देहरादून: प्रदेश के कुल भौगोलिक क्षेत्र के 71.05 फीसद वन भूभाग में पसरे छह नेशनल पार्क, सात अभयारण्य, चार कंजर्वेशन रिजर्व व 44 वन प्रभाग और इनकी सुरक्षा के लिए रखवालों के पास महज 1248 हथियार, वह भी दशकों पुराने। इनमें भी बड़ी संख्या में हथियार खराब पड़े हैं। यह है उत्तराखंड में वन एवं वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए वन महकमे के पास उपलब्ध आग्नेयास्त्रों का लेखा-जोखा। हालांकि, बदली परिस्थितियों में हथियारों के लिहाज से आधुनिकीकरण का प्रस्ताव है, मगर यह शासन में फाइलों में इधर से उधर घूम रहा है।
वन एवं वन्यजीव तस्करों से मुकाबला करने के मद्देनजर वन विभाग में हथियारों के आधुनिकीकरण का मसला पिछले तीन साल से उठ रहा है, लेकिन अभी तक इसे मुकाम नहीं मिल पाया है। नतीजतन, वन एवं वन्यजीवों की सुरक्षा में मुस्तैद जंगल के रखवालों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
पूर्व में इसे देखते हुए नए हथियार खरीदने के लिए दो करोड़ की राशि भी मंजूर हुई। तब विभाग ने प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेजा, लेकिन बात आई और गई हो गई। अब फिर से यह मसला उठा है।
वन एवं पर्यावरण मंत्री डॉ.हरक सिंह रावत भी मानते हैं कि वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए कार्मिकों के पास आधुनिक हथियार होने आवश्यक हैं। उन्होंने बताया कि इस बारे में प्रस्ताव गृह विभाग को गया है। राज्य से सभी औपचारिकताएं पूरी होने के बाद हथियार खरीद को केंद्र से हरी झंडी मिलनी है। उन्होंने बताया कि इस प्रक्रिया को जल्द से जल्द पूरा कराने के साथ ही केंद्र में भी दस्तक दी जाएगी।