गुजरात के चुनावी रण में एक तरफ जहां मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस अपने परंपरागत मुस्लिम वोट को साइडलाइन कर सॉफ्ट हिंदुत्व की तरफ बढ़ती नजर आ रही है, वहीं दूसरी तरफ मुस्लिम नेता बीजेपी की तरफ आकर्षित हो रहे हैं. अब जबकि चुनावी तारीख की घोषणा हो चुकी है, ऐसे में टिकट पाने को लेकर दोनों दलों में भारी रस्साकशी मची हुई है.
बीजेपी की बात की जाए तो उसके अपने नेताओं के अलावा मुस्लिम नेता भी बीजेपी के टिकट पर लड़ने का दावा ठोक रहे हैं. खबरें ये भी आ रही हैं बीजेपी का टिकट पाने को मुस्लिमों में होड़ मची हुई है. खासकर जिन सीटों पर मुस्लिम वोट निर्णायक की भूमिका में है, वहां मुस्लिम नेता बीजेपी के टिकट पर मैदान मारने की जुगत में हैं.
निकाय चुनाव में प्रतिनिधित्व बढ़ने से जगी आस
गुजरात में मुख्य रूप से कांग्रेस और बीजेपी के बीच मुकाबला होता है. 1995 के बाद कांग्रेस सूबे की सत्ता तक नहीं पहुंच पाई है. वहीं दूसरी तरफ बीजेपी का ग्राफ लगातार बढ़ा है. यही वजह रही कि 2010 के स्थानीय निकाय चुनाव में बीजेपी ने अपने टिकट पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे और उन्होंने बेहतर प्रदर्शन किया. जिसके बाद मुसलमानों में विधानसभा के टिकट मिलने की उम्मीद जगी, हालांकि, 2012 के विधानसभा चुनाव में उन्हें झटका लगा और एक भी टिकट किसी मुस्लिम उम्मीदवार को नहीं मिला.
इसके बाद 2015 के निकाय चुनाव में भी मुस्लिमों ने बीजेपी से टिकट पाकर अपना परचम लहराया. करीब 350 उम्मीदवारों ने बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीते.
यही वजह है कि आगामी दिसंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी से टिकट पाने को मुस्लिम बेकरार नजर आ रहे हैं. माना ये भी जा रहा है कि बीजेपी मुस्लिमों को टिकट न देने की रस्म तोड़ सकती है. जिन सीटों पर मुस्लिम वोट निर्णायक भूमिका में हैं, वहां से मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिए जा सकते हैं.
इन सीटों पर दावेदारी
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जमालपुर, वेजलपुर, वागरा, वांकनेर, भुज और अब्दासा से मुस्लिम नेता टिकट मिलने की उम्मीद कर रहे हैं. ये भी बताया जा रहा है कि जमालपुर के मौजूदा निर्दलीय पार्षद इमरान खेडावाला केसरिया पहन कर जमालपुर सीट से कांग्रेस के खिलाफ ताल ठोक सकते हैं. इस सीट पर मुसलमानों की संख्या लगभग 60 फीसदी से ज्यादा है. हालांकि, बीजेपी से पुराने समय से जुड़े उस्मान घांची भी इस सीट से दावेदारी पेश कर रहे हैं.
सिर्फ एक बार बीजेपी ने उतारा मु्स्लिम उम्मीदवार
1980 के बाद बीजेपी के इतिहास सिर्फ एक बार ऐसा मौका आया है, जब उसने गुजरात विधानसभा चुनाव में किसी मुस्लिम को उम्मीदवार बनाया है. 1998 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने एक मुस्लिम को टिकट दिया था, जो चुनाव नहीं जीत पाए थे. जबकि सूबे में बीजेपी की सरकार बनी थी.