मुंबई| गुजरात और हिमाचल में बीजेपी को बहुमत मिल गया है. दोनों राज्यों में जल्द ही बीजेपी के मुख्यमंत्री दावेदारों का ऐलान हो जाएगा. फिलहाल कांग्रेस और बीजेपी का सामना संसद में होगा मगर अब सभी की नजर अगले साल होने वाले अहम मुकाबलों पर टिकी हुई है. अगले साल 8 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं जिनमें से 4 बड़े राज्य है कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़. जहां कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है, वहीं बाकी तीन राज्यों में बीजेपी की सत्ता है. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी लगातार 15 साल से सत्ता में है.
अब कर्नाटक में मोदी बनाम राहुल
इन राज्यों में सबसे पहले चुनाव कर्नाटक में अप्रैल 2018 के दौरान होने हैं. इस चुनाव में फिर एक बार पीएम मोदी और राहुल गांधी आमने-सामने होंगे. गुजरात में दोनों के बीच जुबानी जंग और रणनीति का खेल देश देख ही चुका है. कर्नाटक में भी मुकाबला बेहद दिलचस्प होने की संभावना है. कर्नाटक पहला दक्षिण भारतीय राज्य है जहां बीजेपी ने भगवा झंडा फहराया था. तब येदियुरप्पा ने सीएम पद की कमान संभाली थी. हालांकि उन पर भ्रष्टाचार के बड़े आरोप लगा, उन्हें सीएम पद से हटाया गया और फिर वह पार्टी से अलग हो गए. लेकिन कुछ साल बाद उन्होंने फिर बीजेपी में वापसी की है और अब उन्हें बीजेपी ने सीएम पद का उम्मीदवार भी घोषित कर दिया है.
सिद्धारमैया पर कांग्रेस की आस
मौजूदा हालत में सूबे में कांग्रेस की स्थिति ज्यादा ख़राब नहीं है. अगर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के हाथों में सूत्र दिए गए तो पार्टी जीत भी सकती है. कई वजह से सिद्धारमैया और कर्नाटक में चर्चा में रहा है. चाहे राज्य में भगवा उभार हो या हाई प्रोफाइल मर्डर केस या फिर राज्य के झंडे को लेकर सीएम का बयान, कर्नाटक कई वजहों से चर्चा में रहा. सिद्धारमैया के सामने अब कांग्रेस के इस गढ़ को बचाने की चुनौती है. ये एकमात्र बड़ा राज्य है जहां कांग्रेस ने मोदी लहर के बावजूद सत्ता कायम रखी. विजय रथ पर सवार बीजेपी यहां अपना परचम लहराने के लिए कोई कोर कसर बाकी नहीं रखेगी. चुनाव प्रचार पहले ही शुरू हो चुका है.
गुजरात के नतीजों से कांग्रेस में उत्साह
वैसे गुजरात चुनाव नतीजों के बाद कांग्रेस पार्टी में खासा उत्साह है. अगर राहुल गांधी ने अपनी आक्रामकता इसी तरह बरकरार रखी तो बीजेपी को झटका लग सकता है. राहुल गांधी की लोकप्रियता लगातार बढ़ती जा रही है, उनकी छवि भी बदली है. वह बीजेपी के हिंदुत्व का जवाब सॉफ्ट हिंदुत्व से दे रहे हैं. वह ऐसे बयानों से दूर होते दिख रहे हैं जिनकी वजह से कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ता है. गुजरात में इसकी बानगी दिखी भी है. उनकी सभाओं में भी काफी लोग आ रहे हैं. ये सब चीज़ें कर्नाटक में बीजेपी के लिए परेशानी का सबब बन सकती हैं.
सिद्धारमैया की है अलग रणनीति
हाल के दिनों में कर्नाटक में कन्नड़ भाषा को लेकर काफी आन्दोलन हुए हैं. बैंगलुरु में प्रदर्शनकारियों ने मेट्रो स्टेशनों पर लगे हिंदी बोर्ड को हटाया था. बताया जा रहा है कि यह सभी आंदोलन करने वालों को मुख्यमंत्री का समर्थन हासिल है. बताया जाता है कि वह इस आन्दोलन के जरिए वह बीजेपी के हिंदुत्व कार्ड को काउंटर करने की रणनीति बना रहे हैं. वह हिंदुत्व का जवाब कन्नड़ भाषा अस्मिता के जरिए देना चाहते हैं. कर्नाटक के अलग झंडे पर वह अपनी बात खुलकर रख चुके हैं.
सिद्धारमैया सोशल मीडिया पर भी बेहद ऐक्टिव हैं. वह इसके जरिए अपनी सरकार की उपलब्धियों को लोगों को बताते हैं, साथ ही अलग धर्म का दर्जा देने के लिए आंदोलन चला रहे लिंगायत समुदाय के विभाजन पर भी नजर बनाए हुए हैं. सिद्धारमैया ने सूबे के मुस्लमान वोटरों पर भी टीपू सुल्तान जयंती मनाकर पकड़ बना रखी है.
बीजेपी नहीं जगा पाई सत्ता विरोधी लहर
कर्नाटक में बीजेपी को 2014 आम चुनावों के दौरान लोगों का समर्थन जरूर मिला था मगर तब पीएम मोदी की लहर थी. मगर उसके बाद से बीजेपी कभी भी सिद्धारमैया को मुश्किल में नहीं डाल पाई है. भ्रष्टाचार के मुद्दे पर उन्होंने कांग्रेस को घेरने की कोशिश जरूर की मगर हासिल कुछ नहीं हुआ. वहीं, कर्नाटक बीजेपी में भी अंदरूनी कलह है. पार्टी का एक बड़ा तबका येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री नहीं बनने देना चाहता. उनपर करप्शन के बड़े आरोप लग चुके हैं. अमित शाह के आगे वहां पार्टी को एकजुट करने की बड़ी चुनौती है.
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