धर्म

अगर मिले ये 8 संकेत तो समझ जाइए कि आपके आस-पास भटक रही है कोई आत्मा

कई बार हमारे साथ कई ऐसी घटनाएं होती हैं जिनके जवाब हमारे दिमाग के पास नहीं होते हैं। जैसे कि अचानक से आपको आपके शरीर में सिहरन महसूस होने लगे या फिर किसी के आस-पास न होने पर भी ऐसा लगे …

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राशिफल 15 जून: आज इन राशि वालों को मिलेंगे ये बड़े लाभ

राशिफल 15 जून: आज इन राशि वालों को मिलेंगे ये बड़े लाभ

मेष: आज आपका दिन शुभ फलदायी होगा। आज आप कोई भी महत्त्वपूर्ण निर्णय न लें। लेखनकार्य के लिए अच्छा दिन है। बौद्धिक एवं तार्किक विचार विनिमय हो सकता है। किसी भी महिला के साथ विवाद में न उतरें। स्वास्थ्य अच्छा …

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इस मंदिर में देवी को चढ़ाई जाती है हथकड़ी…

हमारे देश में एक म‍ंदिर ऐसा भी है जहां लोग देवी को हथकड़ी चढ़ाकर अपनी मन्‍नत पूरी होने की आस रखते हैं. यह मंदिर राजस्‍थान के प्रतापगढ़ जिले में है. इसका नाम है दिवाक मंदिर. माता का यह मंदिर जोलर …

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500 साल पहले इस गुरुद्वारे की खुद गुरुनानक जी ने की थी स्थापना, देखिये क्या है खास!

