अटल जी के जीवन से जुड़ी ये कुछ महत्वपूर्ण बातें …

17नई दिल्ली : आज भारत रत्न पूर्व अटल बिहारी वाजपेयी का 92वां जन्मदिन है। केंद्र सरकार अटल के जन्मदिन को गुड गर्वनेंस डे के तौर पर मना रही है। उनका जीवन ऐसा है जिसमें उनके विरोधी भी उनकी तारीफ करते हैं।

अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी कवि, पत्रकार और प्रखर वक्ता भी हैं। 
वे भारतीय जनसंघ की स्थापना करने वाले महापुरुषों में से एक हैं और 1967 से 1973 तक उसके अध्यक्ष भी रहे। 
वे जीवन भर भारतीय राजनीति में सक्रिय रहे। 
उन्होंने लंबे समय तक राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया।
उन्होंने अपना जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेकर प्रारम्भ किया था और देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचने तक उस संकल्प को पूरी निष्ठा से निभाया।
वाजपेयी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के पहले प्रधानमन्त्री थे जिन्होंने गैर कांग्रेसी प्रधानमन्त्री पद के 5 साल बिना किसी समस्या के पूरे किए। 
उन्होंने 24 दलों के गठबंधन से सरकार बनाई थी जिसमें 81 मंत्री थे। कभी किसी दल ने आनाकानी नहीं की। इससे उनकी नेतृत्व क्षमता का पता चलता है।
फ़रवरी 1999 को सदा-ए-सरहद नाम से दिल्ली से लाहौर तक बस सेवा शुरू की गई। इस सेवा का उद्घाटन करते हुए प्रथम यात्री के रूप में वाजपेयी जी ने पाकिस्तान की यात्रा करके नवाज़ शरीफ से मुलाकात की और आपसी संबंधों में एक नई शुरुआत की।
कवि के रूप में उनकी कुछ प्रमुख प्रकाशित रचनाएं:
-मृत्यु या हत्या
अमर बलिदान (लोक सभा में अटल जी के वक्तव्यों का संग्रह)
-कैदी कविराय की कुण्डलियाँ
-संसद में तीन दशक
-अमर आग है
-कुछ लेख: कुछ भाषण
अटल सबसे लंबे समय तक सांसद रहे हैं और जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के बाद सबसे लम्बे समय तक गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री भी।
वह पहले प्रधानमंत्री थे जिन्होंने गठबन्धन सरकार को न केवल स्थायित्व दिया अपितु सफलता पूर्वक संचालित भी किया।
अटल ही पहले विदेश मंत्री थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी में भाषण देकर भारत को गौरवान्वित किया था।
देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू भी वाजपेयी की हिंदी से प्रभावित थे। वह उनके सवालों का जवाब संसद में हिंदी में ही देते थे। विदेश नीति हमेशा उनका प्रिय विषय रहा। 
एक बार नेहरू ने जनसंघ की आलोचना की तो अटल ने कहा, ‘मैं जानता हूं पंडित जी रोजाना शीर्षासन करते हैं। वह शीर्षासन करें, मुझे कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन मेरी पार्टी की तस्वीर उलटी ना देखें।’ इतना सुनना था कि नेहरू जी भी ठहाका मारकर हंस पड़े।
इंदिरा गांधी उन्हें गृहमंत्री के पद से हटाना चाहती थीं। चव्हाण को वित्तमंत्री बना दिया गया। उस वक्त हालात बहुत खराब थे और महंगाई सर चढ़कर बोल रही थी।
अस्सी के दशक में जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं, अटल बिहारी उत्तर प्रदेश में हरिजनों पर अत्याचार की घटना को लेकर पदयात्रा कर रहे थे।
1991 में लखनऊ में चुनाव प्रचार चल रहा था। कलराज मिश्र बीजेपी यूपी के अध्यक्ष थे, वह वाजपेयी से मिलने आए लेकिन वाजपेयी प्रचार पर गए हुए थे। जब लौटे तो देखा कि कलराज मिश्र सोफे पर एसी में सो रहे हैं। वाजपेयी ने अपने खास लहजे में कहा, ‘लो, हिंदू राष्ट्र तो सो रहा है। कैसे काम चलेगा।’
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि तमिलनााडु से एआईएडीएमके की नेता जयललिता की दोस्ती दरअसल बीजपी नेता लालकृष्ण आडवाणी से थी। वाजपेयी को जयललिता के धुर विरोधी डीएमके के नेता करुणानिधि का करीबी माना जाता रहा है। दोनों के बीच रिश्तों के कभी सहज न हो पाने की शायद यह एक बड़ी वजह रही हो।
1996 में जब 13 दिन की वाजपेयी सरकरा बनी थी, उस वक्त भी जयललिता को साथ लाने की कोशिशें की गई थीं, लेकिन जयललिता तब तैयार नहीं हुई। 
एक बार अटल जी तांगे के नीचे दब गए थे जिस हादसे में मुश्किल से  उनकी जान बच पाई थी।
 ग्वालियर में जन्मे अटल का जन्मदिन भारत में ‘गुड गवर्नेंस डे’ के रूप में मनाया जाता है।

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