रणदीप हुड्डा और काजल अग्रवाल के बीच रोमांटिक केमिस्ट्री को देखने की चाहत रखने वाले सिनेमाघरों की ओर बड़े आराम से रुख कर सकते हैं।
बी-टाउन में अभिनेता से निर्देशक बने दीपक तिजोरी हमेशा ही अपनी अलग स्टाइल की फिल्मों का निर्देशन करते आए हैं। वे इस बार दर्शकों के लिए रोमांस से लबरेज फिल्म ‘दो लफ्जों की कहानी’ लेकर आए हैं और उन्हें इस फिल्म से कई उम्मीदें भी हैं।
कहानी :
करीब दो घंटे 7 मिनट की कहानी सूरज (रणदीप हुड्डा) की रोजमर्रा के कामकाज से शुरू होती है। वह बगैर से कुछ कहे सिर्फ अपने मेहनताने पर ही तीन-तीन शिफ्टों में काम करता है। इसी में उस एक अलग शिफ्ट में काम के दौरान उसकी मुलाकात जेनी (काजल अग्रवाल) से होती है, जिसकी आंखों की रोशनी नहीं होती है और वह एक सीरियल की प्रेमी होती है। जेनी हर रोज सीरियल देखने के लिए सूरज के पास आती-जाती रहती है।
वहीं दूसरी तरफ पता चलता है कि सूरज सन् 2012 का बॉक्सिंग चैम्पियन रह चुका होता है और एक फाइनल राउंड हार जाने की वजह से वह फाइट छोड़ देता है और लोगों से वसूली का धंधा शुरू कर देता है। फिर एक दिन सूरज अपने पुराने बॉक्सर दोस्तों से उस हारी हुई फाइट को लेकर माफी मांगने जाता है तो उसे वहां से माफी भी नहीं मिलती है। फिर प्यार के चक्कर में पड़े सूरज को अपनी लाइफ में कुछ और रुपयों की जरूरत होती है तो वह फिर से बॉक्सिंग रिंग में उतर जाता है।
इधर, सूरज और जेनी के बीच की नजदीकियां और बढ़ती जाती हैं तो वह जेनी को सेरेमनी रिंग पहनाने के लिए उसके स्वर्गवासी मां-बाप के पास एक कब्रिस्तान जाता है, जहां उसे पता चलता है कि तीन साल पहले जब सूरज वसूली के काम में जुटा हुआ था तो उस दौरान उसी की गलती की वजह से एक कार दुर्घटना हुई थी, जिसमें जेनी के मां-बाप चल बसे थे और जेनी के आंख की रोशनी भी चली गई थी। लेकिन वह अंधी जेनी को कुछ बता नहीं पाता है और उसकी आंख के इलाज के लिए रुपये जुटाने में जुट जाता है। इसी के साथ फिल्म दिलचस्प मोड़ लेते हुए आगे बढ़ती है।
अभिनय :
रणदीप हुड्डा अपने अभिनय में कई तरह के प्रयोग करते दिखाई दिए। साथ ही वे इस बार भी अपने अभिनय से दर्शकों को काफी हद तक दिल जीतने में कई मायनों में सफल भी रही। इसके अलावा काजल अग्रवाल पूरी फिल्म में रणदीप का पूरा साथ देती नजर आईं। उन्होंने अपने रोल को जीवंत करने के लिए अपना शत-प्रतिशत देने की पूरी कोशिश की है, जिसमें वे सफल भी रहीं।
निर्देशन :
बी-टाउन को अपने आइने से फिल्म को परोसते आए निर्देशक दीपक तिजोरी ने इस रोमांटिक फिल्म के निर्देशन की कमान बखूबी संभाली है। उन्होंने फिल्म में रोमांस का जबरदस्त तड़का तो जरूर लगाया, लेकिन कहीं-कहीं प्यार थोड़ा सा अखरता सा दिखाई दिया। रोमांस के मायनों में वाकई में तिजोरी ने कुछ अलग करने का भरपूर प्रयास किया है, इसीलिए वे दर्शकों की कुछ हद तक वाहवाही लूटने में सफल रहे।
बहरहाल, फिल्म की धीमी गति के कारण दर्शक थोड़ा बोर होते दिखाई दिए, लेकिन कहानी में ठीक पकड़ होने की वजह से ऑडियंस आखिर तक खुद को सीट से बांधे रखी। इसके अलावा अगर कॉमर्शिल और सिनेमेटोग्राफी की बात छोड़ दी जाए तो इस फिल्म की टेक्नोलॉजी में कुछ और अलग किया जा सकता था। इसके अलावा मोहब्बत के लिहाज से संगीत (बबली हक, अमाल मलिक, अंकित तिवारी, अर्जुना हरजै) तो कुछ मायनों में ऑडियंस को भाता भी है, लेकिन गाने की तुलना में कहीं-कहीं पर थोड़ा फीका सा महसूस हुआ।
क्यों देखें :
रणदीप हुड्डा और काजल अग्रवाल के बीच केमिस्ट्री को देखने की चाहत रखने वाले सिनेमाघरों की ओर बड़े आराम से रुख कर सकते हैं। आगे जेब और मन आपका…!
बैनर : अलुंब्रा ऐटरटेनमेंट, धीरज मोशन पिक्चर्स, पेन इंडिया लि., फोकस मोशन पिक्चर्स
निर्माता : धीरज शेट्टी, अविनाश वी राय, धवल जयंतीलाल गडा
निर्देशक : दीपक तिजोरी
जोनर : लव, रोमांस
संगीतकार : बबली हक, अमाल मलिक, अंकित तिवारी, अर्जुना हरजै
गीतकार : अल्तमाश मरीदी, अरमान मलिक, अंकित तिवारी, कनिका कपूर, पलक मुच्छल
स्टारकास्ट : रणदीप हुड्डा, काजल अग्रवाल
रेटिंग: ** स्टार