अपने स्वाभाव के कारण छत्तीसगढ़ में लोकप्रिय होता हुआ एक युवा संन्यासी जी हा इस बात से तो आप भी सहमत होंगे की धर्म आजकल कमाई का सबसे आसान तरीका बन गया है इसी कारण अब लोग इस क्षेत्र में व्यवसायिक सम्भावनाओ को देखते हुये पूजीपतिवर्ग के कुछ लोग बडी चालाकी से धार्मिक क्षेत्र में इन्वेस्टमेंट की तैयारी से संत महात्माओ संन्यासियों के पास प्रपोजल भी लाने लगे है,उन लेगो के पास विशेष रूप से जिनमे अपार सम्भावनाये है जो कथा वाचन में कुशल एवं मीठी सुरीली बोली से सम्पन्न है। जी है पिछले दिनों मेरी मुलाकात एक सामान्य सा दिखने वाले युवा संन्यासी से हुयी साथ बात चीत में इस संन्यासी ने इस बात को स्पष्ट रूप से साझा किया साथ ही इस तरह के अनुबंध भाव युक्त प्रस्तावों पर ये भी बोले कि हम नहीं चाहते कि जैसे तमाम नामी बाबा लोग अपने व्यव्हार व व्यसायात्मिक वृत्ति के कारण, समाज के लोगो द्वारा कटघरे खड़े किये जाते है वैसे मुझे भी होना पड़े। ऐसा नही बनाना मुझे अरे मेरे भीतर तो आश्रम मठ मंदिर भी बनाने की इच्छा नहीं है ये सब उपक्रम हमारे समय को बर्बाद करता है।
मैं एक परिंदे सा संसार में एक जहग से दूसरे जगह जा जा कर केवल मानवता, सद्गुण, सुविचार को फ़ैलाने की चाहत रखता हूँ और यही जीवन भर करता रहूँगा इस कार्य से मुझे जो दान मिलता है उसका कुछ हिस्सा अपनी जरुरत के लिये रख कर बाकी गरीब छात्रों को दान कर देता हूँ जिससे उनकी पढाई लिखाई सुचारू रूप से चलती रहे।
स्वामी राम शंकर वर्तमान में स्वयं भी रुचि के कारण एक विश्वविद्यालय में रह कर संगीत सीख रहे है जो छत्तीसगढ़ के अन्दर इन्दिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ के नाम से जाना जाता है। विश्वविद्यालय इतिहास में पहली बार कोई संन्यासी यहाँ दाखिला ले कर संगीत सीखने आया है। इस विषय में स्वामी राम शंकर कहते है संगीत हम किसी अन्य शहर में सीख सकते थे पर मुझे विश्वविद्यालय के भीतर एक संन्यासी होते हुये छात्र जीवन के अनुभव पाना व युवा पीढ़ी के बीच रह कर उनके मनोदशा को करीब से समझना यहाँ आने के पीछे प्रमुख उद्देश्य था।
आपको बताते चले की स्वामी राम शंकर का जन्म १ नवम्बर १९८७ को देवरिया जिले के ग्राम खजुरी भट्ट में हुआ, आपके पिता जी आपको पढ़ाने के लिये गांव से ले कर गोरखपुर चले आये, यही आप महाराणा प्रताप इंटर कॉलेज गोलघर से १२ तक की पढ़ाई संपन्न किये , आगे जब आप पंडित दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय से बी काम तक की पढाई किये है।
उनदिनों को याद करते हुये स्वामी जी बताते है कि एक नवम्बर 2008 की बात है जब चुपके से हम घर को अलविदा कह कर एकदम सुबह भोर के 4 बजे हम रेलवे स्टेशन आ गये, और 7 बजे वाली पैसेनजर रेलगाड़ी पकड़ कर गोरखपुर से अयोध्या के लोमश ऋषि आश्रम पहुचे जहां 10 दिन रहने के पश्चात 11 नवम्बर को हमारा वैष्णव परम्परानुसार दीक्षा संस्कार हुआ जिसके उपरांत मेरे संन्यास जीवन का सफर आरम्भ हुआ।