वाहे गुरु जी दा खालसा, वाहे गुरु जी दी फतेह... जो बोले सो निहाल, सतश्री अकाल. यही कुछ नारे हैं जो आजकल हर गुरुद्वारे में गूंज रहे हैं. हर गुरुद्वारे में गुरुनानक साहेब की जयंती के लिए खास तैयारी की जा रही है. वैसे तो हर गुरुद्वारा अपने आप में खास है लेकिन आज हम आपको उस गुरुद्वारे के बारे में बताएंगे जिसकी स्थापना खुद गुरुनानक साहेब ने की थी. जब 1505 में गुरुनानक जी पहली बार दिल्ली आए थे तब उन्होंने इस गुरुद्वारे की स्थापना की थी, इसीलिए ये गुरुद्वारा सिख समुदाय के लिए खासा महत्व रखता है. हरविंदर सिंह चेयरमेन, नानक प्याऊ गुरुद्वारा, का कहना है कि ये बहुत प्राचीन गुरुद्वारा है और दिल्ली का पहला गुरुद्वारा है. इसलिए हम यहां बड़े ही उत्साह के साथ ये जयंती मनाते हैं. कैसे नाम रखा गया इसका नाम 'नानक प्याऊ गुरुद्वारा' इस गुरुद्वारे का नाम है नानक प्याऊ गुरुद्वारा. अब आप लोग सोच रहे होंगे की इस गुरुद्वारे का नाम नानक प्याऊ क्यों है? भला ये कैसा नाम हुआ? तो आपको बताते है इस नाम के पीछे की पूरी कहानी. दरअसल, जब गुरुनानक जी पहली बार दिल्ली आए तब वो इसी जगह पर रुके थे. आज इस जगह को जीटी करनाल रोड के नाम से जाना जाता है. कहते हैं उस समय इस इलाके में पानी पीना नसीब नहीं होता था. जमीन से खारा पानी निकलता था, जिसके कारण लोग परेशान हो रहे थे. बच्चों की तबियत बिगड़ रही थी. तभी गुरुनानक साहेब ने अपनी शक्ति से, अपनी दृष्टि से, जमीन से मीठा पानी निकाला. जिसके बाद यहां रहने वाले तमाम लोगो ने यहां पानी पिया. जिसके बाद उन्हें हो रही बीमारियां भी खत्म हो गईं. ये सिलसिला 500 साल बाद यानि आज भी लगातार चल रहा है. आज भी कुंए से मीठा पानी निकलता है. आज यहां एक प्याऊ है. इसी कारण इस गुरुद्वारे का नाम नानक प्याऊ गुरुद्वारा रखा गया था. यहां के लोगों का मानना है कि देश भर से लोग यहां आते हैं और इस पानी को पीकर जाते हैं जिसके बाद उनकी तमाम तकलीफें, तमाम बीमारियां खत्म हो जाती हैं. 500 सालों से चला आ रहा है लंगर नानक प्याऊ गुरुद्वारे में सबसे पहले लंगर खुद गुरुनानक जी ने शुरू किया था और तब से अब तक यानि 500 सालों से यहां लंगर इसी तरह चलता आ रहा है. रोजाना ही हजारों लोग यहां खाना खाने आते हैं. कोई भी भूखा नहीं जाता .लक्खा सिंह का कहना है कि 500 सालों से यहां लंगर इसी तरह चलता आ रहा है. मगर गुरुनानक जी की जयंती के उपलक्ष में यहां पकवान बनाये जा रहे हैं. मटर पनीर , मिक्स वेज से लेकर खीर तक की व्यवस्था यहां की गई है. यहां इस उत्सव को देख ऐसा लगता है जैसे खुद गुरुनानक जी यहां मौजूद हों और उनका जन्मदिन मनाया जा रहा हो. इस दिन यहां महिलाएं भी लंगर के लिए सेवा देने में पीछे नहीं हटती. गुरुद्वारों में खास तैयारियां दिल्ली के गुरुद्वारों में लंगर से लेकर सजावट तक खास तैयारी की जा रही हैं. गुरुनानक साहेब की 548 वीं जयंती. सिख समुदाय के लिए इससे बड़ा पर्व और कोई नहीं . इसी के चलते घरों से लेकर गुरुद्वारों तक उत्सव मनाया जाता है. पकवान बनाये जाते हैं, सजावट की जाती है.. केक काटा जाता है और गुरुद्वारों में कीर्तन किया जाता है. चूंकि गुरुनानक साहेब ने ही इस नानक प्याऊ की स्थापना की थी इस वजह से यहां खास तैयारी की जा रही हैं. गुरुद्वारे के कोने-कोने को फूलों से सजाया जा रहा है. पूरे गुरुद्वारे को लाइट से सजा दिया गया है. यह कहना गलत नहीं होगा कि दिल्ली में गुरुनानक जी की जयंती मानाने के लिए तमाम तैयारियां कर ली गई हैं और अब आने वाले दो दिनों तक गुरुद्वारों में खासी रौनक रहेगी.

वाहे गुरु जी दा खालसा, वाहे गुरु जी दी फतेह… जो बोले सो निहाल, सतश्री अकाल. यही कुछ नारे हैं जो आजकल हर गुरुद्वारे में गूंज रहे हैं. हर गुरुद्वारे में गुरुनानक साहेब की जयंती के लिए खास तैयारी की …

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मानो या न मानो लेकिन सच, घर में इन चीजों के होने से नहीं होती है धन की कमी

पैसा एक ऐसी चीज है जो जीवनयापन के लिए सबसे जरूरी है। बिना पैसों के जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती हैं। हर व्यक्ति को पैसों की जरूरत होती है और कितनी जरूरत होती है यह उनकी आशाओं पर …

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साईं की अनमोल निशानियों के दर्शन से बदलते हैं जीवन

