सूबे के 12 नगर निगमों पर एक हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज है। यह स्थिति वित्तीय वर्ष 2013-14 तक की है। सोमवार को विधानसभा में पेश स्थानीय निधि संपरीक्षा प्रकोष्ठ की रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि नगर निगम वित्तीय संस्थाओं से लिए गए कर्ज की किश्त भी समय पर नहीं चुकाते हैं, जिससे उन पर ब्याज का अतिरिक्त बोझ बढ़ रहा है। वहीं नगर पालिका और नगर परिषदों ने कर्ज से जुड़े दस्तावेज ही नहीं दिए।
रिपोर्ट में कहा गया है कि नगरीय निकाय सरकार के नियम, आदेशों की गलत व्याख्या कर अनियमित भुगतान करते हैं। इसमें वाहन किराया, शुभकामना संदेश, यात्रा भत्ता, दोहरा कार्य भत्ता, मोबाइल फोन की खरीदी, भंडार सामग्री की खरीदी कर भुगतान में अनियमितता होती है।
नियमों के खिलाफ की जाती है दैनिक वेतन भोगियों की नियुक्ति
सरकार जहां एक तरफ नगरीय निकायों के दैनिक वेतन भोगियों को स्थाई करने की तैयारी कर रही है, वहीं दूसरी तरफ वित्त विभाग की रिपोर्ट कहती है कि निकायों में नियमों के खिलाफ जाकर दैनिक वेतन भोगी कर्मियों की नियुक्ति की जाती है, इसलिए उन्हें किया गया भुगतान अनियमित माना गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार ने नगरीय निकायों को निजी आय स्त्रोतों से प्राप्त आय के 65 प्रतिशत तक या सफाई कर्मियों की स्थिति में 75 प्रतिशत तक स्थापना व्यय करने के निर्देश दिए हैं। इसलिए दैनिक वेतन भोगी कर्मियों की नियुक्ति पर प्रतिबंध लगाया है, लेकिन नियमों के खिलाफ जाकर मेयर-इन-काउंसिल से स्वीकृति लेकर इनकी नियुक्ति कर दी जाती है।
12 नगरीय निकायों के बैंक एकाउंट में कम मिले 149 करोड़ स्र्पए
विधानसभा में सोमवार को रखी गई भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में 12 नगरीय निकायों की कैश बुक की तुलना में बैंक एकाउंट में 150 करोड़ रुपए कम मिले। कैग ने कहा है कि इन पैसों के कपटपूर्ण दुरुपयोग की संभावना है।
कैग ने बताया कि इंदौर, कटनी, सिंगरौली, वारासिवनी, पिपरिया, बरघाट, खाड, लोधीखेड़ा, मंडलेश्वर, पिपलोदा, रेहटी और तेंदूखेड़ा निकायों के बैंक एकाउंट में कम पैसा मिला है। यह स्थिति मार्च 2014 की है। वहीं साल 2012-13 के अंत तक 48 नगरीय निकाय 845 करोड़ रुपए के टैक्स की वसूली नहीं कर पाए थे।