बच्चों के साथ इस तरह का संवाद गाहे-बगाहे हर घर में सुनने को मिल जाएगा। गुस्सा आने पर अभिभावक ऐसे शब्दों का इस्तेमाल कर बच्चों को अनुशासित करने की कोशिश करते हैं। लेकिन वे अनजाने में बच्चों के समूचे व्यक्तित्व और रवैये में नकारात्मकता भर रहे होते हैं। सुभाषी फाउंडेशन इन्हीं गलतियों को अभिभावकों-शिक्षकों को बताकर स्वच्छ भाषा अभियान की अलख जगा रहा है।

इनका कहना है कि स्वच्छ भाषा से बच्चे में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और यह उसकी सोच, विचार, व्यक्तित्व को निखारती है। पिछले प्रयासों में इसकी सफलता भी दिखी है।
मेरठ निवासी नेहा गुप्ता, जिन्होंने इस मुहिम की शुरुआत की है, कहती हैं, मेरे मन में आया कि स्वच्छता की बात तब तक अधूरी है, जब तक कि आचार-विचार-व्यवहार की गंदगी को दूर नहीं कर लिया जाए।
भाषा विचारों की अभिव्यक्ति होती है। इसी सोच के साथ अक्टूबर 2017 में स्वच्छ भाषा अभियान की नींव रखी, जो आज 13 राज्यों तक फैली है। संस्था का तर्क है कि ध्वनि ऊर्जा बहुत देर तक वातावरण में बनी रहती है। यही वजह है कि भाव सकारात्मक होते हुए भी भाषा गलत हुई तो यह प्रतिकूल प्रभाव छोड़ जाती है।
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