शिरडी के साईं बाबा, एक संत, फकीर और भी न जाने कितने रूप है साईं के. साईं बाबा के चमत्कार के किस्से अनंत हैं. साईं के दर से कभी कोई खाली हाथ नहीं लौटता. बाबा के दर पर जाने वाले भक्तों की कोई मुराद कभी अधूरी नहीं रहती और बाबा का ये चमत्कार दिखाता है उनका बटुआ. समाधि लेने से पहले भी बाबा अपने इसी बटुए में हाथ डालकर अपने भक्तों को सोने-चांदी के सिक्के देकर उनके दुखों को दूर किया करते थे. साईं बाबा की इस अनमोल धरोहर को आज भी संभाल कर रखा गया है. बाबा 16 साल की उम्र में शिरडी गए और एक मामूली सा गांव एक तीर्थ बन गया. कहते हैं साईं जबसे शिरडी में स्थापित हुए वहां कोई संकट नहीं आया. बाबा ने समाधी लेने के बाद भी अपने भक्तों पर किसी संकट का साया तक नहीं पड़ने दिया. आज भी उनके भक्तों को साईं के दर्शन हो जाते हैं. बाबा रूप बदल कर अपने भक्तों का उद्धार करने आते हैं. हफ्ते के 7 दिनों में गुरुवार का दिन बाबा के नाम है. शिरडी में आज भी हर गुरुवार साईं की पालकी निकलती है. जिसके दर्शन करने के लिए हजारों भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है. कहते हैं जिसने भी बाबा की इन इनमोल निशानियों के दर्शन कर लिए उन्हें साक्षात साईं के दर्शनों का सौभाग्य मिलता है. शिरडी में बाबा की इस्तेमाल की हुई वस्तुएं रखी हुई हैं. घर बैठे भी बाबा की इन अनमोल निशानियों के दर्शन से सारे दुख तर जाते हैं. बाबा की कृपा हासिल करने का ये अवसर आपकी जिंदगी बदल सकता है. साईं जिंदगियां सवांरने वाले साधक हैं. बाबा की कृपा हर उस भक्त को मालूम है, जिसने उन्हें सच्चे मन से याद किया है. बाबा के इसी चमत्कार से आप भी कीजिए साक्षात्कार.

शिरडी के साईं बाबा, एक संत, फकीर और भी न जाने कितने रूप है साईं के. साईं बाबा के चमत्कार के किस्से अनंत हैं. साईं के दर से कभी कोई खाली हाथ नहीं लौटता.बाबा के दर पर जाने वाले भक्तों …

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माता मावली मंदिर, जहां महिलाओं को नहीं मिलता है प्रवेश

छत्तीसगढ़ के धमतरी से पांच किलोमीटर की दूरी पर ग्राम पुरूर में स्थित आदि शक्ति माता मावली के मंदिर की अनोखी परंपरा है. यहां मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है. मंदिर की मान्यता है कि माता के दर्शन मात्र से श्रद्धालुओं की मन्नत पूर्ण होती है. माता की कृपा पाने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु यहां पहुंच रहे हैं. इस नवरात्र में 166 ज्योत जलाई गई है. मंदिर के पुजारी श्यामलाल साहू और शिव ठाकुर ने बताया कि यह मावली माता मंदिर वर्षों पुराना है. यहां के पुजारी (बैगा) ने बताया था कि उन्हें एक बार सपने में भूगर्भ से निकली माता मावली दिखाई दी और माता ने उस बैगा से कहा था कि वह अभी तक कुंवारी हैं, इसलिए मेरे दर्शन के लिए महिलाओं का यहां आना वर्जित रखा जाए. तब से इस मंदिर में सिर्फ पुरुष ही दर्शन के लिए पहुंचते हैं. सुबह से ही मंदिर में भक्तों का तांता लग जाता है. मन्नत पूरी होने पर कई श्रद्धालु चढ़ावा लेकर पहुंचते हैं. इस नवरात्र में 166 दीप प्रज्‍जवलित किए गए हैं. माता मावली के दर्शन के लिए छत्तीसगढ़ के अलावा अन्य राज्यों से भी भक्त पहुंचते हैं. आदि शक्ति मावली माता मंदिर में लगातार सौंदर्यीकरण का कार्य चल रहा है. इस मंदिर में बागीचे का निर्माण किया गया है, जहां गुलाब, गोंदा, सूरजमुखी, सेवंती के फूल आकर्षण का केंद्र बन गए हैं. मंदिर के चारों ओर फूलों की सुगंध बिखर रही है. जैसा कि मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित होने की परंपरा है. पूजा-अर्चना के लिए परिसर में एक छोटे से मंदिर का निर्माण करवाया गया है, जहां महिलाएं माता के दर्शन कर अपनी मन्नतें मांगती हैं. महिलाएं नमक, मिर्ची, चावल, दाल, साड़ी, चुनरी आदि चढ़ावा के रूप में चढ़ाती हैं. गांव की रामबती, सुशीला, चंपाबाई सहित कई महिलाओं ने बताया कि यहां महिलाओं का अंदर जाना मना है, इसलिए सभी महिलाएं बाहर से ही दर्शन कर लेती हैं. अगर उनकी कुछ मन्नतें होती हैं तो मंदिर के बाहर स्थापित मंदिर में दर्शन कर अपनी मन्नतें मांगती हैं.

