ग्लैमरस कंगना रनौत अभी फिल्म मर्णिकणिका की शूटिंग में व्यस्त है, लेकिन इसके बाद उनका अगला प्रोजेक्ट बेहद खास है। जल्द ही वह एक बायोपिक में दिखेंगी, लेकिन इस बायोपिक में काम के दौरान कंगना को काफी कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी।
कंगना रनौत माउंटेन गर्ल अरुणिमा सिन्हा की बायोपिक में नजर आएंगी। अपनी मेहनत के दम पर पर्वतारोहण के क्षेत्र में कई कीर्तिमान स्थापित कर चुकी इस माउंटेन गर्ल की कहानी अब बड़े पर्दे पर भी दिखेगी।
एक पैर न होने और तमाम मुश्किलों के बावजूद दुनिया की सबसे ऊंची चोटी फतह करने वाली अरुणिमा सिन्हा पर बायोपिक तैयार की जा रही है। कंगना रनौत ‘अरुणिमा : ए स्टोरी ऑफ माउंटेनियर’ नाम से तैयार हो रही बायोपिक में अरुणिमा का किरदार निभाएंगी।
फिल्म वर्ष 2019 में गणतंत्र दिवस के आसपास रिलीज होगी। फिल्म में मुख्य भूमिका निभाने के साथ ही उसका निर्देशन भी कंगना हीं करेंगीं। यह उनके निर्देशन में बनने वाली पहली फिल्म है। अरुणिमा ने बताया कि कई बड़े फिल्मी सितारों और निर्माता-निर्देशकों ने उनकी कहानी पर फिल्म बनाने की पेशकश की थी। हालांकि उन्हें कंगना का प्रस्ताव पसंद आया।
उन्होंने कहा कि यह फिल्म युवाओं को जिंदगी में कभी हार न मानने की सीख देगी। एक पैर न होने और तमाम मुश्किलों के बावजूद दुनिया की सबसे ऊंची चोटी फतह करने वाली अरुणिमा की कहानी सामान्य लोगों के अलावा उन लोगों को भी खासा प्रोत्साहित करेगी, जो शारीरिक कमी के कारण खुद को मोहताज मान लेते हैं।
अप्रैल 2011 में हुई दुर्घटना में पैर गंवाने के बाद एवरेस्ट फतह करने वाली अरुणिमा सिन्हा अब निशानेबाजी में भी हाथ आजमा सकती हैं। अगर सब कुछ ठीक रहा तो वे एशियन गेम्स के स्वर्ण पदक विजेता जसपाल राणा की देहरादून स्थित शूटिंग रेंज में निशानेबाजी के गुर सीखती नजर आएंगी। जसपाल राणा के पिता और पूर्व खेल राज्य मंत्री नारायण सिंह राणा की पहल पर अरुणिमा ने निशानेबाजी सीखने पर सहमति जताई है।
उनके पैशन की चर्चा पर वे बोलीं, पर्वतारोहण उनका पहला प्यार है। वह नए खिलाड़ियों को भी इसके लिए तैयार करने पर जोर दे रही हैं। उन्होंने बताया कि नारायण सिंह राणा ने उन्हें अपनी एकेडमी में शूटिंग की ट्रेनिंग का प्रस्ताव दिया है। यह उन्हें जंचा भी है। उत्तर प्रदेश के अंबेडकरनगर निवासी अरुणिमा सिन्हा वालीबाल की राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी थीं।
2011 में लखनऊ से दिल्ली के सफर के दौरान कुछ लुटेरों ने उन्हें चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया। गंभीर रूप से घायल अरुणिमा का एक पैर काटना पड़ा, जबकि दूसरे पैर में रॉड लगानी पड़ी। अस्पताल में उपचार के दौरान ही अरुणिमा ने माउंट एवरेस्ट फतह करने का सपना देखा और उसकी तैयारियों में जुट गईं। अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद वह टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन पहुंची और प्रसिद्ध पर्वतारोही बछेंद्री पाल के निर्देशन में पर्वतारोहण के गुर सीखे। इसके बाद उन्होंने नेहरू पर्वतारोहण संस्थान, उत्तरकाशी से ट्रेनिंग ली।
तमाम मुश्किलों और मुसीबतों से लड़ते हुए अरुणिमा ने 21 मई 2013 की सुबह 10 बजकर 55 मिनट पर दुनिया की सबसे ऊंची चोटी फतह करने में सफलता हासिल कर ली। एवरेस्ट फतह करने वाली वह दुनिया की पहली दिव्यांग महिला बनीं। उनकी इस उपलब्धि के लिए उन्हें 2015 में पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया। उनकी जीवनी ‘बॉर्न अगेन द माउंटेन’ का लोकार्पण खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था।