यूजर्स की निजता को बचाने के लिए जरूरी है डाटा सरंक्षण का कानून बनाया जाना

भारतीय यूजर्स की तरफ से भारी विरोध के परिणामस्वरूप वाट्सएप ने प्राइवेसी संबंधी अपनी नई नीतियों को तीन महीने के लिए स्थगित कर दिया है। मगर यह सवाल अब भी बना हुआ है कि तीन महीने बाद क्या होगा? इसी बीच सर्वोच्च न्यायालय ने इन नई नीतियों से ही संबंधित एक याचिका पर सुनवाई करते हुए वाट्सएप और फेसबुक को नोटिस जारी किया है। न्यायालय ने इन कंपनियों से कहा है कि आप होंगे दो-तीन ट्रिलियन डॉलर की कंपनी, लेकिन उपभोक्ताओं की निजता उससे अधिक कीमती है।

यूं कहने को तो ये कंपनियां लगातार लोगों के डाटा की सुरक्षा का आश्वासन देती रहती हैं, परंतु इनकी कही बातों पर भरोसा करने का कोई ठोस आधार भारतीय उपभोक्ताओं के पास नहीं है। गौर करें तो फेसबुक का यह दावा रहा है कि वह अपने उपभोक्ताओं का डाटा किसी तीसरी पार्टी से साझा नहीं करती, लेकिन बीते वर्षो में सामने आए कैंब्रिज एनालिटिका प्रकरण ने फेसबुक के इस दावे की कलई खोल दी। अब वाट्सएप भी फेसबुक के स्वामित्व वाली कंपनी है। खास बात यह है कि यह विशेष रूप से एक चैटिंग एप है, जहां लोग बहुत-सी व्यक्तिगत बातें और जानकारियां साझा करते हैं।

अबतक वाट्सएप कहता आया था कि वहां हुई पूरी बातचीत एंड टू एंड इनक्रिप्टेड होती है, लेकिन अब यदि इस तरह की जानकारियां वाट्सएप फेसबुक से साझा करेगा तो यह लोगों की निजता पर बहुत बड़े संकट की बात है।सर्वोच्च न्यायालय के नोटिस पर वाट्सएप की तरफ से कहा गया है कि विदेशों में डाटा सुरक्षा से संबंधित कानून हैं, लिहाजा कंपनी वहां उनका पालन करती है। यदि भारत में भी ऐसा कोई कानून बने तो वह उसका पालन करेगी।

वाट्सएप की यह बात ठीक है कि अभी भारत में डाटा संरक्षण को लेकर कोई कानून नहीं है, लेकिन सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के तहत व्यक्तिगत डाटा के गलत तरीके से प्रकटीकरण और दुरुपयोग को अपराध मानते हुए मुआवजे और सजा का प्रविधान है। अब जहां तक डाटा संरक्षण कानून की बात है तो इसके लिए देश में वर्ष 2017 से ही प्रयास हो रहे हैं। तब न्यायमूíत बीएन श्रीकृष्ण की अध्यक्षता में एक समिति बनी थी। उस समिति ने 2018 में डाटा संरक्षण से संबंधित विभिन्न प्रविधानों के साथ एक मसौदा तैयार किया था, मगर उसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका।

फिर दिसंबर 2019 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने श्रीकृष्ण समिति से अलग एक मसौदे को मंजूरी दी और वह विधेयक सदन में पेश हुआ। उस विधेयक में डाटा संरक्षण से संबंधित कई महत्वपूर्ण प्रविधान थे, जिनमें एक प्रमुख प्रविधान यह भी था कि संवेदनशील व्यक्तिगत डाटा का संग्रहण केवल भारत में होगा और यदि उसे भारत से बाहर प्रसंस्कृत करना हो तो वह डाटा प्रोटेक्शन एजेंसी की स्वीकृति तथा कुछ शर्तो के पालन के साथ ही किया जा सकेगा।जाहिर है यह प्रविधान डाटा संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण सिद्ध होता, परंतु अभी यह विधेयक समीक्षा के लिए संसद की संयुक्त समिति के पास है और इसके पारित होने का इंतजार बना हुआ है।

उम्मीद है कि बजट सत्र के दूसरे चरण जो आठ मार्च से शुरू होने वाला है उसमें इस विधेयक को पुन: संसद में पेश किया जाएगा तथा डाटा संरक्षण की नई चुनौतियों को देखते हुए उसके अनुरूप इसकी उपयोगिता का परीक्षण करते हुए तथा आवश्यक होने पर इसमें नए प्रविधान जोड़कर इसे पारित किया जाएगा। अब और अधिक समय तक इस विधेयक को रोककर नहीं रखा जा सकता। इसमें और देरी से फेसबुक, वाट्सएप जैसी कंपनियों को लोगों की निजता के साथ खिलवाड़ करने की छूट मिलती रहेगी।

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