोपों को लेकर कांग्रेस अभी भले ही आक्रामक नहीं दिख रही है, लेकिन भाजपा के बागी हुए नेताओं ने झंडा बुलंद कर दिया है।
 

राजनाथ सिंह के समधी को टिकट

कांग्रेस से आए बागियों के बेटों को टिकट में तो मोल भाव की गुंजाइश रहती है, लेकिन अपनी पार्टी में परिवारवाद की परंपरा डालने से पार्टी नेताओं में खासा आक्रोश है। प्रदेश में दो सिटिंग विधायकों के टिकट इसलिए कटे, क्योंकि वहां रिश्तेदारों को एडजस्ट करना था।
गृहमंत्री राजनाथ सिंह के समधी नारायण सिंह राणा का धनोल्टी से टिकट मिला है। पार्टी इसका कारण यह बता रही है कि विधायक रांगड़ की स्थिति आंतरिक सर्वेक्षणों में कमजोर निकल कर आई थी, जिसके चलते राणा को मौका दिया।

वहीं, दूसरी सिटिंग विधायक विजय बड़थ्वाल का टिकट यमकेश्वर से काट पूर्व सीएम बीसी खंडूड़ी की बेटी ऋतु खंडूड़ी को टिकट दिया गया है। विधायक बड़थ्वाल खंडूड़ी को लेकर अपनी आपत्ति जता चुकी हैं। इसके  अलावा कांग्रेस से आए यशपाल आर्य और उनके बेटे को भी पार्टी ने टिकट दिया है।

…तो पैराशूट से उतरे राणा

गृहमंत्री राजनाथ सिंह के समधी और ओलंपियन शूटर जसपाल राणा के पिता नारायण सिंह राणा लंबे समय से भाजपा में हैं। राज्य गठन के बाद भाजपा की सरकार में वह मंत्री रहे। उनको यूपी में एमएलसी होने का फायदा मिला।
वर्ष 2002 में पार्टी ने राणा को मसूरी से प्रत्याशी बनाया, लेकिन उनको बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा। हार का अंतर साढ़े छह हजार रहा। इसके बाद वर्ष 2007 में उन्हें टिकट नहीं मिला, लेकिन भाजपा की सरकार बनी तो उन्हें दर्जाधारी मंत्री बनाया गया। इस बीच वे प्रदेश संगठन में उपाध्यक्ष रहे।

वर्ष 2012 में धनोल्टी से टिकट मांगा, लेकिन पार्टी ने रांगड़ को प्रत्याशी बनाया। इसके बाद से उन्होंने पार्टी से दूरी बना ली। इस बीच राणा इस क्षेत्र में युवाओं के बीच खेल गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए सक्रिय रहे। राणा जिस नैनबाग क्षेत्र से ताल्लुक रखते हैं, वहां उनकी बिरादरी के अच्छे-खासे वोट हैं। धनोल्टी में इस क्षेत्र के वोटर अहम भूमिका निभाते हैं। 

बेटे जसपाल कैसे करेंगे प्रचार 

नारायण सिंह राणा का सबसे मजबूत पक्ष उनके बेटे जसपाल की अंतरराष्ट्रीय ख्याति है। चूंकि, उनके बेटे जसपाल राणा कांग्रेस में है तो उनके भी पिता के लिए प्रचार करने की संभावना कम है। इस तथ्य को विरोधी भी उनके खिलाफ प्रचार में भुनाने का काम करेंगे। 
रांगड़ के निर्दलीय उतरने से बढ़ेगा संकट
महावीर रांगड़ अपना टिकट कटने का विरोध जता रहे हैं। उनके समर्थकों ने पार्टी प्रदेश कार्यालय में प्रदर्शन भी किया। संभावना यह भी है कि रांगड़ निर्दलीय उतर सकते हैं। इस सीट से सरकार में मंत्री और उक्रांद विधायक प्रीतम सिंह पंवार भी चुनाव में उतर रहे हैं। इसके अलावा कांग्रेस का प्रत्याशी अभी घोषित होना है, जिसके बाद तमाम समीकरण साफ हो पाएंगे। राणा की सबसे बड़ी कमजोरी उनकी क्षेत्र में सक्रियता नहीं होना बताया जा रहा है।
 

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com