छत्तीसगढ़ के धमतरी से पांच किलोमीटर की दूरी पर ग्राम पुरूर में स्थित आदि शक्ति माता मावली के मंदिर की अनोखी परंपरा है. यहां मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है. मंदिर की मान्यता है कि माता के दर्शन मात्र से श्रद्धालुओं …

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मां चंडिका शक्तिपीठ: जहां दूर होती है आंखों की पीड़ा

मां चंडिका का मंदिर बिहार के मुंगेर जिला मुख्यालय से चार किलोमीटर दूर गंगा के किनारे स्थित है. इसके पूर्व और पश्चिम में श्मशान है. इसीलिए इसे ‘श्मशान चंडी’ के रूप में भी जाना जाता है. नवरात्र के दौरान कई …

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इस मंदिर में मनाया जाता है ‘फुटवियर फेस्टिवल’, लोग चढ़ाते हैं चप्पलें

कनार्टक के गुलबर्ग जिले में लकम्‍मा देवी का मंदिर है. यहां हर साल 'फुटवियर फेस्टिवल' होता है, जिसमें दूर-दराज के गांवों से लोग चप्‍पल चढ़ाने आते हैं. इस फेस्टिवल में मुख्‍य तौर पर गोला (बी) नामक गांव के लोग बढ़-चढ़कर हिस्‍सा लेते हैं. यह फेस्टिवल अजीब-गरीब रिवाजों के कारण प्रसिद्ध है. हर साल यह फेस्टिवल दिवाली के छठे दिन आयोजित किया जाता है. यहां लोग आकर मन्‍नत मांगते हैं और उसके पूरा होने के लिए मंदिर के बाहर स्थित एक पेड़ पर चप्‍पलें टांगते हैं. यही नहीं लोग इस दौरान भगवान को शाकाहारी और मांसाहारी भोजन का भोग भी लगाते हैं. लोगों का मानना है कि इस तरह चप्‍पल चढ़ाने से ईश्‍वर उनकी बुरी शक्तियों से रक्षा करते हैं. ऐसी मान्यता है कि है कि इससे पैरों और घुटनों का दर्द सदैव के लिए दूर हो जाता है. इस मंदिर में हिन्दू ही नहीं बल्कि मुसलमान भी आते हैं. कहा जाता है कि माता भक्‍तों की चढ़ाई गई चप्‍पलों को पहनकर रात में घूमती हैं और उनकी रक्षा करती हैं.

