वैसे तो साल 2017 भारतीय राजनीति के लिए काफी उठा पटक भरा रहा है. इस पूरे साल कश्मीर से कन्याकुमारी तक और बंगाल से गुजरात तक की राजनीतिक गतिविधियां सुर्ख़ियों में रही. साल 2017 भारतीय जनता पार्टी के लिहाज से काफी यादगार रहा. जहां बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में 15 साल बाद सत्ता में वापसी की तो वहीं प्रतिष्ठा से जुड़े गुजरात में सत्ता बचाने में सफल रही. साथ ही कांग्रेस पार्टी के लिए यह साल मिला जुला रहा.
इस साल दक्षिण की राजनीति में जयललिता के मृत्यु के बाद पैदा हुए शून्य को भरने के लिए भी तमाम तरह की कवायद देखी गयी, तो वहीं नार्थ ईस्ट में मणिपुर में भी भाजपा की धमक देखने को मिली. हालांकि इस साल कुछ ऐसी बड़ी राजनैतिक गतिविधियां भी हुई जो आने वाले वर्षों में भारतीय राजनीति की दशा दिशा तय कर सकती है.
राहुल गांधी का कांग्रेस अध्यक्ष बनना
आखिरकार साल 2017 में वो लम्हा भी आ गया जब राहुल गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में चुन लिया गया. हालांकि यह काफी सालों से लगभग तय था कि सोनिया गांधी के बाद राहुल गांधी ही कांग्रेस कि कमान संभालेंगे, लेकिन कब यह बड़ा सवाल था. साल 2017 के दिसंबर महीने में राहुल गांधी को आधिकारिक रूप से कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में चुन लिया गया है.
अब राहुल गांधी पर कांग्रेस को फिर से खड़ा करने की चुनौती है. कभी देश के ज्यादातर हिस्सों में राज करने वाली कांग्रेस आज चार राज्यों में सिमट गयी है. ऐसे में आने वाले वर्ष में राहुल गांधी किस तरह नरेंद्र मोदी को चुनौती देते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा.
योगी आदित्यनाथ का उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण
साल 2017 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए विधानसभा की 403 सीटों में से सवा तीन सौ सीटों पर जीत दर्ज की. हालांकि भाजपा के इस प्रचंड जीत के बाद मुख्यमंत्री को लेकर काफी अटकलें लगायी गयीं. लेकिन आख़िरकार गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ को इस पद के लिया चुना गया.
योगी आदित्यनाथ का मुख्यमंत्री बनाया जाना कई मामलों में बेहद महत्वपूर्ण रहा है. पहला योगी की छवि कट्टर हिंदुत्ववादी नेता की रही है. ऐसे में उन्हें मुख्यमंत्री बना कर भाजपा ने यह साफ़ कर दिया कि बीजेपी अपनी हिंदूवादी छवि से समझौता करने के मूड में नहीं है. साथ ही योगी का मुख्यमंत्री बनाए जाने को लोग भाजपा के पास मोदी के बाद के विकल्प के रूप में भी देख रहें हैं.
योगी पर आने वाले वर्षों में उत्तर प्रदेश में लोक सभा के चुनावों में भी बेहतर प्रदर्शन का दारमोदार होगा. क्योंकि यही वह प्रदेश है जिसने साल 2014 में भाजपा के प्रचंड जीत में अहम भूमिका निभाई थी. हालांकि योगी प्रदेश के निकाय चुनावों में बेहतर करने में सफल रहें हैं.
कमल हसन का सक्रिय राजनीति में आना
पिछले साल दिसम्बर में जयललिता के निधन के बाद से ही तमिलनाडु की सियासत में काफी उठा पटक देखने को मिला. जयललिता के बाद पैदा हुए शून्य को भरने के लिए साउथ के दो बड़े सुपरस्टार रजनीकांत और कमल हासन के सक्रिय राजनीति में आने को लेकर चर्चा पूरे साल रही.
हालांकि अभी तक रजनीकांत इस मुद्दे पर कुछ भी खुल कर बोलने से बचते रहें हैं. लेकिन कमल हासन ने सक्रिय राजनीति की राह पकड़ ली है. वैसे कमल हासन ने अभी तक पार्टी के मुद्दे पर कोई फैसला नहीं लिया है. लेकिन आने वाले सालों में यह देखना दिलचस्प रहेगा कि क्या कमल हासन एमजीआर, एनटी रामा राव और जयललिता जैसे फिल्मस्टार की तरह राजनीति में अपना परचम लहरा पाएंगे या नहीं.
नीतीश कुमार की बीजेपी के साथ वापसी
साल 2014 में नरेंद्र मोदी को बीजेपी की तरफ से प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाए जाने के बाद से भाजपा और जदयू के रिश्तों में तल्खी आ गयी थी. हालांकि साल 2017 में फिर से यह पुराने सहयोगी साथ आ गए. जुलाई 2015 में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लालू यादव के साथ बनाए गए महागठबंधन को छोड़ कर भाजपा का दामन थाम लिया.
नीतीश के इस फैसले के बाद जहां भाजपा के खाते में एक और राज्य आ गया तो वहीं इसका फायदा भाजपा को 2017 के लोकसभा में भी देखने को मिल सकता है. साथ ही नीतीश कुमार जिन्हें विपक्ष नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक बड़े नेता के तौर पर देख रही थी, उनके बीजेपी से मिलने से विपक्ष ने एक बड़ा नेता खो दिया है.
गुजरात की राजनीति में तीन युवा नेताओं की एंट्री
वैसे तो गुजरात पिछले 2 दशकों से भाजपा का गढ़ माना जाता रहा है. हालांकि, 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को उसी के गढ़ में तीन स्थानीय युवा नेताओं ने कड़ी चुनौती दी. हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवानी भाजपा को गुजरात में छठी जीत से नहीं रोक सके. मगर जिस तरह गुजरात चुनाव में इन नेताओं के प्रति लोगों में उत्साह दिखा वो इस बात के संकेत जरूर देते दिखे की आने वाले सालों में यह तिकड़ी गुजरात की राजनीति में उभर कर आ सकती है.