आप गुजरात स्थित आर्य समाज के ”गुरुकुल वानप्रस्थ साधक ग्राम आश्रम ” रोजड़ में रह कर योग दर्शन की पढ़ाई व साधना किये l इसके बाद कुछ समय हरियाणा के जींद में स्थापित गुरुकुल कालवा में रह कर संस्कृत व्याकरण की पढ़ाई किये इस जगह प्रख्यात योग गुरु स्वामी राम देव जी भी अपना बालकॉल बिता चुके है l तत्पश्चात सिप्तम्बर 2009 को हिमाचल के कांगड़ा जिला में स्थित चिन्मय मिशन के द्वारा संचालित गुरुकुल ” संदीपनी हिमालय” में प्रवेश प्राप्त कर गुरुकुल आचार्य स्वामी गंगेशानन्द सरस्वती जी के निर्देशन में तीन वर्ष तक रह कर वेदांत उपनिषद्, भगवद्गीता ,रामायण आदि सनातन धर्म के शास्त्रो का अध्ययन संपन्न कर 15 अगस्त 2012 को शास्त्र में स्नातक की योग्यता प्रात किये l अभी भी भीतर की योग विषयक पिपासा शांत नहीं हो पायी थी, जिसके कारण ही योग को समझने के लिये योग के प्रसिद्ध केंद्र ” बिहार स्कूल ऑफ़ योगा” मुंगेर ( रिखिआ पीठ ) में फरवरी 2013 से मई 2013 तक साधना किये l आगे अपने भीतर के ज्ञान विषयक भूख को शांत करने हेतु विश्व प्रसिद्ध ”कैवल्य धाम” योग विद्यालय लोनावला पुणे,महाराष्ट्र जुलाई 2013 से अप्रैल 2014 तक डिप्लोमा इन योग के पाठ्यक्रम में रह कर योग से सम्बंधित पतंजलि योग सूत्र , हठप्रदीपिका , घेरण्ड संहिता आदि प्रमुख शास्त्रो का अध्यन कर स्वयं में सुख का अनुभव करने के फलस्वरूप अपने समस्त अनुभव राशी को रामकथा में समाहित कर मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के चरित्र को रोचकता के साथ संगीतमय प्रस्तुति कर समाज के नागरिको को सत्यनिष्ठ, सदाचारी बनने की प्रेरणा प्रदान कर रहे है है।
गोरखपुर शहर में पले बढे स्वामी राम शंकर महाराज पुरे भारतवर्ष में गोरखपुर का नाम रौशन कर रहे है । अभी तक देश के १२ राज्यों में संगीतमय श्री राम कथा का प्रवचन कर चुके है,इस कार्य को प्रभु की सेवा मानकर करते है। उद्देश्य है नयी पीढ़ी को रामकथा सुनकर राम जैसा पुत्र राम जैसा भाई राम जैसा मानव बनने हेतु प्रेरित करना ताकि वर्तमान युवापीढ़ी में मजबूती से जीवन मूल्यों की स्थापना हो सके।
स्वामी राम शंकर कहते है संन्यास का मूल कारण तो पूर्व जन्म के संस्कार ही होते है किन्तु वर्तमान जीवन के अनुभव भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।उन दिनों मैंने अनुभव किया कि जिनको जब हमारी जरूरत होती थी तब सब प्यार करते थे, पर जब हमे उन लोगों की आवश्यकता होती थी सब अनदेखा अनसुना कर देते थे।
ये सब देख कर मेरे अंतर मन ने निर्णय किया की हम जीवन में किसी के लिये उपयोग की वस्तु नही बनेगे बल्कि जीवन का उपयोग कर जीवन को सार्थक करेंगे ताकि जीवन का जो परम् लक्ष्य को पा सके।