कनार्टक के गुलबर्ग जिले में लकम्‍मा देवी का मंदिर है. यहां हर साल ‘फुटवियर फेस्टिवल’ होता है, जिसमें दूर-दराज के गांवों से लोग चप्‍पल चढ़ाने आते हैं. इस फेस्टिवल में मुख्‍य तौर पर गोला (बी) नामक गांव के लोग बढ़-चढ़कर …

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चारों दिशाओं में आदिशंकराचार्य ने स्थापित किए थे ये 4 मठ

प्राचीन भारतीय सनातन परम्परा के विकास और हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार में आदि शंकराचार्य का महान योगदान है. उन्होंने भारतीय सनातन परम्परा को पूरे देश में फैलाने के लिए भारत के चारों कोनों में चार शंकराचार्य मठों की स्थापना की थी. ये चारों मठ आज भी चार शंकराचार्यों के नेतृत्व में सनातन परम्परा का प्रचार व प्रसार कर रहे हैं. हिंदू धर्म में मठों की परंपरा लाने का श्रेय आदि शंकराचार्य को जाता है. आदि शंकराचार्य ने देश की चारों दिशाओं में चार मठ की स्थापना की थी. आइए जानते हैं आदिशंकराचार्य द्वारा स्थापित इन मठों के बारे में... श्रृंगेरी मठ: श्रृंगेरी शारदा पीठ भारत के दक्षिण में रामेश्वरम् में स्थित है. श्रृंगेरी मठ कर्नाटक के सबसे प्रसिद्ध मठों में से एक है. इसके अलावा कर्नाटक में रामचन्द्रपुर मठ भी प्रसिद्ध है. इसके तहत दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद सरस्वती, भारती, पुरी सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उस संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है. इस मठ का महावाक्य 'अहं ब्रह्मास्मि' है, मठ के तहत 'यजुर्वेद' को रखा गया है. इसके पहले मठाधीश आचार्य सुरेश्वर थे. गोवर्धन मठ: गोवर्धन मठ उड़ीसा के पुरी में है. गोवर्धन मठ का संबंध भगवान जगन्नाथ मंदिर से है. बिहार से लेकर राजमुंद्री तक और उड़ीसा से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक का भाग इस मठ के अंतर्गत आता है. गोवर्द्धन मठ के तहत दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद 'आरण्य' सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उस संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है. इस मठ का महावाक्य है 'प्रज्ञानं ब्रह्म' और इस मठ के तहत 'ऋग्वेद' को रखा गया है. इस मठ के पहले मठाधीश आदि शंकराचार्य के पहले शिष्य पद्मपाद हुए. शारदा मठ: द्वारका मठ को शारदा मठ के नाम से भी जाना जाता है. यह मठ गुजरात में द्वारकाधाम में है. इसके तहत दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद 'तीर्थ' और 'आश्रम' सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उस संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है. इस मठ का महावाक्य है 'तत्त्वमसि' और इसमें 'सामवेद' को रखा गया है. शारदा मठ के पहले मठाधीश हस्तामलक (पृथ्वीधर) थे. हस्तामलक आदि शंकराचार्य के प्रमुख चार शिष्यों में से एक थे. ज्योतिर्मठ: ज्योतिर्मठ उत्तराखण्ड के बद्रिकाश्रम में है. ऐतिहासिक तौर पर, ज्योतिर्मठ सदियों से वैदिक शिक्षा तथा ज्ञान का एक ऐसा केन्द्र रहा है जिसकी स्थापना 8वीं सदी में आदी शंकराचार्य ने की थी. ज्योतिर्मठ के तहत दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद 'गिरि', 'पर्वत' और 'सागर' चारों दिशाओं में आदिशंकराचार्य ने स्थापित किए थे ये 4 मठसम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उस संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है. इसका महावाक्य 'अयमात्मा ब्रह्म' है. मठ के अंतर्गत अथर्ववेद को रखा गया है. इसके पहले मठाधीश आचार्य तोटक थे.

प्राचीन भारतीय सनातन परम्परा के विकास और हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार में आदि शंकराचार्य का महान योगदान है. उन्होंने भारतीय सनातन परम्परा को पूरे देश में फैलाने के लिए भारत के चारों कोनों में चार शंकराचार्य मठों की स्थापना की …

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