विश्वभर में प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है और जिसके परिणाम स्वरुप, बाढ़, भूकंप, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, सूखा और ज्वालामुखी विस्फोट जैसी प्राकृतिक आपदाये लगातार बढ़ रही है. भूगर्भीय तापमान में बढोत्तरी के चलते बीते 50 सालों में हिमालय (उत्तर-पश्चिम) में जितनी भूकंपीय ऊर्जा भूगर्भ में एकत्रित हुई है, उसका महज तीन से पांच फीसद तक हिस्सा ही बाहर निकल पाया है. हिमालय भूविज्ञान संस्थान के ताजा अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ. वैज्ञानिक निष्कर्ष निकाल रहे हैं कि यह इतनी ऊर्जा है कि इससे कभी भी आठ रिक्टर स्केल से अधिक क्षमता का भूकंप आ सकता है.
लंबे समय से यह बात सामने आ रही थी कि हिमालय (उत्तर-पश्चिम) में कांगड़ा में वर्ष 1905 में 7.8 रिक्टर स्केल के भूकंप के बाद कोई बड़ा भूकंप नहीं आया है. इससे माना जा रहा था कि धरती में भूकंपीय ऊर्जा एकत्रित हो रही है. हालांकि अब तक ऐसा कोई अध्ययन नहीं किया गया था, जिससे साफ तौर पर कुछ कहा जा सके.
वाडिया संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. सुशील कुमार के मुताबिक एकत्रित ऊर्जा व बाहर निकल रही ऊर्जा का आकलन करने के लिए वर्ष 1968 से अब तक आए भूकंपों और इंडियन प्लेट के भूगर्भ में 14 मिलीमीटर प्रतिवर्ष की रफ्तार से सिकुड़ने या मूवमेंट से जमा हो रही ऊर्जा का अध्ययन किया गया. अध्ययन में इस अवधि में आए 1.8 से 5.6 रिक्टर स्केल के 423 छोटे भूकंपों को शामिल किया गया. इसके अलावा मध्यम स्तर के किन्नौर में वर्ष 1975 में आए 6.8 रिक्टर स्केल, उत्तरकाशी में वर्ष 1991 में आए 6.4 रिक्टर व चमोली में वर्ष 1999 में आए 6.6 रिक्टर स्केल के मध्यम भूकंप में बाहर निकली ऊर्जा को भी इसका हिस्सा बनाया गया .20 हजार किलोमीटर इलाके में अध्ययन वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. सुशील कुमार के मुताबिक उत्तराखंड, हिमालय से लेकर जम्मू और कश्मीर तक फैले उत्तर-पश्चिम हिमालय के 20 हजार किलोमीटर क्षेत्रफल में यह अध्ययन किया गया.
पता चला कि इन सभी भूकंपों के बाद भी सिर्फ तीन से पांच फीसद ऊर्जा ही बाहर निकल पाई है. यानी कि अभी भी कम से कम 95 फीसद भूकंपीय ऊर्जा भूगर्भ में ही जमा है. यह ऊर्जा भविष्य में कब बाहर निकलेगी, इसका पता नहीं लगाया जा सकता. सिर्फ आने वाले बड़े भूकंप से निपटने को समुचित तैयारी की जा सकती है.