नासा का मार्स रोवर परसिवरेंस 203 दिन की लंबी यात्रा के बाद मंगल ग्रह की सतह पर गुरुवार की रात 3:55 मिनट (अमेरिकी स्थानीय समयानुसार) सफलतापूर्वक उतर गया। इसके साथ ही नासा की जेट प्रपल्शन लैब तालियों की गड़गड़ाहट के साथ गूंज उठी। हर चेहरे पर खुशी थी और हर कोई एक दूसरे को बधाई भी दे रहा था। कुछ की आंखों में खुशी के मारे आंसूं भी थे। अपने 203 दिनों में इस यान ने 293 मिलियन मील (472 मीलियन किमी) की यात्रा तय की है। आपको बता दें कि मार्स के लिए नासा ये मिशन 30 जुलाई को फ्लोरिडा से लॉन्च किया था। नासा के रोवर ने उतरने के साथ ही वहां की पहली तस्वीर भी ग्राउंड कंट्रोल को भेज दी है।
आपको बता दें कि मार्स की पथरीली सतह पर उतरना रोवर के लिए आसान काम नहीं था। इसकी लैंडिंग के दस मिनट बेहद मुश्किल थे। नेवीगेशन, गाइडेंस और कंट्रोल ऑपरेशन की हैड स्वाति मोहन के मुताबिक इस दौरान 13 मील प्रति घंटे की स्पीड़ से आगे बढ़ते हुए इसके कैप्सूल की स्पीड कम करने की जरूरत थी, जिसके लिए इसमें एक पैराशूट लगाया गया था
इस दौरान उतरते हुए इसने मंगल की सतह की डिजीटल इमेज तैयार की और ये तय किया कि उसको कहां जाना है और कहां उतरना है। ये कुछ ऐसा ही था जैसे हम गाड़ी चलाते हुए आंखों को पूरा खोल कर रखते हैं और सामने की चीजों का अंदाजा लगाते हैं। मंगल की सतह से करीब 20 मीटर की उंचाई पर रोवर से जुड़े यान को बाहर निकाला गया। यान ने रोवर परसिवरेंस को धीरे से मंगल की सतह पर उतारा और वापस चला गया।
नासा में लैंडिंग एंड कम्यूनिकेशन इंजीनियर चोले सिकर के मुताबिक परसिवरेंस का मंगल की सतर पर उतरना क्यूरोसिटी रोवर के उतरने से कहीं ज्यादा मुश्किल था। इसकी वजह थी कि ये काफी बड़ा है और भारी भी है। इसमें कई सैंसर लगे हैं। इसमें एक छोटा सा हैलीकॉप्टर इंजीन्यूटी लगा है, जिसकी अपनी एक बड़ी खासियत है और जो पहली बार वहां पर भेजा गया है। रोवर में लगी रोबोटिक आर्म के जरिए वहां की पथरील सतह के नमूने लिए जाएंगे। रोबोटिक आर्म के जरिए ही इसको एक ट्यूब में सुरक्षित रखा जाएगा स्वाति मोहन के मुताबिक जेजीरो क्रेटर बेहद खतरनाक जगह है। वहां पर रोवर को नुकसान पहुंचाने वाली सारी चीजें मौजूद हैं। वहां पर ऊंची और बेहद ठोस चट्टानें हैं। रेत के ऊंचे टीले हैं।