आपको भी बताया गया होगा कि अजनबी लोगों से दूर रहना. उनसे बात मत करना. उनके करीब मत जाना. लिफ्ट तो कभी देने की सोचना भी मत. लेकिन वो अजनबी अच्छा भी हो सकता है ये शायद किसी ने नहीं समझाया होगा. हो सकता है सोचा भी न हो. बस यही बात इलाहाबाद के रहने वाले अंश मिश्रा को अंदर ही अंदर कटोचती थी. घूमने का शौक तो बचपन से था ही. बस फिर क्या था. एक दिन झोला उठाया और तय कर लिया सबको बताकर रहेंगे. ये दुनिया कितनी खूबसूरत है. इस दुनिया के लोग कितने प्यारे, दयालु और अच्छे हैं.
28 साल के अंश बतौर कंम्प्यूटर इंजीनियर, नौकरी करते थे. लेकिन 10 से 6 की नौकरी करने की बजाय उनका दिल किसी और चीज के लिए धड़कता था. लंबे रास्ते, पहाड़, पानी, देवदार और चीड़ के ऊंचे खड़े पेड़, चांदी के वर्क सी लिपटी बर्फ, उसे बार-बार अपनी और खींचते थे. दिल ने दिमाग का साथ का छोड़ा और निकल पड़ा एक अनजानी राह. अजनबियों से बतियाने. उन्हें अपना बनाने.
जेब में एक पैसा नहीं. अलबेला. उनमुक्त पंछी की तरह. बेपरवाह. तीन फ़रवरी 2016 को भ्रमण पर निकले अंश मिश्रा उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात एवं दमन दीव, पूना, कोल्हापुर, गोवा, हुबली, बैंगलोर, मैसूर, ऊटी, कोडाइकनाल, मुन्नार, कोचीन होते हुए कन्याकुमारी तक जाएंगे. दिलचस्प बात है कि अंश ने अभी तक इस यात्रा के लिए किसी से एक रुपया भी उधार नहीं लिया. दूसरों से लिफ्ट मांगकर ही ये अपना सफर तय करते हैं. और अगर लिफ्ट नहीं मिलती तो अकेले…पैदल ही दिल से बातें करते हुए चल देते हैं. कोई खाना दे देता है तो खा लेते हैं. रहने की जगह मिल जाती है तो सो लेते हैं. वरना एक परिंदे की तरह इस खुले आसमां को ही अपनी पनाहगाह मान लेते हैं.
हो सकता है कोई इसे पागलपन भी कहे. लेकिन ये तो एक जुनून हैं कुछ पाने का. या फिर जो पाया उसे लुटाने का. अंश के इस फैसले से घर के लोग डरे हुए थे. खासकर मां. कैसे रहेगा. क्या खाएगा. कहां जाएगा. लेकिन अब सुकूंन हैं. बेटा खुश है तो मां खुश है. घूमना सिर्फ शौक ही नहीं बल्कि मकसद है लोगों के अनुभव उनके कल्चर, संस्कृति को करीब से जानना और सबके बीच प्यार फैलाना.
अंश ने बातचीत में बताया. सफर के दौरान हाईवे पर अक्सर ट्रक वाले उन्हें लिफ्ट देते थे. जिन्हें लोग हीन दर्जे का समझते हैं. उनसे बात तक करना पसंद नहीं करते. दरअसल में वे दिल के बड़े ही अच्छे और मददगार होते हैं. रात को लोग जब गहरी नींद में सो रहे होते हैं तब वे सुनसान सड़कों पर ट्रक चलाकर दो जून की रोटी कमाने की जद्दोजहद में लगे होते हैं. इन ट्रक वालों का अंश के इस सफर में विशेष योगदान रहा. इस सफर के अनुभव के बारे में बताते हुए अंश ने कहा, उन्हें कभी भी किसी से डर नहीं लगा. यही बात वे सभी लोगों को बताना चाहते हैं. सभी जगह. सभी लोग. एक जैसे ही हैं. प्यारे. मददकरने वाले. किसी ने उन्हें प्यार से दाल रोटी खिलाया. तो किसी ने फल फ्रूट.
अंश का सपना है कि वे भविष्य में एक रिसोर्ट बनाए जो सिर्फ ट्रेवल करने वालों के लिए ही होगा. जिसमें रहने के लिए किसी को पैसा नहीं देना होगा. और उसमें खाना भी फ्री में मिलेगा. हो सकता है आपको अपने आस-पास घूमते फिरते या फिर लिफ्ट मांगते कभी अंश मिश्रा मिल जाए. इन्हें देखकर आप घबराइएगा नहीं. ये किसी को नुकसान पहुंचानें नहीं बल्कि प्यार का संदेश दुनिया भर में फैलाने आएं हैं. इसे आप पागलपन कहें या जुनून लेकिन अंश का मकसद है घर से मस्जिद है बहुत दूर तो यूं कर लें किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए.