लोकसभा चुनाव में भाजपा का रथ रोकने के लिए उत्तर प्रदेश में हाथ मिलाने वाली समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में आमने-सामने होंगी। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने हाल में अपने तीन दिवसीय दौरे में मध्य प्रदेश इकाई को सभी 230 सीटों पर चुनाव लडऩे के लिए निर्देश दिए हैैं। इसके लिए संगठन को चुस्त-दुरुस्त करने में पार्टी जुटी है। हालांकि बसपा को भी यहां अकेले दम पर चुनाव बेहतर लगेगा। मध्य प्रदेश में सपा का खास जनाधार नहीं रहा है। इसलिए वहां उसके पास खोने को कुछ नहीं है।
गठबंधन पर मायावती का फैसला शीघ्र
यूपी के सीमावर्ती जिलों के मुद्दे उभारकर समाजवादी पार्टी लाभ की स्थिति में आ सकती है। इसी नजरिए से अखिलेश ने बुंदेलखंड में आने वाले पड़ोसी राज्य के जिलों पर अपना ध्यान केंद्रित किया है। इस बीच बसपा प्रमुख मायावती आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर शनिवार को अहम फैसला ले सकती है। दरअसल, 26 मई को बसपा राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक है। मायावती ने कैराना चुनाव पर अब तक कुछ स्पष्ट रुख नहीं अपनाया है इसलिए इस मसले पर भी उनके रुख पर राजनीतिक दलों की निगाहें हैं।
सपा लेकर चली जवानी, किसानी और पानी
अखिलेश ने सीधी, रीवां, सतना, पन्ना, छतरपुर व खजुराहो में किसानों के बीच जाकर सभाएं की। पार्टी इन क्षेत्रों से जुड़े मुद्दों को उभारने में जुटी है। चूंकि दोनों राज्यों के बुंदेलखंड क्षेत्र में एक जैसी समस्याएं हैैं इसलिए जिला इकाइयों को कर्जमाफी से मरने वाले किसानों आदि की सूची तैयार करने के निर्देश दिये गए हैैं। सपा अध्यक्ष ने मध्य प्रदेश इकाई के अध्यक्ष गौरी यादव के साथ बैठक करके जिला इकाइयों को सक्रिय करने के निर्देश भी दिए। बुंदेलखंड के लिए उन्होंने नारा दिया है-जवानी, किसानी और पानी। पार्टी के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी के अनुसार बुंदेलखंड क्षेत्र की यही मुख्य समस्या है। युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहा है। किसान परेशान हैैं और पानी का संकट हल करने में भाजपा सरकार फेल रही है।
मप्र के कई क्षेत्रों में बसपा का बेस वोट बैैंक
बहुजन समाज पार्टी को भी मध्य प्रदेश में अपने दम पर ही चुनाव लडऩा रास आएगा। वहां के कई क्षेत्रों में बसपा का बेस वोट बैैंक है और इसके सहारे पिछले चुनाव में वह चार सीटें हासिल करने में भी सफल रही थी। इस बार बसपा अधिक सीटें हासिल करने की उम्मीद कर रही है। बसपा नेता मायावती सारे मामलों पर शनिवार को अहम फैसला ले सकती है। दरअसल,26 मई को बसपा राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक है। मायावती इस बैठक को लेकर अपने सभी वरिष्ठ सहयोगियों से चर्चा कर चुकी हैं। लोकसभा चुनाव के लिए सपा-बसपा एक दूसरे से हाथ मिला चुकी हैं। बावजूद इसके सपा मुखिया अखिलेश यादव के हाल ही में मध्य प्रदेश का दौरा के समय राज्य की सभी सीटों पर चुनाव लडऩे का निर्देश जारी करना कुछ अलग संकेत देता है। यूपी के सीमावर्ती जिलों पर सपा की निगाहें हैं। वह वहां एकाधिकार बनाने चाहती है। इसके चलते सपा-बसपा मध्यप्रदेश के चुनाव में एक-दूसरे के आमने सामने दिखने लगीं है। अतः शनिवार की बैठक के फैसलों पर सबकी निगाहें हैं।
सोनिया-मायावती की केमिस्ट्री का प्रभाव
हालांकि बसपा के मामले में एक बात कही जा सकती है कि कर्नाटक में सोनिया गांधी के साथ मायावती की केमिस्ट्री का प्रभाव भी मध्यप्रदेश में देखने को मिल सकता है। उल्लेखनीय है कि कर्नाटक के बेंगलुरु में मुख्यमंत्री पद के लिए आयोजित कुमार स्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में मायावती की समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव के अलावा रालोद प्रमुख अजित सिंह से भी मुलाकात हो चुकी है। कुछ न कुछ राजनीतिक चर्चा भी हुई होगी। इसके अनुसार ही मायावती 26 मई की बैठक में अपने पदाधिकारियों को कोई निर्देश दे सकती हैं। गठबंधन को लेकर मायावती के आगामी कदम पर भी सबकी निगाहें लगी हैं।
कैराना-नूरपुर उपचुनाव पर फैसला
बसपा की कार्यसमिति की बैठक इसलिए भी अहम है कि कैराना-नूरपुर उपचुनाव जैसे अहम मसलों पर 26 मई को कोई स्पष्ट संकेत भी आ सकता है। लखनऊ में बसपा सुप्रीमो पार्टी के प्रमुख नेताओं से मौजूदा हालात पर मंत्रणा कर चुकी है। कर्नाटक दौरे के प्रभाव औप परिणाम पर भी सहयोगियों से चर्चा की है। उल्लेखनीय है कि मायावती बीती 26 मार्च को दिल्ली गयी थीं। इसके बाद प्रदेश में कई महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाएं हुईं। सूत्रों का कहना है कि अब मायावती संगठन की समीक्षा के साथ ही आगामी रणनीति पर विचार विमर्श करेंगी। कैराना व नूरपुर उपचुनाव को लेकर बसपा के रुख और भविष्य में गठबंधन की संभावनाओं पर फैसला होना है। लखनऊ प्रवास में मायावती की गतिविधियों पर अन्य दलों की नजरें भी होंगी। बसपा प्रमुख ने अब तक कैराना लोकसभा व नूरपुर विधानसभा उपचुनाव को लेकर कोई खुला निर्देश जारी नहीं किया है।